सपने वाली दीदी!

हिमाचल की ठंडी खूबसूरत वादियों के बीच बसे कांगड़ा जिले के कनवाड़ी गांव में है सपना सेंटर. इस अनूठे सेंटर में आत्मविश्वास बोया जाता हैं. खुशियों के फूल खिलते हैं. रोजगार के फल लगते हैं. और यहां उदासी की कोई जगह नहीं. जगह है तो सिर्फ महिलाओं के सपनों की.

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Image Credits: Surbhi Yadav

आपने अब तक पान सेंटर,चाय सेंटर,सेलून सेंटर और ऐसे तमाम कई सेंटर्स तो सुने होंगे. क्या आपने कभी सपना सेंटर का नाम सुना है. शायद नहीं... आपको एक ऐसे ही सपना (ड्रीम) सेंटर ले चलते हैं. हिमाचल की ठंडी खूबसूरत वादियों के बीच बसे कांगड़ा जिले के कनवाड़ी गांव में है यह सपना सेंटर.  इस अनूठे सेंटर में आत्मविश्वास बोया जाता हैं. खुशियों के फूल खिलते हैं. रोजगार के फल लगते हैं. और यहां उदासी की कोई जगह नहीं. जगह है तो सिर्फ महिलाओं के सपनों की.इस मिशन को साकार कर रही है आईआईटी  दिल्ली की पढ़ी और अमेरिका से मास्टर्स कर चुकी सुरभि यादव. 

सुरभि यादव कहती है -"आईआईटी की जब स्टूडेंट थी. अपने पिताजी के साथ पैतृक गांव माधोपुरा (दतिया) गई. जब तुम पढ़-लिख कर बड़ी नौकरी करने लगो. हमें भी कहीं नौकर रख लेना या कोई भी काम पर रख लेना. ये बातें गांव की हम-उम्र लड़कियां ही नहीं गांव की बल्कि काकी,दादी ने मुझसे कही. उस रात मुझे नींद नहीं आई. यह कैसी ग्रामीण व्यवस्था ! जो गांव की महिलाएं सुबह से शाम घर के काम करे. मवेशी की देखभाल करे. खेतों में मजदूरी करे. और इतनी काबिलियत के बाद उसका कोई सपना नहीं. बस ऐसी महिलाओं के लिए कुछ करने की मन में ठानी ली. मेरे माता-पिता का भी सिद्धांत था कि आपकी पढ़ाई गांव के काम न आए तो कोई काम की नहीं."  

पिछले तीन साल से गांव कनवाड़ी खुली वादियों में देश का यह सबसे अनूठा सेंटर चल रहा है. यहां इस बार अलग-अलग सात राज्यों की 35 युवतियां निःशुल्क आवासीय व्यवस्था में रह कर अपना जीवन संवार रही है. सुरभि आगे बताती है -" इस सेंटर की सोच बिलकुल अलग है. मेरा मानना है किसी भी महिला की पहचान समस्या से नहीं बल्कि उसे संभावनाओं से जाना जाए.दुनिया तो आगे बढ़ रही है ,लेकिन यह सुविधा और सोच ग्रामीण परिवेश तक नहीं पहुंच पा रही है. आखिर महिलाओं की सोच सिलाई,कढ़ाई,बुनाई से कब आगे बढ़ेगी? इसी सोच को से निकालने के लिए मैंने "साझे सपने " संस्था बनाई."

"साझे सपने" की शुरुआत हुई. पहले ही साल कोरोना काल आ जाने से सुरभि ने ऑनलाइन क्लास लेना शुरू की. एंड्रॉयड मोबाइल नहीं थे. लड़कियों ने की-पेड पर सालभर सीखा. यहीं से पढ़ाई और सेंटर की लय बनने लगी. करोड़ों रुपए के सालाना पैकेज और विदेशों के ऐशो-आराम को ठुकरा कर सुरभि ने भारत में महिलाओं के लिए जीवन समर्पित कर दिया. अब सुरभि इलाकों में सपने वाली दीदी के नाम से पहचाने जाने लगी है. 

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Image Credits: Surbhi Yadav

इस समय यहां सात राज्यों बिहार,मप्र,उप्र,राजस्थान,झारखण्ड,महाराष्ट्र और हिमाचल राज्य की युवतियां रह रहीं हैं.अधिकांश महिलाएं दलित, पिछड़े और गरीब परिवारों से आईं. सुरभि संस्था को लेकर बताती है - " मैंने तय किया औरतें अपने सपने लेकर यहां आए. आधुनिक कोडिंग,प्रोजेक्ट मैनेजमेंट और प्राथमिक गणित टीचर के एक साल सीमा के कोर्स डिज़ाइन किए. साथ 100 % जॉब ग्यारंटी. इन्हें पंद्रह से तीस हजार रूपये हर महीने की नौकरी आराम से मिल रही है. ये यंग वुमन 18 से 23 साल के बीच की हैं."

संस्था साझे सपने की गतिविधियों को देख मेटा,टाटा ट्रस्ट,नच, प्रवाह ,अविष्कार जैसी संस्थाओं ने फंडिंग कर सुरभि का हौसला बढ़ाया है. उज्जैन जिले की हर्षिता जहां कोडर बन गई वहीं इंदु कुमारी आईआईएम अहमदाबाद में प्रोजेक्ट मैनेजर है. शदीशुदा अलीशा खान   कम्युनिकेशन असिस्टेंट तो कनवाड़ी में ही आरती कुमारी मेथ्स टीचर बन गई. इनका कहना है सुरभि दीदी ने हमने सपने देखना और उन्हें सच करना सिखाया.

संस्था के काम और मिशन को देखते हुए सुरभि के साथ अब आईईटी बॉम्बे,दिल्ली सहित कई समाजसेवी लोग अपनी सेवाएं दे रहे हैं. 

सुरभि आगे कहती हैं -" मेरा ख्वाब है कि महिलाएं पेन नहीं पोटेंशियल देखे. संघर्ष नहीं संकल्प लें.  मिशन है कि देश के "हर गांव हो सपना सेंटर की छांव " का सेंटर हो ,जहां हर महिलाओं को सपने देखने का हक़ हो और समाज उसे पूरा करने में मदद करे.    

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