उसकी शादी 9 साल की छोटी सी उम्र में करा दी थी परिवार ने. एक ऐसी उम्र जब सही गलत की भी समझ नहीं होती, उसे किसी के परिवार की बहु बनाकर भेज दिया गया. परिवार की ज़िम्मेदारी, अपनी उम्र से 20 साल बड़े आदमी के साथ ज़िन्दगी बिताना, और अपनी समझ और बचपने को ख़त्म करना, ये सब किया था यमुना ज़ोशी ने.
यमुना ज़ोशी (आनंदी गोपालराव ज़ोशी ) भारत की सबसे पहली महिला डॉक्टर थी. हर परेशानी और ज़िम्मेदारी के बावजूद, सबसे मुश्किल डिग्रियों में से एक की होल्डर. भारत में जब लड़की को घर से बाहर तक निकलने की इजाज़त नहीं दी जाती थी, ऐसे माहौल में यमुना ने US में वेस्टर्न मेडिसिन में दो साल की डिग्री पूरी कर इतिहास रच दिया था.
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यमुना की शादी उससे बहुत बड़े पुरुष से करवाई गयी थी. शादी के बाद यमुना का नाम बदल कर आनंदी गोपालराव ज़ोशी रखा गया. आनंदी बहुत ही छोटी थी, जब उसे शादी करनी पड़ी, लेकिन गोपालराव उस वक़्त के हिसाब से एक प्रोग्रेसिव सोच वाले वाले थे. महिलाओं की पढाई, उनका पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर आगे बढ़ाना, और उनकी तरक्की को गर्व समझते थे गोपालराव.
आनंदी जब 14 साल की हुई, तो उसे एक बेटा हुआ. परिवार खुश था, लेकिन वो ख़ुशी ज़्यादा समय की थी नहीं. अच्छे ट्रीटमेंट और मेडिकल सुपरविशन ना मिलने के कारण उनका बेटा सिर्फ 10 दिन ही इस दुनिया में रह पाया. आनंदी की ज़िन्दगी में इतने समय बाद एक ख़ुशी आई और वो भी ज़्यादा समय नहीं रही उनके पास. वो टूट चुकी थी. उन्हें समझ ही नहीं आ रहा था की क्या करें. अपनी नन्ही सी जान की मौत ने उन्हें परेशान कर दिया था.
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उस वक़्त आनंदी ने ठान लिया कि वे किसी और के बच्चे को अच्छी मेडिकल सुविधा ना मिलने के कारण नहीं मरने देंगी. अपने पति का साथ, और खुद पर विश्वास रख आनंदी ने डॉक्टर बनाने की जर्नी को शुरू किया. दो साल कड़ी मेहनत करने के बाद, आनंदी ने भारत देश में पहली बार 1886 में MBBS की डिग्री हासिल की. आज की हर महिला डॉक्टर के लिए वे किसी रोल मॉडल से कम नहीं. नेशनल डॉक्टर्स डे पर रविवार विचार ने इस कहानी को हर महिला के लिए कवर किया, जो अपनी ज़िन्दगियों में हर दिन लड़ रहीं है लेकिन आगे बढ़ने में कोई कसर नहीं छोड़ रहीं !