अंडमान-निकोबार (Andman-Nicobar Island) आयरलैंड की लक्ज़री सुविधाओं को छोड़ एक महिला ने मध्य प्रदेश के एक छोटे से गांव की बड़ी तस्वीर बदल दी. यह महिला इन दिनों चर्चा में है. जूनून के हद तक सेवा करने वाली इस समाजसेवी महिला ने छोटे गांव को गोद लेकर यहां की महिलाओं और युवतियों को अपने स्वास्थ्य और सफाई को लेकर जागरूक कर दिया. अब यहां की 90 % से ज्यादा महिलाएं और युवतियां मेंस्ट्रुअल कप का उपयोग करती है. अब इस गांव में इन समाजसेवी को सीमा दीदी कह कर बुलाते हैं.
गांव की जिया कीर कहती है - "मुझे इसके पहले पता नहीं था. में मैंने तो हमेशा कपड़ा ही उपयोग किया. सीमा दीदी ने कप का बताया. शुरू में अटपटा लगा. थोड़ा डर भी था.धीरे-धीरे समझ आया कि यही उपयोग करना चाहिए. हमारी इतनी हालत न थी कि महंगे पेड खरीदें. अब मैं कप का ही उपयोग करती हूं. अब मेरी बेटी भी इसका उपयोग करती है."
इमलिया गांव में महिलाओं को काउंसलिंग करती सीमा वर्मा (Image Credits: Ravivar Vichar)
सीमा वर्मा भोपाल आने के पहले अंडमान में रह चुकी हैं. अंडमान में भी डिफेन्स वाइव्स वेलफेयर एसोसिएशन की हेड रहते हुए सफाई और दूसरी सामाजिक गतिविधियों के लिए उन्हें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) की उपस्थिति में नेशनल अवार्ड भी मिल चुका है. इमलिया गांव में महिलाओं को स्वास्थ्य को लेकर जागरूक करने वाली सीमा वर्मा कहती हैं - "पति विमल वर्मा नेवी में कमांडर इन चीफ़ रहे. अंडमान में जॉब रिटायरमेंट के दौरान भोपाल लौटने का फैसला किया. यहीं कुछ करना था. भोपाल जिले के छोटे से गांव इमलिया सिंगपुर (Imaliya singpur) को गोद ले लिया और काम में जुट गई. ढाई साल से यहां महिलाओं के साथ काम कर रही हूं."
युवती को कप सौंपती सीमा वर्मा (Image Credits: Ravivar Vichar)
गांवों में अभी भी यह हालत है कि माहवारी (Menstruation) के समय महिलाएं कपड़ा (Cloth) उपयोग करती हैं. इनकी आर्थिक हालत इतनी भी ठीक नहीं कि पेड (Sanitary Pad) इस्तेमाल कर सके. इमलिया में अब 90 % महिलाएं मेंस्ट्रुअल कप का इस्तेमाल करना सीख गई. अपने ही प्रदेश में 10 साल से 45 साल उम्र की लड़कियों और महिलाओं की संख्या लगभग 2 करोड़ है. जिनके सामने यही परेशानी बनी हुई है. ऐसी स्थिति में इमलिया गांव की महिलाएं अब सीमा दीदी के साथ दूसरे गांव में महिलाओं को जागरूक कर रहीं हैं.
बरसों तक कपड़ा उपयोग करने वाली ग्यारसी बाई, किरण दुर्वे और मीना भी कहती हैं - "शुरू में थोड़ी सी परेशानी लगी. धीरे-धीरे समझ आया कि हमारे शरीर की सफाई के लिए यह जरुरी है." इस गांव के सरपंच की पत्नी संगीता खुद भी अब इस कप का उपयोग कर दूसरी महिलाओं को समझाने लगी हैं. इस गांव में ज्यादातर लोग खेतिहर मजदूर और दूसरे काम करते हैं.
गांव में महिलाओं को समझाना बहुत कठिन काम था. सीमा वर्मा बताती हैं -"शुरू में कोई भी इस विषय पर भी बात करने को तैयार नहीं थी . मैंने छह महिलाओं को तैयार कर कप दिए. उनको चलने-फिरने को कहा. कोई परेशानी नहीं हुई. मैंने 170 महिलाओं का सर्वे कर 142 कप अब तक बांट दिए."
मेंस्ट्रुअल कप के पैक (Image Credits: Ravivar Vichar)
एक लाख के पेड और 25 लाख टन कचरा !
मेंस्ट्रुअल हाइजीन अलायंस ऑफ़ इंडिया (Menstrual Hygiene Alliance of India) के अनुसार 2 करोड़ महिलाओं के पेड उपयोग से 25 लाख टन कचरा पैदा होता है. यह नॉन बायो डीग्रेडेबल (Non biodegrable west) है. एक पेड की कीमत 10 रुपए है. साइंस के अनुसार देखें तो एक महिला पूरे जीवन में लगभग 1 लाख रुपए पेड पर खर्च करेगी. और इसे डिस्पोज़ होने में 700 साल लग जाएंगे. जबकि एक मेंस्टुअल कप की कीमत केवल 200 -250 रुपए है. इसके एक कप का उपयोग 10 साल कर सकते हैं.
कपड़े से जान को खतरा
कपड़े के उपयोग और उससे होने वाले नुकसान को लेकर सीमा वर्मा खुद गायनेकोलॉजिस्ट (Gynaecologist) डॉ.अंजलि कान्हरे को साथ ले गईं. वहां चौपाल लगा कर महिलाओं कि काउंसलिंग की. डॉ.कान्हरे ने बताया -" महिलाएं माहवारी में कपड़ा उपयोग करती हैं. यह इंफेक्शन का सबसे बड़ा कारण है. इससे अबॉर्शन (Abortion), प्रेग्नेंसी (Pregnancy) में परेशानी के साथ सर्वाइकल कैंसर (Cervical Cancer) का भी खतरा बना रहता है. मुझे ख़ुशी है कि कई महिलाओं ने अब कप का उपयोग शुरू किया."
इमलिया गांव में महिलाओं को काउंसलिंग करती सीमा वर्मा (Image Credits: Ravivar Vichar)
इमलिया गांव के बाद सीमा वर्मा अब लांबाखेड़ा, भोजपुर गांव में भी मिशन चला रहीं हैं. सीमा कहती हैं - "सरकार चाहे तो महिलाओं के स्वास्थ्य को प्रमुखता देकर इस मिशन को पूरे प्रदेश में चला सकती है.यह सस्ता और ज्यादा सेफ है.मैं वुमन हेल्थ के अलावा स्किल, एन्वायरॉनमेंट, एजुक्शन और रूरल टूरिज़्म पर भी फोकस कर रही. इस मिशन से खासतौर पर महिलाओं को गांव में ज्यादा रोजगार और आत्मविश्वास बढ़ेगा." सीमा वर्मा खुद मेनिट, भोपाल जैसी संस्था से एमटेक हैं. 'सक्षम सेरी' (Saksham-Seri) सामाजिक संस्था (Social Organization) के द्वारा वह यह मिशन चला रही.