"यदि हम काली इनर्जी से समय रहते नहीं लड़े तो आने वाली पीढ़ी न धरती देख पाएगी न ये खूबसूरत प्रकृति... इससे निपटना जरुरी है. ये काली इनर्जी ही हमारे अस्तित्व का बड़ा और एक मात्र खतरा है. ग्लोबल वार्मिंग को या तो हम समझ नहीं पा रहे या उस दिशा में प्रयास ठीक से नहीं हो पा रहे. हमारी सरकारें शॉर्ट टर्म के लिए बनती है. यही वजह से इस दिशा में कोई ठोस प्लान नहीं बन पाया. यह समस्या कोई एक इलाके या कोई एक देश की नहीं बल्कि दुनिया की है. इसमें सरकारों नहीं बल्कि जन आंदोलन की जरूरत है. इस मकसद से ही मैं अपना घर कर छोड़ निकल गया." ग्यारह वर्षों के लिए अपने घर को त्याग कर सिर्फ और सिर्फ इनर्जी स्वराज मिशन को लेकर निकले प्रो. चेतन सिंह सोलंकी ने कही. अभी तक वे 870 दिनों की यह स्वराज यात्रा कर चुकें हैं. प्रो. सोलंकी आईआईटी बॉम्बे में प्रोफेसर पद पर हैं.सोलंकी मप्र के सोलर इनर्जी अभियान के एम्बेसेडर भी हैं.
पूरे देश में सोलर मेन और सोलर गांधी के नाम से ख्यात चेतन सिंह सोलंकी ने आगे बताया -" काली इनर्जी का मतलब कोल,ऑयल और गैस है. यही कार्बन उत्सर्जन की जड़ है. इनके उपयोग से ही कॉर्बन डाय ऑक्साइड (CO2) की मात्रा प्रकृति में बढ़ गई. बढ़ते तापमान की वजह से ही वॉयलेंस,वॉर,डिप्रेशन,जैसे अनेक कारण बन रहे हैं.यह दुखद है कि न राजनीतिज्ञों ने न पर्यावरणविदों ने और न ही पॉलिसी मेकर्स लोगों ने अब तक कोई सही दिशा में काम किया."
ग्लोबल वॉर्मिंग को लेकर सभी देश बैठकें कर रहे. करोड़ों रुपए खर्च कर रहे. बावजूद भारत में भी कार्बन उत्सर्जन कई गुना बढ़ा है.सोलर से जुडी चर्चित बुक इनर्जी स्वराज भी प्रो सोलंकी ने लिखी.लगातार बिगड़ते क्लाइमेट का असर हाल में महाराष्ट्र में अप्रैल महीने में ही लू से 11 लोगों की मौत को ही माना जा रहा है. पाकिस्तान में बाढ़ हो या अन्य देशों में बिगड़ते हालात के पीछे भी ग्लोबल वार्मिंग ही है.
प्रो. सोलंकी आगे बताते हैं-" इस ग्लोबल वार्मिंग से निपटने के लिए भी रुट कॉज़ इनर्जी ही है. मैंने अपनी बुक की शुरुआत गीता के श्लोक से की. जिसमें कहा गया जब जब धर्म की हानि होती है. अधर्म बढ़ता है उस समय रास्ता भी निकलता है. इस समय ग्लोबल वार्मिंग और बिगड़ते क्लाइमेट ही आधुनिक अधर्म है और इसी से धरती को बचाना है. मुझे कभी-कभी आश्चर्य होता है गांधी सौ साल पहले कह गए,प्रकृति सब के लिए है. पर्याप्त है. सामान अनुपात में उपयोग हो. महत्वकांशी लोगों के लिए कम है."
लोग यदि अपनी जीवनशैली गांधी की तरह अपनाने लगे तो हम ग्लोबल वार्मिंग से निपट सकते हैं. जब सौ साल पहले ग्लोबल वार्मिंग की चर्चा भी नहीं थी उस समय भी यही हमारी भारतीय संस्कृति थी. हम इन सिद्धांतो को लेकर वापस विश्व के नक़्शे पर लीड करते हुए उभर सकते हैं. पिछले कुछ सालों से सोलर इनर्जी के उपयोग को बढ़ावा दिया जा रहा है. इसके भी आने वाले बीस सालों बाद घातक परिणाम सामने आएंगे ,जससे सभी लोग बेखबर हैं. इन सब समस्या और आशंकाओं को देखकर प्रो. सोलंकी ने नए फॉर्मूले और सिद्धांत दिए.
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दिल्ली में इंडिया गेट के सामने क्लाइमेट चेंज को समझाते प्रो.सोलंकी (Image Credits: Ravivar Vichar)
प्रो सोलंकी का कहना है-" हमारी धरती पर सब सीमित है. संसाधन भी वही हैं. इनका उपयोग भी सीमित हो. दूसरा जो भी प्रोडक्शन वितरित हो न कि केंद्रित. इसके साथ मैं 'AMG' सिद्धांत पर जीने का जन आंदोलन तैयार कर रहा हूं.इसमें A से अवॉयड -मतलब हमें इनर्जी चाहे सोलर ही क्यों न हो उससे भी बचना होगा. हम `फ्रिज,टीवी,एसी सहित कई ऐसे आईटम का उपयोग कर रहे जिनको हटा सकतें हैं. M से मिनिमाइज़. यदि जरूरत भी हो तो हम उसका काम से काम उपयोग करें.तीसरा पॉइंट G है. यानि जनरेट. मैं चाहता हूं कि हर व्यक्ति इनर्जी के लिए आत्मनिर्भर बने. जितनी जरूरत है वह घर कि छत पर बना ले."
सोलर इनर्जी को लेकर चल रहे अभियान और सब्सिडी की भी जरूरत इन सिद्धांतों से घट जाएगी.आखिर सोलर इनर्जी को लेकर भी बैटरी,प्लेट्स,और कई प्रकार के सामान की अधिकता भी कहीं न कहीं बीस साल बाद मुसीबत बनेगी.प्रो. सोलंकी के विचारों को मप्र और गोवा की सरकारों ने लागू किया है. वे सोलर प्रक्रिया से चलने वाले वहां में ही रह कर जन आंदोलन खड़ा करने में जुटे हैं.अब तक 22 राज्यों से उनकी यात्रा गुजर चुकी है. वे शैक्षणिक संस्थानों,पब्लिक प्लेस, अधिकारियों के साथ युवाओं को ग्लोबल वार्मिंग से सचेत कर इनर्जी स्वराज मिशन में लगे हुए हैं. इसके पहले भी प्रो. सोलंकी 2019 में महात्मा गांधी की 150 वीं जयंती पर वर्ल्ड टूर में लगभग 30 देशों की यात्रा कर स्वराज इनर्जी के मिशन में एक मिलियन युवाओं को जोड़ा. यही नहीं 54 देशों के युवाओं ने एक साथ सोलर इनर्जी को लेकर शपथ ली थी.