ज़िद के आगे हारी उच्चाईयाँ

आज बछेंद्री पाल जन्मदिन पर यह कहानी देश की हर महिला का मनोबल बढ़ाएगी. बछेंद्री ने साबित कर दिया, 'अगर मन में ठान लो तो बड़ी से बड़ी मुश्किल भी छोटी लगने लगती है.' बछेंद्री ने साबित कर दिया, 'अगर मन में ठान लो तो बड़ी से बड़ी मुश्किल भी छोटी लगने लगती है.'

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रिसिका जोशी
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BAchendri Pal

Image Credit: Ravivar Vichar

29,000 हज़ार फ़ीट की उचाई, हवा के दबाव की कमी, बर्फीला और पथरीला रास्ता...चोटी पर पहुंचने के लिए हज़ारों मुश्किलों का सामना.. व्यक्ति सोचने पर मजबूर हो जाए ! लेकिन उसका संकल्प दृढ था, ना वो डर रही थी, ना ही उसके मन में कोई शंका थी. उसने ठान लिया था कि "मुझे यह करना ही है." उत्तराखंड के छोटे से परिवार में जन्मी, अपने सात भाई बहनों में से बिल्कुल अलग थी यह बच्ची. घर वाले हैरान हो गए, जब उसने बताया कि वह स्कूल टीचर नहीं, प्रोफेशनल मॉउंटेनीर (Professional Mountaineer) बनना चाहती है.

बछेंद्री पाल बचपन से जानती थी कि उसे पहाड़ो से प्यार है, और वह उनके बिना नहीं रह सकती. इसीलिए उन्होंने फैसला कर लिया, और आज वे पूरी दुनिया में Mount Everest पर चढ़ने वाली 'भारत की पहली महिला' के नाम से जानी जाती है. उन्होंने बहुत सी छोटी चोटियों पर फतह हासिल करी थी, इसीलिए उन्हें 'माउंट एवरेस्ट' पर चढ़ने वाली टीम में चुना गया. यह भारत की पहली टीम बनती जो 'माउंट एवेरेस्ट' पर चढ़ने के लिए तैयार की गयी. मई 1984 की शुरुआत में अपनी चढ़ाई शुरू करते हुए, उनकी टीम ने बहुत सी परेशानियों का सामना किया. 

एक Avalanche में उनके सारे टेंट बर्बाद हो गए. यह सब देखकर आधे से ज़्यादा समूह को वापस लौटना पड़ा. लेकिन बछेंद्री पल ठान चुकीं थी, चाहे कुछ भी हो गए, वे अपना यह सपना पूरा कर के ही मानेंगी. तारीक थी 23 मई, 1984...बछेंद्री पाल का सपना सिर्फ कुछ मीटर्स की दुरी पर था, लेकिन यह सफर सबसे ज़्यादा कठिन होने वाला था. हर तरफ से सिर्फ कठिनाइयों जो उन्हें रोकने की पूरी कोशिश करती रहीं. और इन परेशानियों को पीछे छोड़कर आगे बढ़ती बछेंद्री और उनके कुछ साथी. अपने माता-पिता की ही बात वे  मन में दोहरा रहीं थी, "हर मुश्किल वक़्त के बाद अच्छा वक़्त आता ही है." जब उन्होंने उस चोटी पर कब्ज़ा किया, तब उनकी ख़ुशी की कोई सीमा ही नहीं थी. हाथों में भारत का झंडा, गर्व से सीना चौड़ा, और ख़ुशी से आखें नम... 

इस क्षण को अपना बनाने के बाद बछेंद्री ने ठान लिया कि वे उनकी जैसी और भी लड़कियों को उस मुकाम तक पहुंचते देखना चाहती हैं. उन्होंने बहुत से महिला अभियानों को लीड भी किया. भारत सरकार ने उन्हें पद्मश्री, अर्जुन पुरस्कार, राष्ट्रीय साहसिक पुरस्कार, और पद्म भूषण जैसे सम्मानों से नवाज़ा. उन्होंने एक इंटरव्यू में कहा, "मैं अपनी लड़ाई में अकेली थी. लोग अपनी बेटियों को मुझसे बात नहीं करने देते थे क्यूंकि मैं पढ़ी-लिखी थी और फिर भी घर पर रहती थी. सब मेरा मज़ाक उड़ाते थे." आज हर व्यक्ति, जिसनें बछेंद्री पाल का मज़ाक उड़ाया, उनकी तारीफ किये बिना नहीं रह पाता होगा. आज उनके जन्मदिन पर यह कहानी देश की हर महिला का मनोबल बढ़ाएगी. बछेंद्री ने साबित कर दिया, 'अगर मन में ठान लो तो बड़ी से बड़ी मुश्किल भी छोटी लगने लगती है.'

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