खेती से पद्मश्री तक का सफ़र साइकल से

राजकुमारी देवी ने बदलते समय के साथ ख़ुद को ढाला, नई सोच के साथ कुछ नया किया, और अपने साथ दूसरों को भी आर्थिक आज़ादी की राह पर चलने में मदद की.

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मिस्बाह
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“मुझे थोड़ी देर के लिए भी खाली बैठना पसंद नहीं है. डॉक्टर ने अभी साइकिल चलाने से मना कर दिया है, लेकिन दूसरी महिलाओं के साथ मिलकर अचार बनाने का काम मैं आज भी करती हूं.” किसान चाची के इस न थकने वाले अंदाज़ और हमेशा कुछ करते रहने के नज़रिये ने उन्हें पद्मश्री दिलाया. 66 वर्षीय राजकुमारी देवी बिहार के मुजफ्फरपुर ज़िले के सरैया प्रखंड के आनंदपुर गांव की रहनेवाली है. 

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देखा तो टीचर बनने का सपना था, लेकिन घर की आर्थिक स्थिति सुधारने के लिए पति के साथ खेती में मदद करने लगी. धीरे-धीरे वे जैविक तरीकों से खेती करने लगी जिससे उत्पादन बढ़ते गया और उनके हालात सुधरने लगे. आस-पास के किसान उनसे सलाह लेने आते और उनके तरीके सीखते. बाज़ार न मिलने पर, रखे-रखे फ़सल ख़राब होने लगती है. राजकुमारी ने ऐसे समय में उस फसल से दूसरे प्रोडक्ट्स बनाने का सोचा. अचार बनाना तो आता था, लेकिन बड़े पैमाने पर उसे बेचने की समझ नहीं थी. कुछ नया करने के लिए, नया सीखना पड़ता है. यही सोच कर उन्होंने विज्ञान केंद्र से फ़ूड प्रॉसेसिंग की ट्रेनिंग ली और घर से काम शुरू किया. अचार बनाने के साथ, साइकिल चलाना भी सीखा. अचार के छोटे पैकेट साइकिल से जाकर बेचना शुरू किया. उनके स्वाद को लोगों ने ख़ूब पसंद किया और साइकिल चाची नाम से पहचान बनी. 

उन्होंने जो कुछ सीखा, उसे आस-पास की महिलाओं को भी समझाया. उनका मानना था कि खेती करने में महिलाएं पुरुषों का साथ देती हैं. जिसके बदले पैसे न मिलने की वजह से उनकी मेहनत की क़द्र नहीं होती. इसीलिए,वे महिलाओं को खुदका प्रोडक्ट बनाने और उसे बेचने के लिए प्रेरित करती हैं. उन्होंने महिलाओं को मशरूम उगाने और इससे प्रोडक्ट्स बनाने के लिए जागरूक किया. चावल उगाने के साथ, उसके पोहे और पापड़ बनाने की सलाह दी. 

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घर से बाहर निकलते ही अवसर ख़ुद-ब-ख़ुद उन्हें मिलते चले गए. वे महिला समूहों से जुड़ी और मेलों में अपने अचार और मुरब्बे को बेचा. साल 2006 में उन्हें ‘किसान श्री सम्मान’ मिला था, जिसके साथ राजकुमारी देवी को 'किसान चाची' का टैग दिया गया. आज उनके बनाये अचार और मुरब्बे, देश-विदेश में पसंद किए जा रहे हैं.  किसान चाची के 20 से ज़्यादा प्रकार के अचार पटना खादी मॉल, दिल्ली के प्रगति मैदान और विस्कोमान सहकारिता विभाग के अलावा कई जगह बिक रहे हैं.  

मुश्किलों के आगे घुटने टेक देना आसान होता है, लेकिन कुछ नया सीख अपनी तक़दीर बदलने के लिए होंसला और मेहनत चाहिए. राजकुमारी देवी ने बदलते समय के साथ ख़ुद को ढाला, नई सोच के साथ कुछ नया किया, और अपने साथ दूसरों को भी आर्थिक आज़ादी की राह पर चलने में मदद की.   

 

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