भारतीय भूमि पर अंग्रेज़ो का राज और हर व्यक्ति की सिर्फ एक चाहत, 'स्वराज' ! पुरे भारतवर्ष में सिर्फ एक ही नारे के आवाज़ गूंजा करती थी, आज़ादी... आज़ादी... इन सब के बीच साहस और धैर्य के साथ अपना कुटुंब और सत्ता संभालती रानियां, जिन्होंने क्या कुछ नहीं देखा और सुना, लेकिन ठान रखा था कि हार नहीं मानेंगे. ऐसे कितने नाम जिन्होंने ज़िंदा रहते हुए अपनी भूमि को किसी अंग्रेज़ कि नज़र नहीं लगने दी. रानी लक्ष्मी बाई, रानी दुर्गावती, रानी चेन्नम्मा, अहिल्या बाई होलकर, कुछ ऐसे अमर नाम जिनको सुनते ही दिल में वीरता कि कविताएं चलने लगती है.
वाराणसी कि छोटी सी 'मनु', जिसे बाजीराव द्वितीय के दरबार में सब 'छबीली' के नाम से पुकारते थे, बड़ी होकर इतना महान व्यक्तित्व बनेंगी किसी ने सोचा नहीं होगा. जब मनु बड़ी हुई तो, उन्हें तलवारबाजी , घुड़सवारी का बेहद शौक था. उनका विवाह राजा गंगाधर राव निवालकर से हुआ. शादी के बाद उनका नाम रानी लक्ष्मी बाई रखा गया. सिर्फ 23 साल कि छोटी सी उम्र में ही उन्होंने 1857 के प्रथम भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम में अंग्रेज़ो के पसीने छुड़ा दिए थे. अपनी आखरी सांस तक वे लड़ती रही, जब तक ज़िंदा थी, अंग्रेज़ो कि मजाल नहीं थी कि उनकी झाँसी कर अपनी नज़र डाल पाए.
1524 में दुर्गाष्टमी के दिन जन्मी थी रानी दुर्गावती. अपने नाम कि ही तरह तेज, साहसी, शौर्यमान और सुन्दर होने के कारण इनके बारे में बच्चा-बच्चा जानता था. जातियां अलग होने के बावजूद, राजा संग्राम शाह ने अपने पुत्र दलपत शाह का विवाह उनसे करवाया. अपने राज्य को मुस्लिम वंश के राजाओं से छुड़वाना ही उन्होंने अपना आखरी लक्ष्य बना लिया था. पति कि मृत्यु के बाद भी उन्होंने हार नहीं मानी और अपने मान सम्मान के लिए 1564 तक लड़ती रही.
भारत के दक्षिण के शासकों ने कभी भी अपनी सत्ता अंग्रेजों के सामने नहीं हारी. इन्ही शासकों में एक नाम है रानी चेन्नम्मा का जो कि कित्तूर प्रान्त कि रानी थी. घुड़सवारी, तलवारबाजी, का शौक रखने वाली चेन्नम्मा का विवाह बेलगाम में कित्तूर राजघराने में हुआ. लेकिन सब इतना आसान नहीं होने वाला था. विवाह के कुछ समय बाद उनके बेटे कि मृत्यु हो गयी. बस फिर क्या था, अंग्रेज़ो को जैसे ही ये बात पता पड़ी उन्होंने रानी ने हर तरीके से परेशान करना शुरू कर दिया. लेकिन रानी में हार मानना सीखा ही नहीं था. वो लड़ती रही... आखरी तक... अंग्रेज़ो कि कैद में उन्होंने 21 फरवरी 1829 को वीरगति को प्राप्त हुई.
जब तक भारत का इतिहास ज़िंदा है, तब तक अहिल्या बाई होल्कर का नाम याद रखा जाएगा. इनका विवाह 10 साल कि छोटी सी उम्र में कर दी गयी थी. ये भाले ही किसी बहुत बड़े वंश कि महारानी नहीं थी लेकिन इनके कामों को आज भी याद किया जाता है. जब सत्ता और शासन के नाम पर महिलाओं और बच्चो पर अत्याचार हो रहा था तब वे एक बड़े सहारे के रूप में अपनी प्रजा के सामने आई. उन्होंने कुरीतियों और अंधविश्वास को मिटाने के लिए बहुत काम किये. ना जाने कितनी मंदिर और घाट बनवाए, और कितनो का सहारा बनी. यह करते हुए 1795 में वे अमर हो गयी.
समय आज़ादी से पहले का हो या बाद का, महिलाएं अपने हक़ के लिए हमेशा लड़ती आई है. इस साड़ी रानियों से बौह्त बड़ी सीख ली जा सकती है. आज कि महिला चाहे तो कुछ भी कर सकती है, यह उसे कभी भूलना नहीं चाहिए. परेशानियां तो आएंगी लेकिन जैसे ये साडी वीरांगनायें नहीं हारी उसी तरह आज कि महिला भी ठान ले तो समय बदलने में देर नहीं लगेगी.