अभिमन्यु गर्भ संस्कार का आधार

भारत के प्रमुख ग्रंथ, वेदों और कथाओं में गर्भ संस्कार का ज़िक्र है. महाभारत काल में अभिमन्यु का चक्रव्यू भेदना हो या अष्टांगवक्र का प्रसंग, इस बात को प्रमाणित कर देते हैं कि गर्भ में पल रहे बच्चे पर मां की दिनचर्या और बाहरी माहौल का सीधा असर पड़ता है.

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गर्भ संस्कार को अपनाती प्रिग्नेंट महिला 

गर्भ संस्कार को अपनाती प्रिग्नेंट महिला 

"जब पहली बार मैंने अपने नानाजी पंडित राम स्वरूप शास्त्री से अभिमन्यु और अष्टांगवक्र की कहानी गहराई से सुनी,समझ ही नहीं सकी कि गर्भ संस्कार भी जीवन का एक बहुत संवेदनशील हिस्सा है.शायद मैं भी उन सब सामान्य महिलाओं में शामिल थी जो प्रिग्नेंसी का मतलब किसी भी महिला के वो खास नौ माह और फिर डिलीवरी. कहानी सुनकर उसी दिन संकल्प लिया और तभी से इन बीस सालों से गर्भ संस्कार के लिए महिलाओं को जागरूक करने के लिए जीवन समर्पित कर दिया." इंदौर की सोशल एक्टिविस्ट और शिक्षाविद गरिमा दाहिमा ने गर्व से यह बात कही. अर्घ्य संस्थान की फाउंडर गरिमा जरूरतमंद महिलाओं को पूरे आठ महीने ख़ास तरह से ट्रेनिंग दे रहीं हैं.उनके इस प्रयोग से न केवल देश में बल्कि विदेशों से भी प्रिग्नेंट महिलाएं संपर्क कर संस्कार प्रक्रिया में हिस्सा लेती हैं.

गरिमा आगे बताती है-" अधिकांश महिलाएं प्रिग्नेंट होने के बाद सिर्फ आयरन की टेबलेट्स और थोड़ा बहुत घूम-फिर लेने को ही प्रिग्नेंसी पीरियड का प्रोग्रेम मान लेती हैं. जबकि प्रिग्नेंसी टाइम को लेकर बहुत ध्यान देने की जरुरत होती है. महिलाएं परिवार और दूसरे कामों में उलझ कर रह जाती है. और खुद की हेल्थ से बेखबर रहती है. और यही मातृत्व मृत्यु दर का एक कारण भी बन जाता है."

Dr garima

गरिमा दाहिमा अपनी अर्घ्य संस्था टीम को प्रोजेक्ट समझाती हुई 

ऑस्ट्रेलिया के मेलबोर्न की फिज़ियोथेरेपिस्ट शिखा खुद ने इस संस्कार को अपनाया. शिखा कहती हैं-" विदेशों में प्रिग्नेंट महिला और उसके पति अब इस टाइम को बहुत  गंभीरता से लेते हैं,जबकि भारत में अभी और जागरूकता बढ़ानी होगी." यहां तक कि गायनेकोलॉजिस्ट डॉ. रोहिता अग्रवाल कहती हैं-" गर्भ संस्कार को लेकर अब सभी परिवार में महिलाओं को ध्यान देना चाहिए. वे खुद इस  संस्था में आकर इसका लाभ ले चुकी हैं." शिशुरोग विशेषज्ञ डॉ. बानी बरुड़ का कहना है -"इन नौ महीने में यदि प्रिग्नेंट महिला अपने पर ध्यान दे तो खुद के साथ स्वस्थ बच्चे को भी जन्म देंगी."       

Dr.Garima

गर्भ संस्कार मुद्रा में बैठी प्रिग्नेंट महिला और उनके पति  

भारत में भी ऐसी प्रिग्नेंट महिलाओं को प्रधान मंत्री मातृ योजना का लाभ दिया जा रहा है. ऐसी महिलाओं को सरकार पांच हजार रुपए की सहायता कर रही है.गरिमा को इस प्रक्रिया से मिलने वाले शुल्क को खुद पर खर्च नहीं करती बल्कि संस्था को संवारने में खर्च कर देती हैं. इसी संस्था का अनुभव बताती हुई मिताली कहती हैं -" मैंने महसूस किया कि गर्भ संस्कार को अपनाने से जन्म के बाद बच्चे अधिक संवेदनशील और प्रतिभावान होते हैं. उनमें निर्णय लेने कि क्षमता अधिक देखी गई."   

भारत के प्रमुख ग्रंथ, वेदों और कथाओं में गर्भ संस्कार और उसके प्रभाव का ज़िक्र है. महाभारत काल में अभिमन्यु का चक्रव्यू भेदना हो या अष्टांगवक्र का प्रसंग इस बात को प्रमाणित कर देते हैं कि गर्भ में पल रहे बच्चे पर मां की दिनचर्या और बाहरी माहौल का सीधा असर पड़ता है.श्रीकृष्ण- अर्जुन संवाद चैप्टर तीन में आत्मा की की बात कही गई. जिसमें कृष्ण ने बताया कि आत्मा खुद गर्भ तय तय करती है. ऐसी प्रमाणिकता के बाद तो किसी भी अभिभावक को गर्भ धारण करने के बाद उसका मौन स्वागत करना चाहिए। गरिमा कहती हैं - इसी सिद्धांतों और ग्रंथों में छुपे प्रामाणिक तथ्यों का अध्ययन कर मैंने कोर्स डिज़ाइन किया. पतंजलि के आठ पदों को आधार बना कर पूरे आठ महीने महिलाओं को शारीरिक और मानसिक रूप से तैयार करती है. इसमें ध्यान, प्राणायाम, भोजन, व्यायाम के साथ पति की काउंसलिंग करती हूं."

 गर्भ संस्कार

गर्भ संस्कार मुद्रा में बैठी प्रिग्नेंट महिला

अर्घ्य संस्थान में कई विशेष बच्चों को भी गरिमा अपनी टीम के साथ पढ़ा रही है. इस टीम में शामिल एकता दुबे,रूही,वैशाली नेगी और सोमा बताती हैं-" इस संस्था में तब और ख़ुशी होती है जब गर्भ संस्कार को अपना कर जन्म देने वाली महिलाओं के बच्चे भी यहां आते हैं. संस्थापक गरिमा इस बारे में कहती हैं-" डिलीवरी के बाद बेबी केयर, ब्रेस्ट फीडिंग और मसाज जैसे प्रक्रिया कि भी काउंसलिंग की जाती है.आजकल बाहरी किसी महिला कि मदद से बच्चों की मालिश करवाते हैं. बच्चे इस दौरान बहुत अधिक रोते हैं. यह गलत शुरुआत है. पहले घर की ही दादी-नानी या अनुभवी मसाज करती थी. वह लविंग टच होता था. यह जरुरी है."    

गरिमा की  इच्छा है कि बच्चों में तुलना और प्रतियोगिता के भाव ख़त्म कर उनके मन में करुणा और समानुभूति का बीज रोपना है. यह तभी संभव होगा जब समाज में गिफ्ट कल्चर का प्रचलन बढ़े. लोग एक दूसरे की योग्यताओं और हूनर को सांझा करे. 

पंडित राम स्वरूप शास्त्री अभिमन्यु और अष्टांगवक्र गर्भ संस्कार