नर्मदा नदी के उद्गम स्थल अमरकंटक के पास कटकोना से भी हरियाली की ऐसी धार निकली है जिसने पुरे इलाके को हरियाली से आच्छादित कर दिया है. यही कमाल होता है संघठन और सामूहिक प्रयास का जिसने SHG सदस्यों के सपनों को नए पंख दिए है. इस जनजातीय जिले में हुई SHG की यह शुरुआत महिलाओं के जाग्रति का काम करेगी.
अनूपपुर जिले के गांव कटकोना में बिछी जाजम पर बड़ी गहमागहमी दिख रही हैं. वहां जुटी हर महिला अपनी बात सामने लाना चाह रही है. सबके पास अपने-अपने सुझाव और वे अपना सुझाव सबसे पहले बताने को आतुर. महिला सदस्यों के बीच बैठी रेवंती तिवारी सब को चुप कराने की कोशिश करती रही.बार-बार कहती रही चुप हो जाओ. सबको मौका मिलेगा. शुरू में कोई मानने को तैयार नहीं.आखिर महिलाओं ने बात मानी लेकिन आंखों में चमक और कुछ नया करने का जज्बा सबके चेहरे पर पढ़ा जा सकता था.
कटकोना , कोतमा विकासखंड का यह छोटा सा आदिवासी बहुल गांव जहां की महिलाएं सुर्खियों में है. SHG का ही असर है कि दो साल में नर्सरी तैयार की अब बढ़ते हुए पौधों और हरियाली के साथ घरेलू महिलाओं की जिंदगी अब लहलहा रही है. समूह की अध्यक्ष रेमंती तिवारी ने बताया- " वैसे शुरुआत 2013 में की, नाम रखा वैष्णों आजीविका स्व सहायता समूह, आदिवासी बहुल क्षेत्र और निरक्षर महिलाओं ने अपनी किस्मत में मजदूरी करना ही नियति मान लिया था. यहां तक कि कई महिलाएं तो समूह की सदस्य बनने को भी तैयार नहीं थी. लगातार समझाइश और आजीविका मिशन,SHG का महत्व उन्हें समझाया गया.धीरे-धीरे महिलाएं तैयार हुई. अध्यक्ष आगे कहती है- यह वही महिलाएं है, जो पहले साप्ताहिक बैठक में बचत राशि 20 रुपए देकर चुपचाप चली जाती थी. संकोच और अपने आप को विचारों से कमजोर मान यह महिलाएं कुछ भी कहने को तैयार नहीं होती थी" . आज बढ़ती आय और कमाई के जरिए ने इनकी जिंदगी में नए रंग भर दिए. इस वक्त इनके पास डेढ़ लाख रुपए से ज्यादा की बचत राशि है. सबने मिलकर इन नौ वर्षों में कई काम किए.इस से समूह सदस्यों का लगातार हौसला बढ़ता गया. अब सब सदस्य, मीटिंग में समय से पहले तो आ ही जाती हैं और नए-नए आइडिया भी उनके पास होते हैं.
समूह की मेहनत को देख अनूपपुर जिला प्रशासन ने गांव में ही ढाई एकड़ जमीन शासकीय उद्यान परिसर में दे दी. इन महिलाओं ने यहीं पर नर्सरी तैयार की. दो साल में विभिन्न तरह के पौधे तैयार कर लिए. आम, जामुन, कटहल से लेकर मुनगा (सुरजना) नींबू, जामफल के पौधे लोग यहां खरीदने आते हैं. समूह सचिव कसिया तिवारी बताती हैं- "उनके पौधे 15 से 35 रुपए और अधिक कीमत में भी जनपद और कुछ पंचायतों ने खरीदे.यह SHG की महिलाएं सिर्फ नर्सरी पर निर्भर नहीं रही. सदस्य साथी कोई साग-भाजी तो कोई किराना दुकान गांव में ही चलाने लगा. यहां तक कि कुछ साथी ने सिलाई का धंधा भी शुरू कर दिया".
इस समूह में शामिल ज्योति महारा, पार्वती महारा, चंद्रवती महारा, गायत्री पांडे, उषा तिवारी, जलेबिया साहू, निधि तिवारी, नीरा महारा, शांति,उर्मिला जैसी महिलाएं बड़े गर्व से बताती है-"हमारी मेहनत लगातार रंग ला रही है. समूह ने आंगनबाड़ियों, स्कूलों में पौष्टिक गुड़-मूंगफली की चिक्की सप्लाई करने का काम भी लिया. खुद के द्वारा तैयार यह चिक्की बच्चों को बहुत पसंद आई."
(हर रविवार SHG की एकाउंटिंग करती महिलाएं)
यह सफर यहीं नहीं थमा. सफलता की नई-नई सीढ़ियों को लगातार चढ़ रही हैं. समूह सदस्यों की बढ़ती योग्यता को देख 13 स्कूलों के विद्यार्थियों के लिए 16 सौ 52 गणवेश भी तैयार कर के दी है.जिससे अलग कमाई हुई.
लगातार बढ़ती आमदनी से समूह की सदस्यों के सपनों को नए पंख लग गए.समूह की निधि तिवारी ने बताया "हमने भोपाल से चूड़ियों का समान मंगाकर लाख के कंगन बनाने का विचार किया." उन्होंने महसूस किया कि महिलाओं की पहली पसंद कंगन होती है. और सुहाग की यह सबसे महत्वपूर्ण निशानी उनके लिए कमाई का जरिया बन सकती है.उन्होंने काम शुरू किया और कंगन बनाए. जगह-जगह जनरल स्टोर और कंगन स्टोर पर वैष्णों आजीविका स्वयं सहायता समूह के कंगन ग्राहकों को पसंद आने लगे. यहां की महिलाएं ये ही खरीदने लगी. रेमंती और कसिया को खुशी है कि 9 साल की मेहनत अब कमाई का जरिया बन गई. खेती में सुधार और उससे भी अधिक कमाई बढ़ने से यह सदस्य अपने बच्चों को अच्छे स्कूल में पढ़ा रहे हैं.
अध्यक्ष और सचिव ने अब तक दुर्गा ग्राम संगठन में 22 स्व सहायता समूह तैयार कर दिए.रफ्तार यही रही तो पूरा आदिवासी इलाका SHG से पहचान बनाने में पीछे नहीं रहेगा. प्रदेश की जीवनदायिनी नर्मदा नदी के उद्गम स्थल अमरकंटक का अनूपपुर जिला ही है. मां नर्मदा जीवनदायनी है.जैसे मां नर्मदा पूरे प्रदेश की प्यास बुझाती है...ऐसे ही इस इलाके में मेहनतकश SHG आत्म सम्मान और निर्भरता का नया प्रवाह कायम करेंगे...ये सुखद संकेत नर्मदा नदी के प्रवाह की तरह देखने को मिलने लगे है.