ताकत, हिम्मत, और, दृढ निश्चय, अगर साथ हो तो किसी भी काम को करने में कोई भी परेशानी नहीं आती. हां, यह बात सच है कि जीवन जीने के लिए हर मोड़ पर कोई न कोई बाधा खड़ी हो ही जाती है, लेकिन उनसे ऊपर बढ़ कर अपनी जीत का परचम लहराने का नाम ही ज़िन्दगी है. कहा जाता है कि भारत पितृसत्तात्मक विचारधारा का देश है. लेकिन इस तरह कि बातों को गलत साबित कर देती है वो महिलाएं जो आए दिन पुरुषों को पीछे छोड़कर नए मुकाम हासिल कर रही है.
एक फील्ड ऑफ़ वर्क है 'भारतीय सिविल सेवा' जिसमे हर साल ना जाने कितने परीक्षार्थी इस परीक्षा को देने के लिए बैठते है, और टॉप करने वाली ज़्यादातर महिलाएं ही होती है. 'किरण बेदी' वो नाम है जिन्होंने सब लोगों के मुँह पर ताले लगा दिए और भारत कि सबसे पहली महिला IPS बनी. वे हर उस लड़की के लिए इंस्पिरेशन है जो आज उस वर्दी कि शोभा बढ़ा रही है. ऐसे ही कुछ नामों का ज़िक्र यहाँ किया गया है, जिन्होंने कानून को मेंटेंन करना ही अपनी ज़िन्दगी का एक मात्र उद्देश्य बना लिया, और आज यह साबित कर रही है कि यह दुनिया सिर्फ पुरुषों कि नहीं है.
पहला नाम है, संजुक्ता पराशर. इन्होनें सिविल सेवा परीक्षा में 85वीं रैंक प्राप्त की. वे चाहती तो प्रशासनिक सेवाओं में आसानी से काम कर सकती थी, लेकिन उनका सपना था की वे आईपीएस बने और देश की सेवा कर सकें. इसीलिए उन्होंने बिना सोचे आईपीएस की सेवा को चुन लिया. असम में सोनितपुर जिले के पुलिस अधीक्षक (एसपी) के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान, उन्होंने सीआरपीएफ़ जवानों की एक टीम का नेतृत्व किया, प्रभावी रूप से बोडो उग्रवादियों को मार गिराया, 64 गिरफ्तारियां कीं और केवल 15 महीनों में कई टन हथियार और गोला-बारूद बरामद किया. उन्होंने भोपाल-उज्जैन ट्रेन विस्फ़ोट की भी जांच की. उन्हें नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट ऑफ़ बोडोलैंड (NDFB) से कई मौत की धमकियाँ मिली हैं. लेकिन वो फिर भी इन सब को इग्नोर करते हुए अपना काम कर रही हैं.
अपराजिता राय, जो की सिक्किम की पहली फीमेल IPS अफसर है, ने अपने पिता को 8 वर्ष की छोटी सी उम्र में ही खो दिया था. उनके पिता एक प्रभागीय वन अधिकारी थे. उस दौरान जब उन्होंने आम लोगों के लिए सरकारी अधिकारियों का बुरा रवैया देखा तभी उन्होंने ठान लिया की वे बड़ी होकर इस सिस्टम को बदलेंगी. उन्होंने सिक्किम की पहली गोरखा महिला आईपीएस अधिकारी बनकर अपने परिवार और महिलाओं का सीना गर्व से चौड़ा कर दिया. वे गर्व से बताती हैं, “मेरे पास आने वाले किसी भी व्यक्ति को उस परेशानी का सामना नहीं करना पड़ता, जो आम तौर पर लोगों को सरकारी कार्यालयों में करना पड़ता है.”
मेरिन जोसेफ़ 25 साल की उम्र में यूपीएससी परीक्षा पास करके केरल कैडर की सबसे कम उम्र की आईपीएस अधिकारी बनीं. 2012 में अपने पहले ही प्रयास में यूपीएससी परीक्षा पास करने के बाद मेरिन आईपीएस में शामिल हुईं. मेरिन ने G20 देशों के लिए Y20 समिट में भारतीय प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व भी किया. मेरिन चर्चा में तब आई जब उन्होंने एक मीडिया प्रकाशन को उन्हें खूबसूरत महिलाओं की लिस्ट में शामिल किया. मेरिन में अपने फेसबुक पोस्ट में ऐसे लगूँ की सोच पर सवाल उठाए और इन लोगों को सबके सामने लाकर खड़ा कर दिया जो महिलाओं को इस तरह ओब्जेक्टिफाई करतें है. उन्होंने अपने इस पोस्ट में ऐसे सोच रखने वाले लोगो के ऊपर बहुत से सवाल उठाए और उन्हें बदलने की भी सलाह दी.
शिमला की देखरेख करने वाली पहली महिला आईपीएस अधिकारी, सौम्या सांबशिवन अपने काम के लिए पूरी तरह समर्पित है और इसी समर्पण के लिए सब लोगों की पसंदीदा भी. 2010 के आईपीएस बैच से पास आउट, उन्होंने हिमाचल प्रदेश के सिरमौर जिले में अपने कार्यकाल के दौरान हत्या के मामलों को सुलझाया और कुछ ड्रग माफ़ियाओं को सलाखों के पीछे पहुंचाया, जो राज्य में सरे नागरिकों पर अपना रुतबा जमा रहे थे.
