स्केटबोर्डिंग, एक ऐसा स्पोर्ट जो भारत में इतना ट्रेंडिंग नहीं है. लेकिन फिर भी इसकी लोकप्रियता धीरे धीरे ही सही लेकिन बढ़ती जा रही है. OTT शोज़ और फिल्मों में बच्चें इस स्पोर्ट को देखकर, आगे बढ़ने के लिए प्रयास भी कर रहे है. भले ही यह इतना फेमस न हो लेकिन जितने भी लोग स्केटबोर्डिंग करते है, वे यह बहुत अच्छे से जानते है कि यह जितना मुश्किल है उतना ही मज़ेदार भी. इस गेम के प्रचलित ना होने का सबसे बड़ा कारण है भारत कि उबड़-खाबड़ सड़कें, जिनपर ज़ाहिर सी बात है, कि बच्चों को स्केटबोर्ड चलने में तकलीफ होगी.
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भले यह सड़के ख़राब हो, लेकिन जो ठान लेते है, वो किसी भी काम को मुमकिन कर दिखाते है. ऐसा ही कर दिखाया है अतीता वर्गीस ने, जो बंगलौर के रहने वाली एक सामान्य परिवार की लड़की है. अतीता को उसके एक फ्रेंड ने बचपन में स्केटबोर्ड तौफे में दिया था, और यही से उसकी ज़िन्दगी सारे बदलाव आना शुरू हुए. अपने पिता की मृत्यु के बाद अतीता ने अपनी मां को हर मुसीबत से अकेले लड़ते हुए देखा था, घर सँभालने से लेकर पैसे कमाने तक, अतीता की मां ने हर काम को अपने कंधो पर लिया. अपनी मां को रोल मोडल मानकर अतीता बचपन से ही परेशानियों को पीछे छोड़कर जीतना सीख चुकी थी.
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आज वर्गीस पूरी दुनिया की बेस्ट स्केटबॉर्डर्स में से एक है. रेडबुल इंडिया के स्केट टेल्स के तीसरे सीज़न में आ चुकीं, वर्गीज़ तेजी से वर्ल्ड न्यूज़ पर छा रही है. उन्होंने 2021 नेटफ्लिक्स फिल्म 'स्केटर गर्ल' में कैमियो किया है, एक टेड टॉक (Ted Talks) किया है और अपने जैसी कई अन्य लड़कियों को सक्रिय रूप से प्रेरित किया है. 2014 में, वर्गीस ने अधिक लड़कियों को स्केटबोर्डिंग में लाने और एक नेटवर्क बनाने में मदद करने की उम्मीद के साथ ‘गर्ल स्केट इंडिया’ की शुरुआत की. अतीता का लक्ष्य है की वे इस स्पॉट में ज़्यादा से ज़्यादा लड़कियों शामिल करना चाह रही है. यह विचार बहुत बड़ा है क्यूंकि जिस देश में लड़कियों को घर हर चीज़ में रोकने की कोशिश की जाती है, वहा इतनी बोल्ड स्पोर्ट सीखना बहुत बड़ा कदम होगा.