रिटायरमेंट की उम्र में शुरू किया बिज़नेस

कंचन ने इन महिलाओं की मदद करने के लिए उन्हें सॉफ्ट टॉयज़ का हुनर सिखाया. अब तक, वह 50 से ज़्यादा आदिवासी महिलाओं को क्रोशिए की कला सिखा चुकी हैं. 2021 में  कंचन ने 'लूपहूप' (Loophoop) की शुरुआत की.

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मिस्बाह
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दादी-नानी के क्रोशिए से बने टेबलक्लॉथ या सोफा कवर संभालकर रखे जाते हैं. रेडीमेड सामान के इस दौर में ये कला फीकी पड़ती नज़र आती है. पर, आज भी क्रोशिए की कला को बचाये रखा है झारखंड (Jharkhand) की कंचन भदानी (Kanchan Bhadani) ने. 61 साल की कंचन क्रोशिये (crochet) से सॉफ्ट टॉयज़ (soft toys) बनाती है. कोलकाता में जन्मी और पली-बढ़ी कंचन ने अपनी दादी और मौसी से ये हुनर सीखा. शादी के बाद झारखंड आ गई. यहां उन्होंने ट्राइबल महिलाओं को रोज़गार के लिए जूझते देखा. उनके लिए दो वक़्त की रोटी जुटाना भी मुश्किल था. 

कंचन ने इन महिलाओं की मदद करने के लिए उन्हें ये हुनर सिखाया. अब तक, वह 50 से ज़्यादा आदिवासी महिलाओं को क्रोशिए की कला सिखा चुकी हैं. 2021 में  कंचन ने 'लूपहूप' (Loophoop) की शुरुआत की. ज्यादातर महिलाएं उसके साथ कंपनी के लिए खिलौने बनाने का काम करती हैं. अब तक इनकी कंपनी 3 हज़ार से ज़्यादा हाथ से बने क्रोशिया के खिलौने बेच चुके हैं. इसके अलावा, कंचन आदिवासी समुदायों की गृहणियों और लड़कियों को आजीविका कमाने में मदद करने के लिए मुफ्त प्रशिक्षण भी दे रही हैं. 

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इंटरमीडिएट परीक्षा पास करने के बाद, वे अपनी शिक्षा जारी नहीं रख सकी क्योंकि शादी के बाद उन्हें शहर बदलना पड़ा. लेकिन उन्होंने क्रोशिए के अपने जुनून को ज़िंदा रखा और क्रोशिये से कुछ नया बनाती रही. झुमरी तलैया आ जाने के बाद वे कई आदिवासी महिलाओं से मिलीं जो पढ़-लिख नहीं सकती थी. वे केवल मज़दूरी करना जानती थी, जिसमें कमाई काफी काम थी. इन महिलाओं की परेशानियों को देखकर कंचन हमेशा सोचती थी कि कैसे वह उनके जीवन में बदलाव ला सकती है. 

तीन बच्चों की परवरिश और गृहस्ती ने उन्हें सालों बांधे रखा. जिसकी वजह से वे अपनी सामाजिक कार्य की आकांक्षाओं पर ध्यान नहीं दे सकी. बच्चों के बड़े हो जाने के बाद फुर्सत मिलते ही, उन्होंने 60 साल की उम्र में अपने सपनों को पूरा करने का सोचा. उनके बच्चों ने लूपहूप के लिए वेबसाइट और सोशल मीडिया शुरू करने में मदद की.  

कंचन की टीम में 21 साल की सोनाली करीब दो साल से जुड़ी है. वह एक महीने में 30 से ज्यादा खिलौने बनाती हैं. दो हफ्ते के प्रशिक्षण में सोनाली ने आसानी से काम सीख लिया. वह कहती है, "कंचन मैम हमें असाइनमेंट देती हैं. काम पूरा करके हम उन्हें प्रोडक्ट दे देते है. इस काम ने मुझे बहुत आत्मविश्वास और पैसे कमाने का ज़रिया दिया है. इस पैसे से मैं कॉलेज की ट्यूशन फीस देती हूं." 

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ज़्यादातर महिलाएं  दिन में केवल कुछ घंटे काम करके लगभग 5 हज़ार रुपये हर महीने कमा लेती है. कंचन महिलाओं के साथ मिलकर तरह-तरह के सॉफ्ट टॉयज बनाती हैं- जैसे ऑक्टोपस, गुड़िया, कैटरपिलर, हाथी आदि. ये टॉयज़ उनकी वेबसाइट, इंस्टाग्राम प्रोफाइल और फ्लिपकार्ट और अमेज़ॅन जैसे प्लेटफार्मों से खरीदे जा सकते हैं. कंपनी वर्तमान में हर साल 14 लाख रुपये से ज़्यादा कमा रही है. 

कंचन, उस उम्र में इंटरप्रेन्योर (entrepreneur) बनी जब ज़्यादातर लोग रिटायर (retire) होने की सोचते है. न केवल उन्होंने अपनी कंपनी शुरू की पर समाज सेवा करने का सपना भी पूरा किया. कंचन कहती है, “मेरा मानना ​​है कि कुछ शुरू करने और अपने जुनून का पालन करने की कोई सही उम्र नहीं होती है. इसलिए मैं इन आदिवासी महिलाओं के लिए काम करना और उनके जीवन में सुधार करना चाहती हूं.”

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