सोनिया नारंग अपने पिता ए.एन. नारंग से इंस्पायर थीं, जो पुलिस उपाधीक्षक के रूप में रिटायर हुए. सोनिया ने बचपन से सिर्फ एक ही सपना देखा वो था, उस खाकी वर्दी को पहनना. साल 2013 में सोनिआ नारंग पर ये आरोप लगाया गया कि उन्होंने माइनिंग घोटाले में 16,000 करोड़ का घोटाला किया है. इतना बड़ा आरोप लगा लेकिन फिर भी वे डरी नहीं क्यूंकि वे सच्ची थीं. उन्होंने मीडिया में बयान दिया और कहा- "मैं ऐसी जगह कभी असाइन ही नहीं हुई जहां अवैध माइनिंग हो रही हो. इसी कारण मेरा नाम इस घोटाले में आना संभव ही नहीं है." नारंग ने जबरन वसूली रैकेट का भी पर्दाफ़ाश किया, जो लोकायुक्त कार्यालय के भीतर काम करता था. उन्हें वर्तमान में चार साल की अवधि के लिए पुलिस अधीक्षक, राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) के रूप में नियुक्त किया गया था.
रुवेदा सलाम ने इतिहास तब रचा, जब वो कश्मीर की पहली आईपीएस अफ़सर बनीं. रुवेदा के पिता हमेशा से चाहते थे कि उनकी बेटी IPS अफसर बने. पिता की इस इच्छा को पूरा करने के लिए वे जुट गयी और श्रीनगर से एमबीबीएस करने के बाद दो बार सिविल सेवा परीक्षा उत्तीर्ण की. अपने दूसरे प्रयास में उन्होंने आईपीएस कैडर प्राप्त कर लिया. उन्होंने हैदराबाद में अपना प्रशिक्षण प्राप्त किया और चेन्नई में सहायक पुलिस आयुक्त के रूप में नियुक्त हुईं. इस मुकाम को हासिल करने के बाद रूवेदा ने कई प्रेरक भाषण दिए और लड़कियों को जम्मू-कश्मीर में आईपीएस परीक्षा में बैठने के लिए प्रोत्साहित किया. राजस्व सेवा का विकल्प चुनने के बाद आज वे जम्मू में इनकम टैक्स असिस्टेंट कमिश्नर हैं.
2001 में अपने 150 साल के लंबे इतिहास में मुंबई के अपराध शाखा विभाग की प्रमुख बनने वाली पहली महिला, मीरा बोंवान्कर एक ताकतवर व्यक्तिव्य की महिला है. उन्होंने अबू सलेम के प्रत्यर्पण (एक्सट्रडीशन), जलगाँव सेक्स स्कैंडल, इकबाल मिर्ची प्रत्यर्पण मामले सहित कई सीरियस मामलों को सुलझाया है. अपने बेबाक़ रवैये के लिए प्रचलित, वो मर्दानी फ़िल्म के पीछे की प्रेरणा हैं. उन्होंने साल 2015 में याकूब मेमन की फांसी भी देखी, जिसे 1993 के मुंबई सीरियल धमाकों के लिए दोषी ठहराया गया था. मीरा को साल 1997 में पुलिस पदक और महानिदेशक के प्रतीक चिन्ह के साथ राष्ट्रपति पदक मिला. उनका दृढ़ विश्वास है कि महिलाएं पुरुषों की तुलना में बहुत अधिक धैर्यवान, सक्षम और साधन संपन्न हैं. मीरा हमेशा लड़कियों और महिलाओं को यह सन्देश देती रहती है कि वे अपने आत्मसम्मान को कभी न गिरने दे और खुद पर कभी शक न करें.
फतेहाबाद में पुलिस होने के साथ एक पेंटर की बेटी, संगीता कालिया को आईपीएस अधिकारी बनने की प्रेरणा एक्ट्रेस कविता चौधरी से मिली, जिन्होंने 90 के दशक की टीवी सीरीज़ ‘उड़ान’ में एक आईपीएस अधिकारी की भूमिका निभाई थी. अर्थशास्त्र में ग्रेजुएशन डिग्री के बाद, संगीता ने एक सहायक प्रोफ़ेसर के रूप में काम किया. जब वे IPS के रूप में कार्यरत थीं, तब हरियाणा के स्वास्थ्य मंत्री अनिल विज़ के साथ उनकी तीखी नोकझोंक हुई थी. उन्हें मंत्री द्वारा बैठक कक्ष छोड़ने के लिए कहा गया. उन्होंने कुछ ऐसी चीज़ें करने से इनकार कर दिया, जिसके कारण उनका ट्रांसफर कर दिया गया. एक मंत्री के द्वारा दिखाई गयी क्रूरता और शक्ति के दुरुपयोग के खिलाफ़ खड़े होने के लिए उन्हें भारी समर्थन मिला.
साल 2016 की जुलाई में, सुभाषिनी शंकरन भारत की आज़ादी के बाद मुख्यमंत्री की सुरक्षा सँभालने वाली पहली महिला आईपीएस अधिकारी बनीं. 23 दिसंबर 2014 को नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट ऑफ़ बोडोलैंड से अलग हुए समूह के उग्रवादियों ने सोनितपुर जिले में 30 आदिवासियों की हत्या कर दी थी. स्थिति की संवेदनशीलता को देखते हुए सुभाषिनी और उनकी टीम 20 मिनट के अंदर मौके पर पहुंच गई. असम में तैनात रहते हुए सुबाशिनी पास के काजीरंगा से संचालित एक अवैध गिरोह का भंडाफोड़ भी कर चुकी है.