UN तक पहुंचाया कोदो कुटकी को

मध्य प्रदेश महिला वित्त निगम के महाप्रबंधक अरविन्द सिंह भाल जो न्यूयॉर्क में रेखा के साथ थे कहते हैं, " पेंड्राम यूं तो केवल 10वीं तक पढ़ी हैं. लेकिन उनकी वैचारिक शक्ति बहुत मजबूत है. वो अपने धुन की पक्की है और एक मजबूत इच्छा शक्ति वाली महिला है.

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देशदीप सक्सेना
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Image Credits: Ravivar Vichar

डिंडोरी की बैगा आदिवासी रेखा पेंड्राम की अपने गांव से न्यूयॉर्क तक की यात्रा नारी सशक्तिकरण की अनूठी कहानी है. जिले की आदिवासी महिलाओं को एक कर उन्हें स्वावलंबी बनाने में उनका बहुत बड़ा योगदान है. अमेरिका में 2017 में उन्होंने खाद सुरक्षा पर मध्य प्रदेश के प्रतिनिधि के रूप में एक प्रेसेंटेशन दिया था. भारी करतल ध्वनि के बीच, उन्होंने दुनिया को खाद्य सुरक्षा, महिलाओं के आर्थिक- सामाजिक उत्थान और उनके स्वास्थ्य सम्बंधित विषयों पर उनके स्वसहायता समूह के महासंघ द्वारा चलाये जा रहे कार्यों का विस्तार से विवरण दिया था. रेखा का प्रयास अब जिले की हर एक महिला को SHG आंदोलन से जोड़ना है.

"वह एक सपना जैसा था जब न्यूयॉर्क के कैनेडी हवाई अड्डे पर हमारा हवाई जहाज़ उतरा था ", रेखा बताती है. मुझे याद है, दुबली पतली आदिवासी महिला थोड़ा ठहर के कहती हैं, 2007 के पहले में घर से बाहर कम ही निकलती थी. दूसरों से बात करने में एक झिझक होती थी और सरकारी कर्मचारियों से बात करने में थोड़ा डर ही लगता था. लेकिन स्वसहायता समूह से जुड़ने के बाद सब बदल गया. " एकता में शायद ये ही शक्ति होती है". रेखा की अमेरिका अंतर्राष्ट्रीय कृषि विकास कोष द्वारा प्रायोजित थी. और रेखा का प्रेजेंटेशन संयुक्त राष्ट्र संघ (UNO) के हेड क्वार्टर में आयोजित था. प्रेजेंटेशन का शेड्यूल 5 मिनट का था. लेकिन वह चलता रहा, रेखा बोलती रही और दुनिया सुनती रही. "शायद लोग सुनना चाहते थे कि इतनी विपन्नता के बावजूद हम कैसे संघर्ष कर रहे हैं और न केवल खुश हैं बल्कि आर्थिक सामाजिक विकास भी कर रहे हैं", रेखा कहती है. उसके बाद रेखा ने कभी पलट के नहीं देखा.

 

डिंडोरी जिले के मेहंदवानी के फलवाही गांव की रेखा 2007 में तेजस्विनी महिला स्वसहायता समूह से जुड़ीं. जीवन को दिशा मिली तो उन्होंने गांव-गांव में महिलाओं से संपर्क साधा और महिला समूह खड़े कर दिए. मेहंदवानी विकासखंड की 24 ग्राम पंचायतों और 41 गांवों को जोड़कर एक संघ बनाया और शुरू कर दिया विलुप्त हो रही कोदो-कुटकी की खेती का काम. उस वक़्त शायद रेखा इस बात से अनिभिज्ञ  थी कि वो एक राष्ट्रीय स्तर का कार्य करने जा रही है. कुछ ही वर्षों में उनके समूह ने कोदो कुटकी को राष्ट्रीय परिदृश्य पर ला कर खड़ा कर दिया. 2013 में रेखा को तेजस्विनी महिला स्वसहायता समूह का सचिव बना दिया गया. 2007 उनके पति देव सिंह मजदूर थे लेकिन अब वो कोदो कुटकी की खेती उन्नत तरीके से करते हैं. 

