"क्यों नहीं ले सकते हम जोखिम भरे रिपोर्टिंग असाइनमेंट ?" ये सवाल था, सिक्किम की पहली महिला पत्रकार 'संतोष नीरश' का जो सब से अलग थीं. अपने इरादे की पक्की और खुद को किसी पुरष से काम न समझने वाली थीं संतोष. 1970 में जब पूर्व प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई ने नाथूला पास (Nathula Pass) का दौरा किया, तो इस दौरे को कवर करने के लिए महिला पत्रकारों को इजाज़त नहीं दी गयी. कहा गया कि, 'महिलाएं इस दौरे को कवर नहीं कर सकतीं क्यूंकि, Nathula Pass एक खतरनाक और जोखिम भरी जगह है.' उस वक़्त संतोष निरश ने ठान लिया कि अब तो इस दौरे को कवर करने जाना ही है. उन्होंने तब तक हार नहीं मानी जब तक उन्हें परमिशन नहीं दे दी गयी.
संतोष निरश को सब प्यार से 'माता जी' और 'मम्मी' कहते थे. संतोष नीरश का जन्म 1928 में पिंड दादान खान में हुआ, जो कि आज़ादी के बाद पाकिस्तान का हिस्सा हैं. वे 1959 में वेस्ट पॉइंट स्कूल की प्रधानाध्यापिका के रूप में सिक्किम चली गईं. उनके पति, प्रेम सागर निरश, एक सेना अधिकारी थे. इनके साथ मिलकर संतोष ने सिक्किम की पहली अंग्रेजी मासिक पत्रिका शुरू की. घर पर एक छोटी बेटी, और साथ में अपने पत्रकारिता का फैसला, हर काम को संभाला था संतोष निरश ने. उनका परिवार भी संतोष के साथ हमेशा खड़ा रहा. वे हिंसा के सख़्त खिलाफ थीं. एक कार्यक्रम में, जिसे वे कवर करने गयी थीं, उन्होंने एक नेता को चिट पास करी जिसमें लिखा था, "विनम्र रहें और अपने भाषण में लोगों को गाली न दें".
दिल कुमारी भंडारी जब सिक्किम की पहली MP बनी तो संतोष इतना खुश हुई कि उन्होंने इसे महिला सशक्तिकरण की दिशा में आगे बढ़ने का बड़ा कदम कहा और महिलाओं को आज़ादी के बारे में एक दमदार आर्टिकल (Article) भी लिखा. वे 'सिक्किम केंद्रीय विश्वविद्यालय यौन उत्पीड़न समिति' की सदस्य, 'सिक्किम एड्स कंट्रोल सोसाइटी' की राजदूत, और 'सिक्किम प्रेस क्लब और महिला परिषद' की सदस्य थीं. उन्होंने पारिवारिक अदालतों में एक Consultant के रूप में भी काम किया. उन्हें 2018 में सिक्किम सरकार द्वारा कंचनजंगा कलम पुरस्कार (Kangchenjunga Kalam Award), पत्रकारिता में सिक्किम सेवा सम्मान (Sikkim Service Award), निर्माण पुरस्कार, काशीराज प्रधान लाइफटाइम पत्रकारिता पुरस्कार (Kashiraj Pradhan Lifetime Journalism Award) से सम्मानित किया गया.
संतोष निरश की बेटी नीता निरश ने आज भी अपनी माँ की विरासत और उनकी बातों को सिक्किम में ज़िंदा रखा है. आज Sikkim Foundation Day पर संतोष नरेश की कहानी को हर महिला को सुनना चाहिए. इनकी कहानी महिला सशक्तिकरण की मिसाल है. अगर देश की हर महिला संतोष निरश की तरह ठान ले, तो बदलाव निश्चित हैं.