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रेडियो हमेशा से ही न केवल मनोरंजन का, पर अपने विचारों को साझा कर समाज में बदलाव की पहल करने का साधन रहा है. वैसे तो रेडियो की जगह अब इंटरनेट ने ली है, पर कुछ जगहों पर आज भी ये अपने विचारों और भावों को व्यक्त करने का सबसे ज़्यादा इस्तेमाल होने वाला साधन बना हुआ है. झाबुआ की महिलाओं ने भी रेडियो को अपनी बात समाज तक पहुंचाने का साधन बनाया. रेडियो स्टेशन टंट्या भील 90.8 एफएम ने झाबुआ में सामाजिक मुद्दों और सामुदायिक विकास के मुद्दों पर बात करने की लिए महिलाओं को विशेष अवसर दिया.
हाल ही में, जिले के विभिन्न हिस्सों से महिलाएं आदिवासी समाज में दहेज प्रथा, शराब और डीजे प्रथाओं सहित विभिन्न सामाजिक मुद्दों पर बोलने के लिए एक साथ आईं. इन प्रथाओं को उन्होने आदिवासी समाज के पिछड़ेपन और क़र्ज़ में डूबने की बहुत बड़ी वजह बताई. परिवार अक्सर कर्ज में डूबे रहते हैं और इसकी वजह से उन्हें पलायन करना पड़ता है. इससे स्वास्थ्य समस्याओं, शिक्षा की कमी और स्थानीय नौकरियों की कमी सहित कई समस्याएं पैदा हुई और कई प्रकार की घटनाएं, उत्पीड़न और अपराधों में भी बढ़ोतरी दिखी.
नवापाड़ा, झरनिया, हत्यादेली और मुंदत गांव की में संगठन की महिलाएं अपने गांवों में इन बुराइयों को खत्म करने के लिए जागरूकता पैदा करने का काम कर रही हैं. वे अपने गांव में इन मुद्दों पर जिला प्रशासन का सहयोग करने के लिए तैयार हैं. जत्थे से सेवली परमार का कहना है कि जिला कलेक्टर, सरपंच, पटेल और गांवों के सभी मुखियाओं के साथ मिलकर नियम तय करना होगा. रेडियो स्टेशन के ज़रिये महिलाओं ने प्रशासन से सहयोग मांगा.
महिलाओं ने समुदाय और प्रशासन के लिए संदेश भी रिकॉर्ड किये जो रेडियो टंट्या भील 90.8 एफएम पर प्रसारित किये जायेंगे. ये इसीलिए संभव हो सका क्योंकि इन महिलाओं ने संगठित होकर ग़लत के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाने की और स्थिति को ख़ुद बदलने की हिम्मत की.