आंखों में रोशनी न सही, सपने 'काफी' हैं

काफी जब महज़ तीन साल की थी तब हिसार में उनके गांव में पड़ोसियों ने एसिड फेंक दिया. इस घटना में काफी की आंखों की रोशनी तो छिन गई, पर सपने देखने का होंसला नहीं. काफी ने दसवीं में 95.20% अंक हासिल किए. उसका सपना है कि वह एक आईएएस अधिकारी बने. 

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मिस्बाह
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acid attack survivor kafi tops 10 board

Image Credits: Indiatimes.com

अगर परेशानी किसी भी उम्र में आ सकती है, तो हिम्मत और मेहनत से मिसाल भी किसी भी उम्र में कायम की जा सकती है. ये साबित किया है काफी (Kafi) ने. 15 साल की काफी चंडीगढ़ (Chandigarh) के ब्लाइंड स्कूल (Blind School) में दसवीं क्लास में टॉप कर सुर्खियां बटोर रही है. यहां तक आने का उसका सफ़र आसान नहीं था. काफी जब महज़ तीन साल की थी तब हिसार में उनके गांव में पड़ोसियों ने एसिड फेंक दिया. इस घटना ने उनकी आंखों की रोशनी छीनली. 

इस घटना में काफी का मुंह और बाज़ू बुरी तरह झुलस गए और उनकी आंखों की रोशनी चली गई. 6 साल तक लगातार कई अस्पतालों में भागदौड़ की. एम्स दिल्ली (AIMS, Delhi) में उन्हें बताया कि ज़िंदगीभर के लिए काफी नेत्रहीन हो गई है. 8 साल की उम्र में उनकी पढ़ाई शुरू करवाई. स्कूल में सुविधाएं न होने पर वे चंडीगढ़ आ गए और यहां अपनी पढ़ाई जारी रखी. काफी हमेशा से ही पढ़ाई में तेज़ थी, जिसकी वजह से उन्हें चंडीगढ़ के सेक्टर-26 के ब्लाइंड स्कूल में कक्षा-6 में एडमिशन मिल गया. काफी ने दसवीं में 95.20 % अंक हासिल किए. काफी का सपना है कि वह एक आईएएस अधिकारी बने. 

काफी के पिता ने उनके लिए बहुत संघर्ष किया. जिन लोगों ने उसके ऊपर तेजाब फेंका था, उन्हें हिसार की जिला अदालत ने 2 साल की सजा सुनाई. सजा पूरी कर, आज वे लोग आज़ाद घूम रहे हैं. इस बात का दर्द आज भी काफी और उनके परिवार को सता रहा है. पवन बताते है कि उन्होंने अपनी बेटी का नाम 'काफी' रखा क्योंकि उन्हें और बेटी नहीं चाहिए थी. लेकिन, आज उन्हें काफी पर गर्व है.  

काफी की आंखों की रोशनी तो छिन गई, पर एसिड अटैक (acid attack) उनका सपने देखने का होंसला नहीं छीन सका. एनसीआरबी के आंकड़ों के मुताबिक, पिछले पांच सालों में देश में एसिड अटैक के 1,362 मामले सामने आए हैं. एसिड अटैक महिलाओं के ख़िलाफ़ होने वाली हिंसा का एक रूप है. एसिड अटैक के निशान ज़िंदगीभर के लिए रह जाते हैं, जिससे कई तरह की सामाजिक, शारीरिक, और मानसिक समस्याएं होती हैं. आज ज़रुरत है इसके ख़िलाफ़ सख़्त कानून बनाने की, ताकि किसी को भी इस असहनीय दर्द से न गुज़रना पड़े.     

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