घूँघट की आड़ से... रैंप तक का सफर...

रुमा देवी राजस्थान में बाड़मेर के छोटे-से गाँव रावतसर की रहनेवाली 30 साल की फैशन डिज़ाइनर , जिनकी कहानी सुनकर हर इन्सान दंग रह जाता है. आज रूमा देवी का वो छोटा सा स्वयं सहायता समूह 22,000 से भी ज़्यादा महिलाओं का रोजगार बन चूका है.

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रिसिका जोशी
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Image Credits: The Hindu business Line

"बड़े बुजुर्गों के सामने घूँघट लो", ये बात भारत के में ज़्यादातर घरों में आने वाली महिलाओं को सबसे पहले बता दी जाती है. कहते है घूँघट लेना महिला के लिए बड़ो को इज़्ज़त दिखाने का तरीका है. लेकिन वो क्या करे अगर ये घूँघट ही उसकी सबसे बड़ी बेड़ी बन जाए. घर में पैसा नहीं होने के कारण अपनी 2 दिन की नन्ही सी जान को खो देने वाली माँ से पूछो, की सिर्फ घूँघट की आड़ में रह के उसे क्या मिला. ये कोई फिल्म की कहानी नहीं बल्कि रुमा देवी की आपबीती है.

 

रुमा देवी राजस्थान में बाड़मेर के छोटे-से गाँव रावतसर की रहनेवाली 30 साल की फैशन डिज़ाइनर , जिनकी कहानी सुनकर हर इन्सान दंग रह जाता है. 5 साल की छोटी-सी उम्र में ही उन्होंने अपनी माँ को खो दिया. पिता ने दूसरी शादी कर ली तो वे अपनी दादी के साथ रहने लगी. अपनी दादी के साथ ही उन्होंने सबसे पहले सिलाई-कढ़ाई का काम सीखा. उनके घर के आर्थिक हालात बिलकुल ठीक नहीं थी, जिसके कारण उन्हें 8वी क्लास के बाद पढ़ाई नहीं करने दी. गांव के रिवाज के हिसाब से लड़कियों की शादी जल्दी कर दी जाती थी और इसी कारण रुमा देवी को भी 17 साल की उम्र में शादी करनी पड़ी. 

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Image Credits: the morung express

साल 2008 में रुमा देवी की पहली संतान का जन्म तो हुआ लेकिन उनकी नन्ही सी जान भूख और गरीबी के कारण 2 दिन में ही अपनी जान गवां बैठी. अपनी हर परेशानी को ख़त्म करने के लिए रुमा देवी ने ठान लिया की वो अब घर में हाथ पे हाथ रख कर बिलकुल भी नहीं बैठेंगी. रूमा ने आस-पड़ोस की 10 महिलाओं को इकट्ठा करके उनके साथ एक स्वयं-सहायता समूह बनाया, जिसका नाम उन्होंने 'दीप देओल' रखा. उन सारी महिलाओं ने 100-100 रुपए इकट्ठा किए और एक सेकंड हैंड सिलाई मशीन खरीदी और उस दिन के बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा. 

 

इस सिलाई मशीन पर रुमा देवी और उनकी साथी महिलाओं ने अपने प्रोडक्ट्स बनाना शुरू कर दिए. रूमा देवी ने दुकानदारों से बात की कि वे सीधा उनसे ही प्रोडक्ट्स लेकर बेचें. किसी काम के लिए साल 2009 में रूमा देवी ग्रामीण विकास व चेतना संस्थान पहुंची जहाँ उनकी मुलाक़ात संगठन के सचिव विक्रम सिंह से हुई. इसके बाद रूमा और उनकी साथी महिलाएँ इस संगठन का हिस्सा बन गईं. रुमा देवी ने अपनी इन उपलब्धियों को देखा तो उन्होंने और भी महिलाओं को इस स्वयं सहायता समूह से जोड़ना चाहा. धीरे-धीरे उनके साथ और भी महिलाएं जुड़ती गयी .

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उन्होंने ट्रेडिशनल सिलाई-कढ़ाई को आधुनिक फैशन से जोड़ा. राजस्थान में जब जब क्राफ्ट प्रदर्शनी या मेले लगते तो रुमा अपनी कला को लोगों के सामने रखने क लिए इनमे स्टॉल्स लगाया करतीं. साल 2015 में उन्हें ‘राजस्थान हेरिटेज वीक’ में जाने का मौका मिला. अंतरराष्ट्रीय फैशन डिज़ाइनर 'अब्राहम एंड ठाकुर' और भारत के प्रसिद्ध डिज़ाइनर 'हेमंत त्रिवेदी' के मॉडल्स ने उनके डिज़ाइन किए हुए कपड़े पहने. सिर्फ इतना ही नहीं रुमा देवी के साथ साथ उनकी साथी महिलाओं ने भी रैंप पर आकर सबको धन्यवाद किया. साल 2016 में हुए फैशन वीक के लिए 5 बड़े डिज़ाइनर्स ने उनसे कॉन्टैक्ट किया.

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फैशन डिज़ाइनर रूमा के लीडरशिप में ये राजस्थानी महिलाएँ दुनिया की फैशन सिटीज जैसे जर्मनी, कोलम्बो, लंदन, सिंगापोर, थाईलैंड के फैशन शो में भी भाग ले चुकी हैं. आज रूमा देवी का वो छोटा सा स्वयं सहायता समूह 22,000 से भी ज़्यादा महिलाओं का रोजगार बन चूका है. साल 2018 में रूमा को नारी शक्ति पुरस्कार से नवाजा गया. 2019 में टेलीविज़न के एक प्रसिद्ध शो 'कौन बनेगा करोड़पति' में भी रुमा देवी नज़र आईं. उनका कहना है कि मुश्किलें तो सबके जीवन में आती हैं, लेकिन सबसे ज़्यादा ज़रूरी है हौसला रखना और अपने हुनर को अपनी पहचान बनाकर आत्म-निर्भर बनना. 

 

रुमा देवी की कहानी ना जाने कितनी महिलाओं को प्रेरित कर चुकी होगी. इस छोटे से गांव की लड़की जिसने अपना बचपन गरीबी, और भूक के पीछे खर्च कर दिया, आज ना जाने कितनी महिलाओं का घर चला रही है. रुमा देवी ने सोच लिया था और इसीलिए अपने हालातों के आगे हारी नहीं. अगर देश की हर महिला ऐसा कुछ करने का ठान ले तो उसे इस दुनिया की कोई ताकत नहीं रोक सकती.

 

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