2015 का साल था, गरीबी से जूझ रही वैशाली और उसकी महिला साथियों ने मोर्चा निकाल कर बैंक अधिकारियों को चौंका दिया. "बैंकों की तानाशाही नहीं चलेगी ,नहीं चलेगी. हमारी मांगे पूरी करो. लोन हमको देना होगा ,देना होगा." महज आठ-दस महिलाएं सड़कों पर नारे लगाती हुई बैंक की तरफ बढ़ रहीं थीं. गांव की दुकानों और गुमटियों पर खड़े लोग इन्हें देखते रहे. इन नारों में आवाज़ चाहे महिलाओं की कमज़ोर हो लेकिन आत्मविश्वास और आक्रोश लिए बैंक में घुस गई. मैनेजर भी चौंक गए. " हम घरेलु महिलाएं हैं. मजदूरी पर जाने को विवश हैं. आमदनी नहीं हैं. पति फैक्ट्रियों में मजदूरी करते हैं. आप ही बताओ घर का गुजारा कैसे चले. हमें लोन नहीं दिया तो और बड़ा आंदोलन करेंगे. आप खुद हमारे घर लोन देने आओगे. " बड़वानी जिले के आदिवासी ब्लॉक की रहने वाली वैशाली एक सांस में बैंक मैनेजर को खरी-खोटी सुना दी. मैनेजर ने फिर भी महिलाओं को अनसुना कर दिया. वे निराश लौट आईं.
वैशाली आगे बताती है-" कुछ सालों में वक़्त बदला. और एक दिन वह भी आया जब वही बैंकों के अधिकारी हमारी चौखट पर लोन देने के लिए खड़े थे. " वैशाली जैसी कई महिलाओं की यह कहानी है. कई बार असफलताओं का स्वाद चख चुकी वैशाली आज निमाड़ ही नहीं पूरे प्रदेश की चर्चित महिला बन चुकी है. वैशाली सफलता की रोज नई-नई इबारत लिख रही है.यहां क्या कलेक्टर और क्या और अधिकारी बल्कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, पूर्व राज्यपाल आनंदी बेन पटेल भी सेंटर पर मिलने आ चुकी हैं.
हम आपको बड़वानी जिले के ठीकरी ले चलते हैं. यहां गुलाबी रंग से पुता आजीविका सेंटर दूर से ही दिख जाएगा. इस सेंटर में गुलाबी रंग की साड़ी पहने एक दीदी दूसरी महिलाओं को गाइड कर रही है.आप दूर से ही समझ जाएंगे ये ही वैशाली चौधरी है. लगभग 70 सिलाई मशीनों की आवाज़ से हॉल गूंज रही है. पापड़ की दो मशीनों से पापड़ बन कर तैयार हो रहे. एक जगह सिवइयां बन रही. कहीं साबुन तो कहीं घरेलु मसाले की पैकेजिंग की जा रही. यह नज़ारा यहां रोज़ आप देख सकते हैं. लगभग डेढ़ सौ से ज्यादा दीदियां यहां अपने अपनी धुन में काम में जुटी हैं.
