आप यदि परिवार की कल्पना करते हैं तो 2 बच्चे और माता-पिता, या ज्यादा से ज्यादा सास-ससुर भी साथ हों तो हम उसे सयुंक्त परिवार तक कह देते हैं. आपको यह कहें कि एक परिवार ऐसा भी है ,जहां 72 लोग एक साथ रहते हैं. इस परिवार की लीडरशिप अभी भी एक ही बुजुर्ग लेडी ही करती है. आप भी अचरज में पड़ गए ना.. लेकिन यह बिल्कुल हक़ीक़त है. विश्व सयुंक्त दिवस की सोच को ये पूरी कर रहे. यहां बस्ती में पहुंचते ही लगता है कि कोई कुटुंब है या कॉलोनी...
टूटते-बिखरते रिश्तों और एकल होते परिवारों के बीच संयुक्त परिवार कम ही नजर आते हैं. मप्र के खरगोन जिले के आदिवासी गांव देवड़ा में एक संयुक्त परिवार आज भी सुर्खियों में है. जो भी इस इलाके में घूमने आता है, वह इस परिवार से मिलने में दिलचस्पी जरूर रखता है. इस परिवार सदस्यों के बीच आपस में प्रेम लोगों के लिए मिसाल बना हुआ है. परिवार का कोई भी सदस्य मुखिया को नहीं छोड़ना चाहता है नतीजतन देखते ही देखते इस कुनबे में सदस्यों की बढती संख्या से एक ही परिवार का घर अब कॉलोनी में तब्दील होता गया.
छोटे-छोटे बने कमरे के इस घर में एक ही परिवार के हर सदस्य संयुक्त भाव से रहते हैं. इस परिवार मे मुखिया सहित 72 लोग है. खेती-बाड़ी में व्यस्त रहते हैं. परिवार के लोग शाम को एक साथ बिताते हैं. घूघरिया बामनिया को कुछ समय पहले निधन हुआ, लेकिन उनके दिए संस्कारों से परिवार का यह फालिया (बस्ती) बुजुर्गों के आशीर्वाद और बच्चों की किलकारी से आबाद है. 70 वर्षीय परिवार की दादी मां नबली बाई मुखिया की तरह रहती है. उसकी 9 में दो बेटियों की शादी हो गई. परिवार के दूरसिंह कहते हैं- "हम सब भाइयों का परिवार एक बड़े कुनबे के रूप में रहता है. वक्त के साथ कमरे बनाते चले गए. एक ही छत के नीचे सलाह-मशवरा और सुख-दुख बांटते हैं. हम अलग नहीं हो सकते. " घर का हर सदस्य ऊनी उम्र के हिसाब से काम करता है.
नबली बाई कहती है- "उनका परिवार कभी अलग नहीं हो सकता. कुल 72 सदस्यों में 35 बेटियां और उनके बच्चे हैं.सभी बच्चे स्कूल जाते हैं. पूरा परिवार एक ही साथ सारे तीज त्यौहार मनाते हैं." पुत्र कैलाश बामनिया बताते हैं- "मेरे पिता घूघरिया के निधन के बाद हमारी मां जो कह देती है वही बात फाइनल होती है. सभी भाई खेतों में काम करते हैं और बहुएं भी घर के कामकाज संभालने के साथ पतियों का साथ देती है." इस परिवार ने अपनी लगभग 40 एकड़ जमीन है.इसकी कमाई से घर चलता है.परिवार की बहू रायला बाई बताती है-"इस परिवार की एकजुटता की मिसाल इसी बात से साबित होती है कि किस भाई के कौन बच्चे है, बाहर से आया मेहमान के लिए पहचानना मुश्किल है.नई बहू भी इस घर में आकर घुल-मिल जाती है.कभी विवाद नहीं होता."
इस परिवार में पुरानी दो पीढ़ी पढ़ी-लिखी चाहे न और न ही आर्थिक रूप से मजबूत हो लेकिन उनकी संवेदनाओं और एक जुटता ने सोशल मैनेजमेंट का असली नक्शा बनाया है.