म.प्र. के देवास जिले के एक गांव में रोज़ चूड़ियां खनकती हैं. एक से बढ़ कर एक डिज़ाइन वाली चूड़ियां... कभी खेतों में मजदूरी करने जाने वाली महिलाएं अब इन चूड़ियों को बना कर तराश रहीं हैं. महिलाओं की सजधज और श्रृंगार की निशानी ये चूड़ियां अलग-अलग गांव और शहरों के बाज़ारों में पहली पसंद बन गई. देवास का टौंक खुर्द ब्लॉक का गांव आलरी के कई घरों में इन दिनों चूड़ियों के कारखाने चल रहें हैं. इन चूड़ियों को बनाने वाली महिलाओं ने ये मुकाम बहुत संघर्ष के बाद हासिल किया. गुमनाम महिलाएं आज प्रदेश में अपने काम से चर्चित हो गई.इस गांव को अब "चूड़ियों का गांव" के नाम से पहचानते हैं.
आलरी गांव में जिला प्रशासन के आजीविका मिशन ने खास मिसाल पेश की. आरती स्वयं सहायता समूह की अध्यक्ष रचना चौहान कहती है - "आर्थिक हालत से रोज़ झूझते थे. पति सुनील भी घर निर्माण में छोटा-मोटा काम करते थे. और मैं खेतों में मजदूरी. उस दिन तो मेरे ऊपर तो पहाड़ टूट गया जब पति का भीषण एक्सीडेंट हुआ और वह कोमा में चले गए. मजदूरी छूट गई. बचत का थोड़ा बहुत पैसा भी इलाज में चला गया. जब कोई रास्ता नहीं बचा तब जिले के अधिकारियों ने मुझे बैठक में बुलाया. SHG का गठन किया. मुझे चूड़ी बनाने की ट्रेनिंग दिलवाई. बस यहीं से मेरी ज़िंदगी में खुशियां आईं. "रचना ने बैंक के माध्यम से ट्रेनिंग ली. और रचना का आत्मविश्वास बढ़ गया. उन्होंने खुद आजीविका मिशन से मदद ले कर दूसरी महिलाओं को ट्रेनिंग दिलवाई.
समूह की महिलाओं द्वारा तैयार चूड़ियां जिनकी बाज़ारों में बहुत मांग है (फोटो क्रेडिट : रविवार विचार)
इस गांव में लगभग 35 महिलाएं चूड़ियां बनाने का काम कर रहीं हैं. आजीविका मिशन की जिला परियोजना प्रबंधक शीला शुक्ला कहती हैं - "इस गांव में अधिकांश परिवार अनुसूचित जाती के हैं. मजदूरी से बड़ी मुश्किल जीवन यापन होता था. समूह से जोड़ कर रचना को आर्थिक रूप से सक्षम बनाया. वह इस गांव के लिए उदाहरण बन गई. इस गांव में 21 समूह बन गए जिसमें अलग-अलग कामों से जुड़ कर आत्मनिर्भर हो गईं."
इस गांव में कारखाने कि मशीनों को लेकर भी बहुत मेहनत की. रचना आगे बताती है - " शुरू में हम कच्चा माल और केमिकल इंदौर से खरीद कर लाए. गांव में चूड़ियां बनाना शुरू किया. लेकिन चूड़ियों को सूखने में समय लगता था. इससे चूड़ियां काम बन पा रहीं थीं. और पैसे भी नहीं थे. तीन लाख का लोन समूह से लिया और जुगाड़ से मशीने बनवा ली. अब एक साथ तीन घंटे में चूड़ियां सूख जाती हैं. मैंने अपने घर के बाड़े में ही कारखाना यूनिट लगा ली. अब हम एक दिन में 100 से ज्यादा जोड़ चूड़ियां बना रहें हैं. सभी को 15 से 20 हजार रुपए महीने कमाई हो जाती है."
महिलाओं द्वारा तैयार चूड़ियां (फोटो क्रेडिट : रविवार विचार)
यहां की बनी चूड़ियां देवास जिले के कई गांव के अलावा शाजापुर, उज्जैन, इंदौर के बड़े व्यापारियों को थोक में देते हैं. आजीविका मिशन के ही तपन वर्मा बताते हैं - "यहां की महिलाओं की काउंसलिंग कर चूड़ियां बनाने के अलावा दूसरे रोजगार से जोड़ा. ऐसी महिलाओं की मजदूरी छोड़ और आत्मनिर्भर बन गई. ये महिलाएं खुद केमिकल और कच्चे मॉल से चूड़ी बनाने का माल तैयार कर लेती हैं. लगभग पांच तरह की ये सीप और लाख की चूड़ियां बना लेती हैं. यहां तक कि आजकल के फैशन में चल रही चूड़ियों और कड़ों पर मनचाहे फोटो भी लगा कर उन्हें और सुंदर बना देती है." इनके साथ दूसरे समूह की कोमल परमार,पूजा चौहान भी अब मजदूरी छोड़ चूड़ियां बना रहीं हैं.
महिलाओं द्वारा तैयार चूड़ियां (फोटो क्रेडिट : रविवार विचार)
आजीविका मिशन जिले के महिला समूहों को अलग-अलग क्षेत्रों में काम से जोड़ कर आत्मनिर्भर बनाया जा रहा है. देवास कलेक्टर ऋषभ गुप्ता कहते हैं- "जिले के ग्रामीण इलाकों में महिलाएं आर्थिक तंगी के कारण सिर्फ मजदूरी करती थी. इन मेहनती महिलाओं को समूह से लोन दिलाया जा रहा है. ट्रेनिंग से तैयार किया गया. जिले तैयार हो रही सीप और लाख की चूड़ियों की बिक्री के लिए डिजिटल मार्केटिंग में भी प्रमोशन किया जा रहा है. इन्हें और प्रोत्साहित किया जाएगा."