सात साल पहले ठीकरी की सड़कों पर मोर्चा निकलने वाली चंद महिलाओं का यह सफर अब लघु गृह उद्योग की शक्ल में खड़ा है. यह सफर इतना सरल नहीं था. वैशाली आगे बताती है -" मेरे पति सुनील की सैलेरी केवल आठ हजार रुपए थी. किराये का कमरा और बच्चे पालना मुश्किल हो रहा था. गरीबी जान ले रही थी. मेरी पढ़ाई केवल 12 वीं तक हुई और शादी हो गई. सोचा कुछ करें. गांव की ही मेरी जैसी गरीब सहेलियों ने लोन कर कुछ करने का सोचा. बैंक वालों ने लोन देने से मना कर दिया. बेइज्जत कर भगा दिया. बस हम भी ज़िद पर अड़ गए. प्रेरणा महिला स्वसहायता समूह बनाया.इसमें दस महिलाएं जुड़ीं. "
ठीकरी में आजीविका भवन में सिलाई करती समूह की दीदियां
समूह से जुडी महिलाओं का संघर्ष यही ख़त्म नहीं हुआ. समूह की संगीता,हर्षा ,दीपाली ,रुषाली और वैशाली खुद अपने हालात बताती है कि-" लगभग डेढ़ साल गरीबी में एक और झटका तब लगा जब हमारे पतियों की फैक्ट्री भी बंद हो गई. सभी भी बेरोजगार हो गए.अब कोई रास्ता नहीं सूझ रहा था. इसी बीच सरकार आजीविका मिशन योजना आई और हमारे समूह को पचास हजार रुपए का लोन मिल गया. मैं अपनी सहेलियों पहले एक और फिर तीन सिलाई मशीन ले आई. बस एक उम्मीद की पहली किरण यहीं से नज़र आई. "
धीरे-धीरे समूह की महिलाएं काम मांगने जाने लगी. लेकिन कामकाज करने के लिए जगह नहीं थी.किराए से कमरा लिया. दस हजार रुपए महीने का यह कमरा और काम अच्छे से नहीं मिलने के कारण समूह को कमरा छोड़ना पड़ा. अब वैशाली और उसकी साथी संगीता ,दर्शना ,दीपाली और हर्षा ग्राम सभा में पहुंची. समूह के लिए सरपंच से जगह मांगी.पंचायत से गांव का ही मांगलिक भवन उन्हें मिला. यहां आए दिन विवाद और समूह विशेष की आपत्ति मुसीबत बन गई. समूह की महिलाओं को वहां से कुछ लोगों ने खदेड़ दिया. आखरी रास्ता अपनाया और महिलाएं बड़वानी के उस समय के कलेक्टर तेजस्वी नायक के पास पहुंची.
महिलाओं की मेहनत और परेशानियों को सुन नायक ने ऐसा रास्ता निकाला कि आज ग्राम संगठन में छह हजार महिलाएं जुड़ गईं. संघर्ष और गरीबी के तीन साल के लंबे सफर को पार कर चुकी समूह की अध्यक्ष वैशाली अपने सफर को बताती है कि-" हमको गांव के ही पुराने जर्जर हॉस्पिटल की बिल्डिंग दे दी गई. हमने उसे ठीक करवाया. अब हमें काम के लिए स्थाई ठिकाना मिल गया था. मैंने अपने पति को समझाया कि वह भी समूह को साथ दे. ऐसे हमारी दीदियों के पति भी जुड़ते चले गए. हमने फिर पीछे पलट कर नहीं देखा. धीरे -धीरे हमने कई काम शुरू किए.
समूह की बैठक
उस दिन मेरी ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहा जब पहली बार समूह को चालीस हजार टी शर्ट का ऑर्डर मिला.अब तो हम पूरे जिले के साथ दूसरे जिले के कई ब्लॉक में भी हमारी बनाई यूनिफॉर्म तैयार की जा रही. हम हर महीने पंद्रह हजार रुपए कमा ही लेते हैं. "
महिलाएं अब पापड़, सिलाई, सिवइयां, चिप्स, पापड़, अगरबत्ती सहित कई आइटम बना रहीं हैं. बैंक से दस लाख रुपए की लिमिट भी मिल गई. सब कर्ज भी उतर गए. अब इसी सेंटर पर दूसरी जगह की महिलाएं भी ट्रेनिंग लेने आती हैं.वैशाली ने श्री गणेश ग्राम संगठन बनाया और जिले 31 गांव की छह हजार महिलाओं को जोड़ कर उन्हें भी आत्मनिर्भर बना दिय.
आजीविका मिशन के जिला प्रबंधक योगेश तिवारी कहते हैं -" ठीकरी के इस समूह ने प्रदेश में नई पहचान बनाई है. यहां नीति आयोग के सदस्यों के अलावा यहां के प्रबंधन को समझने कई संस्थाओं के विद्यार्थी भी आते हैं. अब ये महिलाएं दूसरी महिलाओं को ट्रेनिंग देकर उन्हें रोजगार के नए रास्ते दिखा रही है."
जिला प्रशासन ने इसे मॉडल बनाया है. खेती में जैविक पद्धति को प्रोत्साहन सहित कई प्रोजेक्ट में इस समूह को सेवाएं करते देखा जा सकता है.