"अरे वाह, ये कमाल कैसे करती हो ? इतनी सुन्दर डिज़ाइन और सॉफ्ट कपड़ा. कितने दिन में बना लेती हो ये साड़ी और सूट. आपके स्टॉल पर सबसे ज्यादा देर रुकने का मन हो रहा है." राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू जी ने जब यह बातें सरमी बाई से कही तो यह जीत थी धार अंचल के जनजातीय समूहों की. बरसों तक रंगों में हाथ और हूनर होने के बावजूद मजदूरी करने वाली सरमी बाई पहले तो सोच ही नहीं पा रही थी कि उसके सामने राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू खड़ी हैं. राष्ट्रपति के सवालों पर वो बस इतना बोल सकी- " मुझे मजदूरी में घर चलाना मुश्किल हो रहा था. मेरी साथी महिलाओं की भी यही हालत थी. हम सब मिले और अब अपने पैरों पर खड़े हैं. एक दिन में चार साड़ी, चार बेड शीट या तीन सूट बना लेते हैं." राष्ट्रपति मुर्मू ने कहा 'शाबाश'. आप जैसी महिलाएं ही देश की असली पहचान है. पिछले दिनों भोपाल दौरे पर राष्ट्रपति मुर्मू ने स्वसहायता समूह से जुड़ी महिलाओं से मुलाकात की और उनके कारोबार के साथ उनके स्टॉल को भी देखा.
मृगनयनी शो रूम पर ग्राहकों की पसंद बनी बाग़ प्रिंट साड़ियां (Image Credits: Ravivar Vichar)
धार जिले के बाग़ प्रिंट के नाम से प्रसिद्ध कपड़े को देश -विदेश में पहचान दिलाने वाली महिलाओं ने आत्मनिर्भरता की नई सोच बना ली. बाग़ नगर में प्रिंट होने वाली प्रिंट बाग़ प्रिंट के नाम से पहचान बना चुकी है. इस बाग़ प्रिंट से जुड़े मटेरियल प्राकृतिक रंग के उपयोग के कारण बढ़ती लोकप्रियता से असली हुनरमंद इसके कारखानों में मजदूर बन कर रह गए. एजेंटो ने इन से सस्ते दामों पर मटेरियल ख़रीदा और खुद के टैग लगा कर बाजारों में बेच दिए. इन्होंने फायदा उठाया और अवार्ड तक अपने नाम कर लिए. पिछले कुछ सालों ये महिलाएं साहूकारों और एजेंटों के चंगुल से निकली और खुद के समूह बना कर कारोबार कर रहीं हैं. अब यहां ऐसे कई समूह हैं जो बाग़ प्रिंट कर रहीं हैं.
सरमी आगे कहती हैं - "बरसों से वह साड़ी,सूट सहित अन्य कपड़ों पर बाग़ प्रिंट कर रही है. कारखानों मजदूरी करते रहे. ये साड़ियां और कपड़े नदी में सिर्फ धुलवाते. वहां से निकले तो एजेंटों ने हमारी गरीबी का फायदा उठाया. गरीबी के हालातों से निकल नहीं पा रहे थे." सरमी के "वनवासी स्वसहायता महिला समूह" में दस दीदियां जुड़ी हुईं हैं. जो इस प्रक्रिया में अलग-अलग रोल निभाती हैं.इस समूह की महिलाएं निर्मला बाई, शैल बाई, इंदिरा बाई आदि पूर्व राज्यपाल आनंदी बेन पटेल, वर्तमान राज्यपाल मंगू भाई पटेल सहित कई लोगों से मिल चुकी हैं.
बाग़ नगर में ऐसे ही कई महिलाएं अब प्रिंट कारोबार से जुड़ अपनी ज़िंदगी को बढ़िया तरीके जीने लगीं हैं. इस नगर की "परी सहायता समूह" की अनिता सोलंकी कहती है -" हम जो प्राकृतिक तरीके से रंग बनाते हैं वही इस प्रिंट की खूबी है. हम कॉटन के सूट ,साड़ी ,बेड शीट आदि को पानी में भिगो देते हैं. इमली की चियें को पीसकर पॉवडर बनाते हैं. लोहे की जंग ,कशिश फिटकरी मिला कर काला रंग तैयार करते हैं. अरंडी (कैस्टर ऑइल )के तेल से पीला कलर बन जाता है. इन रंगो को उबाल कर पक्का कर लेते हैं.इसमें केमिकल की मिलावट नहीं होती." ग्राम महिला संगठन में बीस से ज्यादा समूह जुड़े जो अलग-अलग काम कर रहीं हैं.
बाग़ प्रिंट को देखते राज्यपाल मंगू भाई पटेल (Image Credits: Ravivar Vichar)
शिव स्वसहायता समूह की अध्यक्ष मुस्कान सोलंकी भी इसी धंधे से जुड़ कर स्वाभिमान की जिंदगी जी रही है. मुस्कान बताती है - "मजदूरी से छुटकारा मिल गया. जब मैं अपने पैरों पर खड़ी हुई तब भोपाल,माण्डव सहित सरस मेला अहमदाबाद के हाट, प्रदर्शनी में जाने का मौका मिला. जहां राज्यपाल, मुख्यमंत्री सहित कई विदेशियों से भी मिल सके.
(Image Credits: Ravivar Vichar)
विदेशों तक अपनी पहुंच और पसंद बन जाने वाली बाग प्रिंट का शुरुआती इतिहास के कोई ठोस प्रमाण तो नहीं हैं,लेकिन यहां के क्षेत्र की गुफाओं पर अंकित शैल चित्र लगभग एक हजार साल पुराने हैं. जिससे इतिहासकार अनुमान लगाते हैं कि यह हस्तशिल्प कला बहुत पुरानी और कला संस्कृति का हिस्सा रहा होगा. आजीविका मिशन की जिला परियोजना प्रबंधक अपर्णा पांडेय कहती हैं -" लगभग तीन सौ साल पहले यहां हस्तशिल्प और इससे जुड़े लोग बाग प्रिंट को कमाई का जरिया बनाने लगे. बाघिनी नदी में ये कपड़ों को धोने का काम करते आ रहे हैं. छपाई के लिए वूड हस्तशिल्प की डाई का उपयोग किया जाता है. वक़्त के साथ अब ये समूहों गठन और खुद के पैरों पर खड़ी हो रहीं हैं. इन्हे सरकार प्रदर्शनी ,हाट बाजारों में भेज कर और अधिक मौका दे रही है."
सरमी बाई ,अनीता सोलंकी ,मुस्कान बाई बड़े गर्व से बताती हैं की अब उनके पति भी मजदूरी पर जाने का काम छोड़ कर पत्नियों और परिवार का साथ दे रहें हैं. सरकार हस्तशिल्प निगम द्वारा क्वालिटी मैंटेन भी करवा रही है. मप्र हस्तशिल्प एवं हाथकरघा विकास निगम लिमिटेड, इंदौर के प्रबंधक डीकेशर्मा और मृगनयनी प्रभारी सहायक प्रबंधक दिलीप सोनी कहते हैं-" ग्रामीण क्षेत्रों में से एक बाग़ प्रिंट बहुत प्राचीन कला का नमूना है. उनकी कला को लगातार प्रोत्साहन दिया जा रहा है. बड़े शहरों के साथ विदेशों में भी यह कला पसंद बना चुकी है.