Evolution के हिसाब से, 'धरती पर हर प्रजाति का सुरक्षित रहना ज़रूरी है, क्यूंकि प्रजातियां एक दूसरे पर हर डाइरेक्टली और इनडाइरेक्टली डिपेंडेंट है.' ऐसे में Flora और Fauna की संरक्षण हमें ही करना होगा. वह सुरक्षित होंगे तो हम भी सुरक्षित रहेंगे. इसी बात को ध्यान में रखते हुए इन प्रजातियों का कंज़र्वेशन करने के लिए बहुत से व्यक्ति और ऑर्गनाइज़शन काम कर रहें हैं. देश की सबसे ज़्यादा काम करने वाली कंज़र्वेशनिस्ट (Conservationist) अरुणिमा सिंह (Arunima Singh) भी इन मूक जानवरों को बचाकर, उनके लिए अच्छे हैबिटैट (Habitat) बनाने का कार्य करतीं हैं. ओक्टोबर 2021 में उन्हें Natwest Group Earth Heroes Save the Species Award से भी सम्मान्नित गया था. वे उत्तर भारत के मीठे पानी के टॉर्टोइस, टर्टल्स, क्रॉकोडिल्स, और डॉल्फिंस की सुरक्षा में तैनात रहती हैं.
2013 से Arunima और Turtle Survival Alliance (TSA) के कर्मचारियों ने संरक्षण को आगे बढ़ाने के लिए बहुत सी पहलों का उपयोग किया- ग्रामीण और शहरी समुदायों के 50,000 से अधिक बच्चों को औपचारिक और अनौपचारिक तरीके से Freshwater Reptiles के संरक्षण के बारे में शिक्षित करने से लेकर उत्तर प्रदेश में पिछले 8 वर्षों में 28,000 से अधिक कछुओं, 25 गंगा डॉल्फ़िन, 6 मार्श मगरमच्छ और 4 घड़ियाल के बचाव, पुनर्वास (rehabilitation) और release में सहायता, सब किया गया. अरुणिमा बताती हैं- "जब मैं छोटी थी, तब अक्सर दादी दादी के साथ नदी घूमने और वाटर एनिमल्स को देखने जाया करती थी. बड़े होने पर इन प्राणियों को लेकर मुझे अपनेपन की भावना पैदा हो गयी. आज मैं उन्हें बचाने के लिए हर प्रयास कर रही हूँ."
Joint Uttar Pradesh Forest Department और TSA India Program for Aquatic Biology के माध्यम से, उन्होंने कछुओं की 10 से अधिक प्रजातियों के लिए assurance colonies की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. उसके प्रयासों ने Indian Narrow-headed Softshell Turtle (Chitra indica) जैसे कुछ एनडेंजर्ड कछुओं की प्रजातियों के लिए release programs को आगे बढ़ाया. TSA India Program के निदेशक डॉ शैलेंद्र सिंह ने कहा , "अरुणिमा देश की सबसे उल्लेखनीय संरक्षणवादियों में से एक रही हैं, जो अकेले ही कई वन्यजीव संकट कॉल में भाग लेती हैं. ताजे पानी के कछुए की प्रजातियों, Crowned River Turtle (Hardella thurjii) पर उनके शोध ने वैज्ञानिक कछुए संरक्षण समुदायों के विकास में बहुत सहायता की हैं." 2010 में लखनऊ विश्वविद्यालय से जीवन विज्ञान में मास्टर कोर्स की शुरुआत के समय में Kukrail Gharial Rehabilitation Center (KGRC) की यात्रा थी जिसने उन्हें संरक्षण की ज़रूरत से वाक़िफ कराया.
जब अरुणिमा ने assurance colonies के निर्माण की दिशा में काम करना शुरू किया, तो उन्हें enforcement agencies से कछुओं की एक्सटिंक्ट प्रजातियों के बारे में अधिक फोन आने लगे. 2015 में इटावा और मैनपुरी के पास लगभग 300 धब्बेदार तालाब कछुओं ( जियोक्लेमिस हैमिल्टन ) के पुनर्वास में मदद की गयी. देश में हमें मजबूत कानूनों की ज़रूरत है, क्योंकि गिरफ्तार किए गए तस्करों को अक्सर एक महीने के भीतर जमानत मिल जाती है, और वे व्यापार पर वापस चले जाते हैं. शिक्षा और जागरूकता भी बहुत जरूरी है. हमें कछुओं को पालतू जानवर के रूप में नहीं रखने के लिए आम जनता को संवेदनशील बनाना चाहिए. इस कार्य में सव३ायम सहायता समूहों की मदद ली जा सकती हैं. SHG महिलाएं इस कार्य को करने में आसानी भी महसूस करेंगी, क्यूंकि इस तरह के जागरूकता अभियान में वे हमेशा आगे आतीं हैं. सरकार ऐसे self help groups भी तैयार करवा सकती हैं, जो समुद्री जीवों के संरक्षण पर काम करते हो. इससे महिलाओं को भी रोजगार मिलेगा, और वे आत्मनिर्भर भी बनेंगी.