SA में SHG समूहों ने साथ आकर शुरू किया नया सिलसिला

जैसे नेल्सन मंडेला ने रंगभेद और उपनिवेशवाद से दक्षिण अफ्रीका को आज़ादी दिलाई वैसे ही लैंगिक भेदभाव के खिलाफ़ आज SHG लड़ रहे है. दक्षिण अफ्रीका ने एक तीर से दो निशाने लगाते हुए गरीबी से बाहर निकलने के रास्ते खोजे और साथ ही सामाजिक दिक्कतों के हल निकाले.

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दक्षिण अफ्रीका के पास वह सब कुछ रहा है जो किसी भी देश को चाहिए; प्राकृतिक सुंदरता, समृद्ध इतिहास और सांस्कृतिक विविधता. लेकिन यही खूबसूरती और समृद्धि पर जब वैश्विक शक्तियों की नज़र पड़ी तो अभिशाप बन गई. सदियों की गुलामी और अत्याचार ने यहां रंगभेद , लैंगिक भेदभाव,असमानता, बेरोज़गारी और गरीबी को जन्म दिया.  लेकिन इतिहास से साबित है कि दक्षिण अफ्रीकी लोगों ने परेशानियों को हराकर रास्ता निकाला और इसका सबसे बड़ा उदाहरण नेल्सन मंडेला रहे. जैसे नेल्सन मंडेला ने रंगभेद और उपनिवेशवाद से दक्षिण अफ्रीका को आज़ादी दिलाई वैसे ही लैंगिक भेदभाव के खिलाफ़ आज SHG लड़ रहे है.

दक्षिण अफ्रीका में लाखों ग्रामीण महिलाएं संसाधनों की कमी और जानकारियों से दूर, पुरुष प्रधान समाज में रहने को मजबूर हैं, जहां घर के भीतर उनके योगदान को महत्व नहीं मिलता. इसी समस्या को देखते हुए सिनामंडला फाउंडेशन ने लगभग 2 हज़ार गरीब और कमज़ोर महिलाओं को समूहों में संगठित किया. इन समूहों ने महिलाओं से रिसोर्स मैनेजमेंट, कमाई के ज़रियों के ऑप्शन, और अपना बिज़नेस शुरु करने के तरीकों पर बात की. उनमें आत्मविश्वास जगाकर अपने समुदाय के विकास में सक्रिय रूप से भाग लेने में सक्षम बनाया.

ज़िमेलेवथु फाउंडेशन ने दक्षिण अफ्रीका के क्वा-ज़ुलु नटाल प्रांत में 11 ग्रामीण समुदायों

के 4 हज़ार तीन सौ इकत्तर महिलाएं, युवा और पुरुषों के साथ स्वसहायता समूह तीन चरणों में शुरू किये. लक्ष्य था गरीब लोगों को सामाजिक और आर्थिक रूप से सशक्त बनाना. पहले चरण में सदस्य जोड़े, उन्हें फाइनेंशियल लिट्रेसी की ट्रेनिंग दी और बचत शुरू करवाई. छोटा ग्रुप बनाकर रिटेल दुकान, खेती, मुर्गी पालन, फ़ूड प्रोसेसिंग, और क्राफ्ट बिज़नेस शुरू किये.  दूसरे चरण में लगभग 12 स्वसहायता समूहों ने मिलकर क्लस्टर स्तरीय संघ (सीएलए) बनाया. सीएलए ने मिलकर सामाजिक परियोजनाएं शुरू की.  इसमें बाल विकास केंद्र, मरीज़ की घर पर देखभाल,अनाथालय, युवाओं के लिए जीवन कौशल और कंप्यूटर लर्निंग सेंटर खोले. तीसरे चरण में 8 से अधिक सीएलए जिसमें 12 सौ से अधिक प्रतिभागियों ने मिलकर फेडरेशंस बनाये और बड़े पैमाने पर ऐसे रोज़गार शुरू किये जो सामाजिक समस्याओं को हल करें. डिटर्जेंट बनाने, बेकिंग, सिलाई, बकरी पालन, साज सजावट और केटरिंग के काम शुरू किये.

SHG 'मेंबर ऑफ द ईयर' अवार्ड की विजेता 35 वर्षीय बनेलिले शेज़ी ने 500 ZAR का लोन लेकर अपना होटल शुरू किया. लोग उनके सलाद, केक, चिप्स, कॉफी के साथ भोजन का भी लुत्फ़ ले रहे हैं. बाद में 600 ZAR फिर 1000 ZAR का लोन लेकर उन्होंने 2-प्लेट स्टोव,माइक्रोवेव, और चिप्स तलने की मशीन खरीदी. समय पर लोन चुकाने के साथ उन्होंने मुनाफ़ा भी कमाया. SHG ऑफ द ईयर अवार्ड का विजेता थूथुकानी SHG के 10 सदस्यों ने एक अनोखी पहल की. उन्होंने घर पर बीमार लोगों की मदद करने के लिए घर-घर जाकर देखभाल प्रोजेक्ट शुरू किया जिसके तहत समूह ने 124 कमज़ोर बच्चों की सहायता की, ज़रूरतमंद परिवारों को 81 फूड पार्सल डोनेट किए और 10 परिवारों को सोशल ग्रांट दिलवाई.

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28 साल की बोनीसीवे हलेंग्वा पहले अपनी दादी की पेंशन पर निर्भर थी , SHG से जुड़कर उन्होंने 200 ZAR का लोन लिया और चिप्स का बिज़नेस शुरू किया. लोन चुकाने के बाद दोबारा लोन लेकर अपने बिज़नेस को बढ़ाया. चेहरे पर मुस्कान लिए कहती हैं - "मेरे घर की स्थिति अब बदल चुकी हैं इसके लिए मैं हमेशा SHG की शुक्रगुज़ार रहूंगी." SHG में बचत कर कई सदस्यों ने अपने घर बनाये, मरम्मत का काम किया, बच्चों को स्कूल यूंनीफॉर्म  दिलवाई, मेडिकल खर्चों का भुगतान किया और घर ज़रुरत का सामान भी ख़रीदा.

स्वसहायता समूहों ने महिलाओं को रोज़गार देकर आर्थिक आज़ादी दिलवाई और लैंगिक भेदभाव को कम करने की शुरुआत की। जब इन महिलाओं ने अपने परिवार का साथ दिया तो पुरुषों ने उनके योगदान को माना और उनकी अहमियत बढ़ी। धीरे-धीरे महिलाओं की उपस्थिति कई जगहों पर पुरुषों के साथ बराबरी में दिखना शुरू हुई। 

दक्षिण अफ्रीका ने एक तीर से दो निशाने लगाते हुए गरीबी से बाहर निकलने के रास्ते खोजे और साथ ही सामाजिक दिक्कतों के हल निकाले. दुनियाभर में चल रहें स्वसहायता समूहों को दक्षिण अफ्रीका से सीखकर अपने इलाके में चल रहे समूहों को एक साथ लाने की कोशिश करनी चाहिए. रविवार विचार का भी प्रयास है कि वो एक ऐसा प्लेटफॉर्म बन पाए जहां अलग-अलग SHG अपने विचार, योजनाएं ,और दिक्कतें एक दूसरे से बांटे और साथ मिलकर काम करें.

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