मोहम्मद शोएब ने ढूंढी नाम में अपनी पहचान

लिंग-परिवर्तन प्रक्रिया से गुजरने के बाद, शोएब बेहतर महसूस किया, बिलकुल वैसा जैसे हमेशा से खुद की कल्पना की थी. वह अब एक बड़े कॉर्पोरेशन के साथ काम कर रही है और महसूस करती है कि इस पद पर उन्हें सफलता उनके संघर्ष, कठिनाई और शिक्षा की वजह से मिली  है.

author-image
मिस्बाह
New Update
shoaib khan

Image Credits: Shoaib Khan

लगभग 4000 लोगों के एक समुदाय से, मोहम्मद शोएब खान (Mohammad Shoaib Khan), कॉरपोरेट क्षेत्र में काम करते हैं. शोएब ने मानो अपना पूरा जीवन एक पिंजरे में गुजारा, और खुदको स्वीकारने के बाद ही वे गरिमा के साथ चल सकी. ट्रांसफ़ोबिया (transphobia) और होमोफ़ोबिया (homophobia) से कश्मीर के श्रीनगर (Srinagar) का ये समुदाय भी अछूता नहीं रहा. अक्सर ट्रांसजेंडर समुदाय को मौखिक, मानसिक, और शारीरिक शोषण का शिकार होना पड़ता है. यह लैंगिक अल्पसंख्यक है जो समाज में रूढ़िवादिता और असमानता से जूझते हैं. उनकी सामाजिक और आर्थिक स्थिति शादियों में मनोरंजन करने, वेश्यावृत्ति और भिक्षावृत्ति तक सीमित है. लेकिन शोएब को ये मंज़ूर न था, उन्होंने पाबंदी लगाने वाली हर बेड़ी को तोड़कर अपनी पहचान खुद बनाने की सोचा. 

Kashmir’s Only Trans Woman Working In A Corporate Giant

Image Credits: Shoaib Khan

लिंग-परिवर्तन प्रक्रिया से गुजरने के बाद, उन्होंने बेहतर महसूस किया, बिलकुल वैसा जैसे हमेशा से खुद की कल्पना की थी. वह अब एक बड़े कॉर्पोरेशन के साथ काम कर रही है और महसूस करती है कि इस पद पर उन्हें सफलता उनके संघर्ष, कठिनाई और शिक्षा की वजह से मिली है. वह वर्तमान में कश्मीर में LGBTQI व्यक्तियों का समर्थन करने वाले गैर सरकारी संगठनों के साथ कई प्रोजेक्ट्स संभाल रही हैं.

वे कश्मीर (Kashmir) में पली बढ़ी. वे अपने बचपन को फिर से जीना चाहती हैं क्योंकि उन्हें अपने बचपन की कोई अच्छी बात याद नहीं है. वे उस प्यार, दोस्ती और साथ से वंचित थी जो आम तौर पर परिवार से मिलता है. वे कमरे में छुपकर करीना कपूर या आलिया भट्ट को देखती तो उन्हें लगता कि वह करीना कपूर या आलिया भट्ट नहीं हो सकती. इसलिए उन्होंने ट्रांस वुमन के लिए एक उदाहरण बनने का सोचा. 'अगर हम पढ़ेंगे तो हम भी उसके जैसे बन सकते हैं' और गरिमा के साथ ज़िन्दगी जी सकते हैं.

Shoaib

Image Credits: Shoaib Khan

उनका कहना है कि LGBTQIA समुदाय को दिन-ब-दिन निराश होने की बजाय अपने भीतर ध्यान देने की ज़रुरत है. समाज से स्वीकृति की मांग करते हैं, लेकिन हम कभी भी ट्रांसजेंडर लोगों या LGBTQI समुदाय के पालन-पोषण पर ध्यान नहीं देते. जब हम अपने ही परिवार द्वारा स्वीकार नहीं किए जाते हैं तो हम समाज से स्वीकृति की मांग कैसे कर सकते हैं? और यह भी कि जब हम स्वयं को स्वीकार नहीं कर सकते तो हम समाज से स्वीकृति की मांग कैसे कर सकते हैं? यह सवाल उठाया शोएब ने. 

जब वे सातवीं कक्षा में थी, तो उन्हें सीनियर काफी परेशान किया करते. जब वे अपनी मां के पास गई तो मां ने उन्हें कोई सहारा या प्यार नहीं दिया. और वह कैलेंडर हाथ में लेकर गिनने लगी कि 7वीं से 12वीं कक्षा तक कितने दिन बचे हैं.  

Shoaib

Image Credits: Shoaib Khan

शोएब कहती है, "जहां तक मेरे नाम का सवाल है, जब आप मुझे देखते हैं, तो आप मेरे पूरे व्यक्तित्व को देखते हैं और फिर आप मेरा नाम सुनते हैं, यह उन लोगों के लिए बेमेल है जो मेरे समुदाय के साथ भेदभाव और उसका बहिष्कार करते हैं. इसलिए अपने पेशेवर जीवन में, मैं इंटरव्यूज और मीटिंग में, मैं अपना परिचय मोहम्मद शोएब खान के रूप में देती हूं. मैंने यही हासिल किया. और मैं नहीं चाहती कि मैं कोई स्त्री वाला नाम अपनाऊ. मैं शोएब हूं और मेरा नाम मेरी यात्रा, मेरी पहचान है.

मीडिया प्लेटफॉर्म्स ने जब उनसे पूछा, "आपको कब लगा कि आप एक महिला हैं?" तो उन्होंने जवाब दिया, "क्या आप किसी महिला से पूछेंगे कि वह महिला की तरह कब महसूस करने लगी? मैं आपको बताना चाहूंगी कि मैं मेरे बचपन से ऐसा था. मेरा झुकाव महिला लिंग की ओर बहुत था. " 

उनका मानना है कि सुधार तो हो रहा है, पर उसकी गति धीमी है. हमें उम्मीद नहीं छोड़नी चाहिए. यह एक लंबी लड़ाई है, यह केवल फैसला नहीं है जो पारित किया जाएगा, और फिर हम आज़ाद होकर जीने लगेंगे. हर दिन हमें लड़ने की जरूरत है और इसकी शुरुआत हमारे अपनों से, समाज से होती है. 

वे कहती है कि वे कॉरपोरेट नौकरी हासिल करने वाली पहली ट्रांसजेंडर व्यक्ति कहलाने के बजाय, अपने ट्रांसजेंडर समुदाय और अपने पूरे समाज में बदलाव लाने वाली पहली व्यक्ति बनना पसंद करेंगी. वे उस शोएब के नाम से ही पहचान बनाना चाहती है जिसने उनकी जिंदगी बदल दी.

(साभार: Feminism in India)

Kashmir Srinagar Mohammad Shoaib Khan LGBTQI ट्रांसजेंडर समुदाय