छवि ने बदली गांव की छवि

एक महिला जिनका नाम है 'छवि राजावत', इन्होनें भी अपनी अच्छीखासी नौकरी छोड़ दी ताकि वो अपने गांव के हालातों को सुधार पाए. नौकरी भी कोई ऐसी वैसे नहीं, अपने गांव के भले के लिए, 1 लाख रूपए महीने की नौकरी को छोड़ते वक़्त एक बार भी नहीं सोचा.

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रिसिका जोशी
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Chhavi Rajawat

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अक्सर लोगों को कहते हुए सुना होगा- "पढ़ाई कर लो ताकि एक अच्छी नौकरी मिले और गरीबी से आज़ादी!" बच्चे मानते है और एक अच्छी खासी नौकरी करते हुए आपने परिवार के जीवन को सुधारते भी है. लेकिन कुछ ऐसे भी है जो, सिर्फ अपना और अपने परिवार का ही नहीं बल्कि अपने गांव-कस्बे का भी सोचे. ये उन कुछ लोगों में से है जिन्हे खुद से पहले दूसरों का ख़्याल आता है. ऐसी ही एक महिला जिनका नाम है 'छवि राजावत', इन्होनें भी अपनी अच्छीखासी नौकरी छोड़ दी ताकि वो अपने गांव के हालातों को सुधार पाए. नौकरी भी कोई ऐसी वैसे नहीं, छवि एक MBA ग्रेजुएट है जिन्होंने सिर्फ अपने गांव की भाले के लिए, 1 लाख रूपए महीने की नौकरी को छोड़ते वक़्त एक बार भी नहीं सोचा. 

छवि राजावत है हमारे देश की पहली MBA सरपंच है, जिन्होंने राजस्थान के गांव सोढ़ा की चार साल में ही सूरत बदल दी. इनके गांव में पानी की बहुत कमी थी, कच्ची सड़के थी, बिजली की बहुत समस्या रहती थी, और ऐसी ना जाने कितनी परेशानियां जिनको देख कर भी अनदेखा किया जा रहा था. लेकिन छवि से ये सब कुछ देखा नहीं गया और उन्होंने सरपंच बनते ही इन सारे कामो को पूरा करने के लिए काम करना शुरू कर दिया. आज हालत ये है कि सोढा गांव की सूरत ही बदल चुकी है. उन्होंने पानी कि ज़रूरत को पूरा किया, 40 से अधिक सड़के बनवाई, और सौर ऊर्जा पर निर्भरता बढ़ाते हुए जैविक खेती पर ज़्यादा जोर दिया. उनके इन्हीं प्रयासों से आज गांव ही नहीं दूसरे गांवों के लोगों के लिए भी रोल मॉडल बन गई हैं. 

Chhavi Rajawat

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2003 में अपना MBA ख़त्म कर छवि दिल्ली और जयपुर कि काफी बड़ी कम्पनीज़ में नौकरी करी. वे बताती है, "नौकरी छोड़ने का वाकया भी एकदम हुआ. गांव में सूखा पड़ा था. 2010 में होने वाले पंचायत चुनाव में सरपंच की सीट महिला के लिए आरक्षित थी. गांव वालों ने मुझे सरपंच का चुनाव लड़ने कहा." जैसे ही छवि इस चुनाव में खड़ी हुई गांव वालो ने उन्हें जीता दिया और वे सरपंच बन गयी. लेकिन अभी भी सबसे बड़ा सवाल उनके आगे खड़ा था, जो था- पानी कि समस्या. उन्होंने कहा, "सरपंच बनने के बाद सबसे बड़ी चुनौती गांव में पानी की समस्या का हल कराना था, लेकिन इसके लिए पैसे चाहिए थे. सरकार ने पैसा देने के लिए मना कर दिया, निजी कंपनियों ने भी मदद नहीं की.अंत में थककर मैंने अपने पिता, दादा और उनके तीन दोस्तों के प्रयास से चार दिन में 20 लाख रुपए इकट्ठे किए." इसके बाद छवि ने गांव के तालाब खुदवाया और जब बारिश हुई तो तालाब में पानी इकट्‌ठा हो गया. आज गांव में यह स्थिति है कि खेती और पशुपालन के लिए पर्याप्त पानी है. छवि का कहना है- "इस काम को मैं तभी कर पाई, जब परिवार वालों ने साथ दिया." उनके सरपंच बनने से पहले कोई काम नहीं हुआ था. उन्होंने यह साबित कर दिया कि काम करने के लिए लगन चाहिए. चाहे रास्ते में कितनी भी कठिनाइयां क्यों ना हो, ठानने से हर काम मुमकिन हो सकता है. 

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