स्वसहायता समूह से जुड़ने के 7 सात साल बाद ही 2014 में रेखा को सीताराम राव एशिया पेसीफिक लाइवलीहुड अवॉर्ड से सम्मानित किया गया. ये सम्मान भी रेखा को उनके द्वारा किये गए खाद्य सुरक्षा, महिलाओं के सामाजिक व आर्थिक उत्थान, स्वास्थ्य संबंधी मुद्दों, महिलाओं व बच्चों के पोषण के क्षेत्र में सराहनीय योगदान का नतीजा था.

"आदिवासी व गरीब -पिछड़े इलाके में जन्म, उसके बाद शादी फिर बच्चे और इस दौरान किन-किन परेशानियों का मैंने सामना किया इसे भी दुनिया के सामने रखूंगी. लेकिन मैंने कभी हिम्मत नहीं हारी. मुझे जैसे ही समूह से मिलने का मौका मिला मानो जैसे शरीर में ऊर्जा का संचार  सा हो गया. पहले महिलाओं को एक करना और फिर मिलजुल विलुप्त हो रही खेती के प्रति लोगों को जागरूक किया. नतीजा आपके सामने है. 

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(Image Credits: Ravivar Vichar)

मध्य प्रदेश महिला वित्त निगम के महाप्रबंधक अरविन्द सिंह भाल जो न्यूयॉर्क में रेखा के साथ थे कहते हैं, " पेंड्राम यूं तो केवल 10वीं तक पढ़ी हैं. लेकिन उनकी वैचारिक शक्ति बहुत मजबूत है. वो अपने धुन की पक्की है और एक मजबूत इच्छा शक्ति वाली महिला है. उन्होंने तेजस्विनी के साथ जुड़कर हजारों महिलाओं की आर्थिक स्थिति को सुधारा". रेखा के साथ उस वक़्त मध्य प्रदेश की महिला एवं विकास मंत्री, और विभाग की प्रमुख सचिव भी अमेरिका गयी थी. लेकिन दुनिया की नज़रों में  रेखा ही थी.

समूह से जुड़ने के कुछ वर्षों बाद रेखा फलवाही गांव से मेहंदवानी ब्लॉक शिफ्ट हो गयी जहां उनके संघ का दफ्तर है. रेखा संघ की सचिव हैं और उनकी देख रेख में  275 SHG  की लगभग  4000 महिलाएं काम करती हैं. रेखा का दिन सुबह 8. 30 पर शुरू हो जाता है जब वो अपने दफ्तर पहुंच जाती हैं. "उसके बाद दिन कब खत्म हो गया पता ही नहीं चलता", वो बताती हैं, "दिन भर लोगों से मिलना, समूह और महासंघ के कामो की मॉनिटरिंग दिन भर चलती रहती है. 

" ये एक बिज़नेस हेड के काम सामान है. कोदो कुटकी के भाव पर नज़र रखनी पड़ती है. जब भाव तेज हुआ तो तुरंत माल निकालना पड़ता है. फिर कूकीज और नमकीन की सप्लाई पर ध्यान भी देना पड़ता है," अपने पल्लू से चेहरे का पसीना पोंछती हुई रेखा बताती हैं. 

रेखा कहती हैं, स्वसहायता समूह के आंदोलन ने आदिवासी समाज के एक बड़े तबके की, जिसमे वो खुद भी शामिल हैं, ज़िंदगी बदल दी. " गरीब हम तब भी थे, गरीब हम अब भी हैं लेकिन उस और इस गरीबी में जमीन आसमान का अंतर है. अब हम मन और विचारों से गरीब नहीं हैं. अगर परेशानी है तो उसका रास्ता निकालना हमे आ गया है," और ऐसा कहते हुए रेखा के चेहरे पर एकआत्मविश्वास भरी मुस्कान थी.

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