मैंग्रोव संरक्षण से कमाई

किलिफ़ी में एक संरक्षण समूह मैंग्रोव पौध की बिक्री से बड़ा फ़ायदा उठा रहा है. किडुंडु मटोंगानी संरक्षण समूह इस काम से सालाना कम से कम 10.5 मिलियन शिलिंग कमा रहा है. एरिया में कम होते मैन्ग्रोव कवर को बचाने के लिए इन सीडलिंग का इस्तेमाल किया जा रहा है.

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मिस्बाह
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Image Credits: star.co.ke

किलीफी (Klifi) केन्या (Kenya) के तट पर बसा एक शहर है. यह शहर हिंद महासागर (Indian Ocean) के बीचेस के लिए जाना जाता है. कोरल रीफ, ग्रीन टर्टल, रिसोर्ट इसकी ख़ूबसूरती में चार चांद लगाते हैं. लकड़ी के कई कामों में इस्तेमाल होने की वजह से बड़े पैमाने पर वनों की कटाई हो रही है. इसके अलावा समुद्र के किनारे मिट्टी का कटाव (soil erosion), गरीबी (poverty) और औद्योगिक प्रदूषण (industrial pollution) जैसी चुनौतियां भी मौजूद हैं. इन परेशानियों का समाधान ढूंढ़ने के लिए लोग समूह बनाकर एकजुट आने लगे. 

किलिफ़ी में एक संरक्षण समूह मैंग्रोव पौध की बिक्री से बड़ा फ़ायदा उठा रहा है. किडुंडु मटोंगानी संरक्षण समूह (Kidundu Mtongani Conservation Group) इस काम से सालाना कम से कम 10.5 मिलियन शिलिंग (Shilling) कमा रहा है. एरिया में कम होते मैन्ग्रोव कवर (Mangrove cover) को बचाने के लिए इन सीडलिंग का इस्तेमाल किया जा रहा है.

किडुंडु मटोंगानी स्वयं सहायता समूह (Self Help Group) के अध्यक्ष स्टीफन चिवात्सी ने कहा कि गैर-सरकारी संगठन 'ग्रो विद अस' (Grow With us) के सहयोग से यह कोशिश सफल हुई है. समूह के 30 सदस्यों ने किडुंदू गांव में 500 एकड़ मैंग्रोव कवर को वापिस उगाया है.

चिवात्सी ने कहा कि जलवायु परिवर्तन (Climate Change) के प्रभावों को कम करने में मदद करने के अलावा, मैंग्रोव इकोसिस्टम (Mangrove ecosystem) को मज़बूत कर समुदाय की इनकम के नए अवसर पैदा कर रहा है. इससे वहां के लोगों को समुदाय में गरीबी से लड़ने में मदद मिल रही है. 10,000 से अधिक मैंग्रोव पौधे रोपने के बाद किडुंदू गांव में मछलियों की संख्या बढ़ने से आजीविका भी बढ़ी है. 

2019 में 'ग्रो विद अस' की मदद से मैंग्रोव संरक्षण के काम में काफी बदलाव आया है.  पहले यही काम बिना किसी पैसो के करते थे. पर अब संरक्षण करने के साथ रोज़गार भी मिला है. सफलता को देख और लोग इस पहल से जुड़ते जा रहे हैं.  

चिवात्सी ने बताया कि मैंग्रोव पौधों की बिक्री से होने वाली आमदनी से न केवल संरक्षण कार्यों में बढ़ोतरी हुई है, बल्कि स्वास्थ्य देखभाल, स्वच्छ पानी और शिक्षा तक पहुंच जैसे विकास कार्यक्रमों की शुरुआत में भी मदद मिली है. समूह से जुड़ने के बाद छात्र माध्यमिक विद्यालयों और विश्वविद्यालयों तक पढ़ने जा रहे हैं. "इससे पहले, इस स्तर तक एक बच्चे को शिक्षित करना बहुत मुश्किल था," चिवात्सी ने बताया. आने वाले कुछ समय में संरक्षण प्रयासों का विस्तार किया जायेगा. समुद्र तट के साथ दूसरे क्षेत्रों में भी संरक्षण का काम शुरू किया जायेगा. 

किलीफी के स्वयं सायता समूह ने सिखाया कैसे संरक्षण के साथ आजीविका भी कमाई जा सकती हैं. आज दुनिभर के देश क्लाइमेट चेंज के प्रभाव से जूझ रहे हैं. इस स्थिति से निपटने के लिए स्वयं सहायता समूह का सहारा लिया जा सकता है. SHG के ज़रिये समुदाय के लोग एकजुट आ सकेंगे और वातावरण संरक्षण (environment conservation) के साथ गरीबी (poverty) को भी दूर कर सकेंगे.   

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