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भारत समेत कई देशों में महिला स्वयं सहायता समूह और माइक्रो क्रेडिट की ताकत अपना ज़ोर जमा रही है. इससे होने वाले आर्थिक, सामाजिक, और राजनैतिक फायदों को देखते हुए सरकारें इन्हें बढ़ावा दे रही हैं. हाल ही में, संयुक्त राष्ट्र महासभा (यूनाइटेड नेशंस जनरल असेंबली) ने सोशल एंड सॉलिडेरिटी इकॉनमी (सामाजिक और एकजुटता अर्थव्यवस्था) पर अपने पहले प्रस्ताव पर सहमति दी है. अपनी इच्छा से सहयोग, एक दूसरे की सहायता, लोकतांत्रिक शासन, और स्वतंत्रता सोशल एंड सॉलिडेरिटी इकॉनमी की विशेषताएं है. आर्थिक क्षेत्रों में काम करते हुए, सामाजिक और एकजुटता वाली संस्थाएं मुनाफे का बंटवारा करते समय लोगों की ज़रूरतें और सामाजिक उद्देश्यों को प्राथमिकता देती हैं. इनमें सहकारिता, संघ, आपसी समाज, फाउंडेशन, और स्वयं सहायता समूह शामिल हैं.
यूएन ने इन्हें बढ़ावा देने और ऐसे समूहों का समर्थन करने के लिए सदस्य राज्यों और वित्तीय संस्थानों को प्रोत्साहित किया. आईएलओ के डायरेक्टर, गिल्बर्ट एफ होंगबो ने संयुक्त राष्ट्र महासभा (यूएनजीए) द्वारा पारित सोशल एंड सॉलिडेरिटी इकॉनमी को बढ़ावा देने के लिए नए प्रस्ताव का स्वागत किया.
संयुक्त राष्ट्र द्वारा पारित ये रिसोल्यूशन सोशल एंड सॉलिडेरिटी इकॉनमी के योगदान को और आगे लेजायेगा, जैसे अंतरराष्ट्रीय श्रम मानकों को लागू करना, गरीबी उन्मूलन, और सामाजिक परिवर्तन और समावेशन. सामाजिक और एकजुटता वाली अर्थव्यवस्था के ज़रिये व्यापार और उद्यमशीलता की क्षमता बढ़ेगी, उत्पादकता को मज़बूती मिलेगी, और आर्थिक और अन्य व्यावसायिक विकास सेवाओं तक पहुंच बढ़ सकेगी. संयुक्त राष्ट्र द्वारा पारित इस रिसोल्यूशन के बाद आईएलओ के 187 सदस्य देशों ने 'रिसोल्यूशन ऑन डिसेंट वर्क एंड द सोशल एंड सॉलिडेरिटी इकॉनमी' को अपनाया. सामाजिक और एकजुटता वाली अर्थव्यवस्था को अब सही मायने में वैश्विक मान्यता मिल रही है, जो हम सभी के लिए एक स्थायी, न्यायपूर्ण और बेहतर भविष्य का निर्माण कर सकेगा. एकजुट अर्थव्यवस्था वाले संस्थानों से असमानताओं को कम करने और समृद्धि, अवसर और स्थिरता बढ़ाने में मदद मिलेगी. सामाजिक न्याय की ज़रुरत पूरी हो सकेगी.