'हरामबी' से विकास का सफर आसान

स्वयं सहायता समूह, समुदाय की भलाई को ध्यान में रखते हुए डे केयर सेंटर और शिक्षा सेंटर चलाते हैं, स्वास्थ्य सुविधाएं देते हैं, मवेशी पालन, मधुमक्खी पालन, मछली पालन, बागवानी, सामुदायिक कार्यक्रमों में सेवाएं देने जैसे काम भी करते हैं. 

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मिस्बाह
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self help group in kenya

Image Credits: Capitalfm.co.ke

दुनिया के सबसे हरे-भरे देशों में शामिल केन्या अफ्रीकी महाद्वीप (African continent) में बसा देश है. केन्या (Kenya) में 70 से अधिक विभिन्न जातीय समूह रहते हैं. यहां 99% आबादी अश्वेत है. वैज्ञानिकों का मानना है कि इंसानों की उत्पत्ति केन्या में हुई क्योंकि इंसानों के सबसे पुराने अवशेष केन्या के टुगेन हिल्स (Tugen Hills) में मिले, जो 70 लाख साल पुराने हैं. भारत की तरह केन्या का इतिहास भी गुलामी से भरा है. 100 साल गुलाम रहने के बाद 12 दिसंबर 1963 को केन्या ब्रिटेन से आज़ाद हुआ और 1964 में अपना संविधान लागू कर खुद को गणतंत्र घोषित किया. पर, आज भी केन्या कई तरह की सामाजिक चुनौतियों से जूझ रहा है. गरीबी, बाल मज़दूरी, एड्स, दहेज़, लैंगिक असमानता यहां के कुछ गंभीर मुद्दे हैं. 

केन्या में सरकार इन चुनौतियों से निपटने के लिए कई तरह की योजनाएं चला रही है. किसी भी योजना की सफलता समुदाय की भागीदारी पर टिकी है. केन्या के गैर सरकारी संगठन और चेंज एजेंसियां स्वयं सहायता समूहों (Self Help Groups-SHG) की मदद से समुदाय के लोगों तक पहुंचते हैं. ये एजेंसियां स्वयं सहायता समूह के ज़रिये कम्युनिटी डेवलपमेंट (Community Development) का काम करते हैं. कम्युनिटी डेवलपमेंट अप्रोच समुदायों के सदस्यों के जीवन को बेहतर बनाने और सामाजिक बदलाव लाने के लिए विकासशील गतिविधियों का सहारा लेता है. 

केन्या में, स्वयं सहायता समूह पारंपरिक अफ्रीकी समाज का हिस्सा है जिसकी शुरुआत ब्रिटिश शासन काल में हो चुकी थी. तब, समुदाय के लोग झाड़ियों की सफाई, निराई, घर बनाने और पशुओं को चराने जैसे कामों में एक-दूसरे की सहायता करने के लिए समूह बनाते थे. 1963 में केन्या को ब्रिटिश शासन से आज़ादी मिलने के बाद, स्वयं सहायता कार्य को "हरामबी" के रूप में जाना जाने लगा. तत्कालीन केन्याई राष्ट्रपति, मज़ी जोमो केन्याटा और उनकी सरकार ने SHG के विस्तार को बढ़ावा दिया. समुदाय के लोग गुलामी के दौर में हुए नुक्सान से उभरने के लिए समूह बनाकर साथ आये और समाजवाद को मज़बूत किया. 

महिलाओं के स्वयं सहायता समूह आंदोलन ने स्वतंत्रता के बाद अपनी पकड़ मज़बूत की. इस दौर में, महिलाओं के समूहों ने क्लबों का रूप लिया और ज़्यादातर हैंडीक्राफ्ट एक्टिविटी और घर बनाने जैसे काम किये. इन्होंने राजनीतिक रैलियों में हिस्सा भी लिया, सदस्यों के लिए घर बनाने, मरम्मत करने, और ज़मीन खरीदने जैसी गतिविधियों को अंजाम दिया. महिलाओं के इस आंदोलन को 1975 में औपचारिक रूप से 'स्वयं सहायता समूह' शब्द को अपनाया और महिलाओं और मिश्रित लिंग (पुरुष और महिला दोनों) स्वयं सहायता समूह का रजिस्ट्रेशन शुरू हुआ. ये फैसला मैक्सिको में आयोजित अंतर्राष्ट्रीय महिला वर्ष सम्मेलन के बाद, तत्कालीन सामाजिक सेवा विभाग (DSS) ने लिया. 

इन समूहों की संख्या बढ़ती जा रही है. केन्या में 2019 में 1 लाख 20 हज़ार स्वयं सहायता समूहों में करीब 18 लाख सदस्य शामिल थे. ये समूह समुदाय की भलाई को ध्यान में रखते हुए डे केयर सेंटर और शिक्षा सेंटर चलाते हैं, स्वास्थ्य सुविधाएं देते हैं, मवेशी पालन, मधुमक्खी पालन, मछली पालन, बागवानी, सामुदायिक कार्यक्रमों में सेवाएं देने जैसे काम भी करते हैं. 

उवेज़ो फंड (Uwezo fund), जो विज़न 2030 के लिए मुख्य कार्यक्रम है, वे महिलाओं, युवाओं और विकलांग व्यक्तियों को अपने व्यवसायों और उद्यमों को बढ़ावा देने के लिए सक्षम बनाता है. केरिचो ईस्ट सब-काउंटी उवेज़ो फंड के अनुसार, महिलाओं, युवाओं और विकलांग व्यक्तियों के 135 समूहों को फायदा मिला है. एमिटियट बिन्नी स्वयं सहायता समूह ने उवेज़ो फंड से जुड़कर 200 केले के बागान खरीदे. विधवा महिलाओं के समूह ने तीन टेंट, कुर्सियां और रसोई के बर्तन खरीदे जिसे वे किराय पर देकर पैसे कमा रही हैं. फंड ने आर्थिक विकास को बढ़ाया जिससे गरीबी, भुखमरी, लैंगिक असमानता जैसे सामाजिक परेशानियों में सुधार आया और महिलाओं को सशक्त बनाने के सतत विकास लक्ष्य को बढ़ावा मिला.

केन्या के स्वयं सहायता समूह सामाजिक बदलाव की कहानिया लिख रहे हैं, महिलाओंऔर विकलांगों को कमाई का जरिया दे रहे हैं, और विकास में समुदाय की भागीदारी बढ़ा रहे हैं. विकासशील देश भी इस तरह से स्वयं सहायता समूहों को बढ़ावा देकर प्रगति के संघर्ष में समुदाय को शामिल कर सकते हैं. 

 

 

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