अक्सर खिलाड़ी सिर्फ़ ऑन ग्राउंड ही नहीं, अपनी निजी ज़िन्दगी में भी कुछ ऐसा कर जाते हैं कि करोड़ों की प्रेरणा बन जाते हैं. ऐसा ही एक नाम है अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी अंकिता श्रीवास्तव (Ankita Srivastava) का. भोपाल की अंकिता अंतर्राष्ट्रीय एथलीट (International Athlete) है जिसने ओलंपिक संघ द्वारा वर्ल्ड ट्रांसप्लांट गेम्स (World Transplant Games) में भारत (India) के लिए लॉन्ग जम्प (Long Jump) और बॉल थ्रो (Ball Throw) में 2 गोल्ड मेडल (gold medal) और 100 मीटर रेस में 1 ब्रॉन्ज़ मेडल (Bronze Medal) जीता था. 28 साल की अंकिता वर्ल्ड रिकॉर्ड होल्डर, अंतर्राष्ट्रीय एथलीट, लिवर डोनर (Liver doner), इंटरप्रेन्योर, टेड एक्स स्पीकर है. भारत में 40 अंडर 40 एनिमेशन, वीएफएक्स, गेमिंग और कॉमिक्स उद्योग में प्रवेश करने वाली वे सबसे कम उम्र की लड़की भी है.
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आईपी, मीडिया, एंटरटेनमेंट और एडटेक बिजनेस में एक सीरियल एंटरप्रेन्योर के रूप में, अंकिता आठ ब्रांड शुरू कर चुकी है. उनका नाम इंडिया बुक ऑफ रिकॉर्ड्स में है. उन्हें टॉप वर्ल्ड वीमेन लीडर्स, वीमेन इन बिज़नेस, एक्सीलेंस इन स्पोर्ट्स, नेशनल स्पोर्ट्स टाइम्स अवार्ड 2019 सहित कई अवार्ड्स से सम्मानित किया जा चुका है. एथलीट अंकिता ने जितना नाम मैदान पर कमाया उससे कहीं ज़्यादा सम्मान अपनी मां को लिवर डोनेट कर कमा चुकी है.
2014 में अंकिता की मां एक गंभीर बीमारी से जूझ रही थी, जिसकी वजह से उनके लिवर ने काम करना बंद कर दिया. उस समय लिवर डोनेट या ट्रांसप्लांट (Liver transplant) के बारे में कम ही लोगों को पाता था. वे कुछ भी कर के अपनी मां की तकलीफ कम करना चाहती थी. उन्होंने लिवर डोनेट करने की इच्छा जताई, पर वे जब सातवीं कक्षा में पढ़ रही थी और उनका वज़न 50 किलो ही था. घर वालों और डॉक्टरों ने 7 साल इंतजार करने को कहा.
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18 साल की होने पर उन्होंने अपनी मां को लिवर डोनेट किया. उस समय भी परिवार वालों ने ऐसा करने से मना कर दिया. पर मां के प्रति उनके लगाव ने उन्हें लिवर डोनेट करने की हिम्मत दी. अंकिता ने अपना 74 % लिवर डोनेट किया. दिल्ली में ऑपरेशन हुआ, लेकिन फिर भी उनकी मां नहीं बच सकी. अंकिता कहती है, "वो आज भी मेरे साथ हैं. मैं उनका अंश हूं और मेरा अंश उनमें समा गया था."
मां के गुज़र जाने के सदमे ने अंकिता को कई दिनों तक ICU में रखा. अंकिता पहले से ही बास्केटबॉल और स्विमिंग की नेशनल चैंपियन थी. उन्होंने हिम्मत जुटाई और सदमे से उभरने के लिए स्पोर्ट्स का सहारा लिया. फिर जो कुछ उन्होंने अचीव किया वे अखबार के फ्रंट पेज की हैडलाइन बन गई. वे आगे ऑर्गन डोनर्स के लिए काम करना चाहती है. कुछ चीज़े हमारे कंट्रोल में नहीं होती, जैसे किसी अपने का गुज़र जाना. ऐसे में, उनकी यादों को ज़िंदा रख, उनसे हिम्मत लेकर आगे बढ़ने का ही ऑप्शन बचता है. अंकिता ने पहले उन्हें लिवर डोनेट करने की हिम्मत की, और उनके गुज़र जाने के बाद वापिस ज़िंदगी जीने की. उन्होंने साबित कर दिया कि अपने सब्र और हिम्मत से मुश्किल से मुश्किल जंग जीती जा सकती है.