इंदौर के लालबाग पैलेस में आयोजित मालवा उत्सव के एक स्टॉल में भीका भाई के पास कुछ लोग आ कर हाथों से बनी सुंदर-सुंदर बांस की टोकनियों का भाव पूछ रहे. कुछ महिलाएं वंदनवार के भाव पूछ रहीं थी. भीका भाई ने किसी को इशारे में तो किसी को आइटम पर लिखे भाव बताए. भीका भाई मुस्कुराते हुए इशारा करते हैं - मैं बोल और सुन नहीं सकता. आप चीज़ पसंद कीजिए और भाव लिखे हुए हैं. " लोगों ने पैसे दिए और चीज़ खरीद कर चले गए. कुछ सालों से भीका भाई ऐसे ही हस्तशिल्प मेले में स्टॉल संभालते हैं. गुजरात के भीका भाई जैसे कई डेफ एंड डम (मूक-बधिर) लोगों के जीवन में एक ऐसी महिला आई जिसने जरुरतमंदों को आत्मनिर्भर बना और गुजरात में मिसाल कायम कर दी. जाग्रति बेन मेहता पूरा जीवन जरूरतमंद लोगों को आत्मनिर्भर बनाने में लगा रही. भारत के ट्रेडिशनल कल्चर को फोकस कर हस्तशिल्प मेले में शामिल होने वाली जाग्रति के साथ दिव्यांग, तलाकशुदा महिलाओं की टीम है जो आत्मनिर्भर भारत का चेहरा बन गए. ये चाहे लोग चाहे बोल-सुन नहीं सकते लेकिन आज मूक-बधिर कलाकारों का हूनर देशभर में बोल रहा है.
संस्था लीडर जाग्रति बेन ने भी अपने स्टॉल को संभाला और लोगों के बीच जगह बनाई (फोटो क्रेडिट : रविवार विचार)
भारत के ट्रेडिशनल कल्चर को बढ़ावा देने वाली जाग्रति बेन गुजरात के पालनपुर से यहां हस्तशिल्प मेले में आईं. जाग्रति कहती हैं -" मैं सिर्फ 12 वीं पास हुई. मेरी शादी कर दी गई. घर की आर्थिक हालत इतनी अच्छी नहीं थी कि माता-पिता मुझे आगे पढ़ा पाते. पिता महेश भाई ड्राइवर और मां दक्षा बेन छोटा-मोटा काम करती थी. ससुराल में मुझे पति पति विजय भाई मेहता ने हौसला दिया. मैंने ग्रेजुएशन की. मैं एक स्कूल में टीचर बन गई. फिर भी घर की आर्थिक स्थिति इतनी अच्छी नहीं थी. मुझे लगा कि मुझ जैसे जाने कितने लोग होंगें जो ऐसे हालातों से जूझ रहे होंगें. मैंने ज़िंदगी में कुछ अलग करने कि ठानी. वक़्त बदला और आज न केवल मैं आर्थिक रूप से निर्भर बनी बल्कि कई लोगों को रोजगार दे सकी.साथ ही मैं विलुप्त होती हमारे भारतीय कलाओं को बचाने की कोशिश कर रहीं हूं। "
गुजरात के पालनपुर से आए मूक-बधिर भीका भाई ने अपना स्टॉल संभाला (फोटो क्रेडिट : रविवार विचार)
देश में बढ़ते स्टार्टअप का बढ़िया उदाहरण वात्सल्य चैरिटेबल संस्था है. रोजगार के लिए यहां हमेशा अवसर तैयार रहते हैं. गुजरात के पालनपुर की जाग्रति आगे बताती है -" निजी स्कूल में जॉब करते हुए मैनें पोस्ट ग्रेजुएट किया. कम्प्यूटर में आगे पढाई की. लगा कि संस्था के बिना मैं लोगों की मदद नहीं कर पाउंगी. वात्सल्य संस्था बनाई. इस समय 20 लोग सक्रिय रूप से जुड़े हैं हैं. इसमें महिलाएं भी हैं. संस्था में छह से ज्यादा दिव्यांग साथी और डेफ एंड डम लोगों को जोड़ा. और वे स्वाभिमान से जिंदगी जी रहे हैं.'
इंदौर के लालबाग पैलेस में आयोजित मालवा उत्सव (फोटो क्रेडिट : रविवार विचार)
देश के बड़े-बड़े शहरों में आयोजित हस्तशिल्प मेले में जाग्रति टीम के साथ शामिल होती है. अब तक उनको कई पुरस्कार मिल चुके हैं. जाग्रति के साथ आए भीका भाई अपनी लीडर जाग्रति की ओर इशारा कर बताते हैं -" जाग्रति ने कई लोगों को की जिंदगी में खुशियां दी. उनको सम्मान से जीना सिखाया. शॉप पर रखा सामान बेचना सिखाया. " पालनपुर में ही संस्था ने अपनी यूनिट डाली. इस यूनिट की कमान भी एक महिला को दी.संस्था मैनेजर अर्चना बेन कहती है-" इस संस्था में महिलाएं और दिव्यांगों को खास जगह दी जाती है. यहां तक कि जाग्रति बेन सभी को पार्टनर की तरह रखती है.कोई भी व्यक्ति कर्मचारी की तरह संस्था में नहीं रहता. संस्था का मकसद जो काम में समर्थ नहीं है,उनको पहले रोजगार का मौका देना है. इस संस्था में कोकोनट फाइबर्स से कई आइटम तैयार किए जाते हैं. घर कि सजावट के परंपरागत आइटम तैयार किए जाते हैं." अभी तक 60 लोग लगातार इससे जुड़े हैं और कई लोगों को ट्रेनिंग दे चुकीं हैं. गुजरात सरकार और कई संगठन इस संस्था को सम्मानित कर चुकी है.