कौन है भारतीय ऐनी सुलिवन?
बेरोज़ वाचा, जिन्हें 'भारतीय ऐनी सुलिवन' के नाम से जाना जाता है, ने 1977 में भारत में बहरे और दृष्टिहीन बच्चों के लिए शैक्षिक सेवाओं में क्रांति ला दी. उनकी नेतृत्व क्षमता और दूरदृष्टि ने नवी मुंबई स्थित हेलन केलर इंस्टीट्यूट फॉर डेफ एंड डेफब्लाइंड (HKIDB) को एक नई दिशा दी.
1965 में, बेरोज़ वाचा ने अपने करियर की शुरुआत एक विशेष शिक्षक के रूप में की. एक बहरी और दृष्टिहीन लड़की के साथ हुई एक मुलाकात ने उनके जीवन को बदल दिया. इस पहली मुलाकात ने उन्हें बहरेपन और दृष्टिहीनता के बारे में जागरूक किया और उन्हें इस दिशा में काम करने के लिए प्रेरित किया. उस समझदार और स्वतंत्र विचारों वाली लड़की से प्रेरित होकर, बेरोज़ ने बहरे और दृष्टिहीन व्यक्तियों के लिए कई सफलता की कहानियाँ बनाई.
बेरोज़ वाचा ने की हेलन केलर इंस्टीट्यूट फॉर डेफ एंड डेफब्लाइंड की शुरुआत
1974 में, बेरोज़ वाचा पहली भारतीय बनीं जिन्हें बोस्टन, मैसाचुसेट्स में पर्किन्स स्कूल फॉर द ब्लाइंड में बहरेपन और दृष्टिहीनता में प्रशिक्षण मिला. इस प्रशिक्षण ने उनके ज्ञान और अनुभव को और अधिक गहन बनाया. उनके नेतृत्व में, HKIDB ने कई महत्वपूर्ण कार्यक्रम शुरू किए, जैसे कि भारत में बहरे और दृष्टिहीन वयस्कों के लिए पहला व्यावसायिक प्रशिक्षण कार्यक्रम, बहरेपन में शिक्षक प्रशिक्षण कार्यक्रम, और पहला कंप्यूटरीकृत मिनी ब्रेल प्रेस.
शिक्षा और अधिकारों की वकालत
बेरोज़ वाचा का मानना था कि शिक्षा सभी के लिए अनिवार्य है. अपने दयालु और उदार स्वभाव के कारण, उन्होंने अपना जीवन विकलांग व्यक्तियों के लिए एक बेहतर दुनिया बनाने में समर्पित कर दिया. उन्होंने जोर-शोर से बहरे और दृष्टिहीन व्यक्तियों के अधिकारों की वकालत की. उनकी मेहनत और समर्पण के कारण, कई बहरे और दृष्टिहीन व्यक्तियों को शिक्षा और व्यावसायिक प्रशिक्षण का लाभ मिला.
बेरोज़ वाचा को मिले सम्मान और पुरस्कार
बेरोज़ वाचा को उनके उत्कृष्ट कार्यों के लिए कई पुरस्कार और सम्मान प्राप्त हुए. उन्हें विकलांग लोगों के कल्याण के लिए उत्कृष्ट प्रदर्शन के लिए राष्ट्रपति का राष्ट्रीय पुरस्कार और प्रतिष्ठित ऐनी सुलिवन पुरस्कार (स्वीडन) से सम्मानित किया गया. उनके अलावा भी उन्हें कई अन्य पुरस्कार मिले. उनकी शिक्षा और मार्गदर्शन के कारण, वे अपने छात्रों के जीवन में एक चमकते सितारे के रूप में उभरीं.
प्रेरणादायक विरासत
बेरोज़ वाचा की प्रेरणादायक यात्रा ने न केवल विकलांग व्यक्तियों के जीवन में बदलाव लाया, बल्कि समाज को भी यह सिखाया कि यदि समर्पण और मेहनत हो, तो किसी भी मुश्किल को पार किया जा सकता है. उनके कार्यों ने बहरे और दृष्टिहीन व्यक्तियों के लिए नई संभावनाओं के द्वार खोले और उन्हें आत्मनिर्भर बनने में मदद की.
बेरोज़ वाचा का जीवन एक प्रेरणा है और उनकी कहानी एक उदाहरण है कि कैसे एक व्यक्ति के प्रयास समाज में बड़ा बदलाव ला सकते हैं. उनके योगदान ने विकलांग व्यक्तियों के जीवन में न केवल सुधार किया, बल्कि उनके अधिकारों और अवसरों के प्रति जागरूकता भी बढ़ाई. बेरोज़ वाचा की विरासत हमें यह सिखाती है कि शिक्षा और समर्पण से किसी भी चुनौती को पार किया जा सकता है. उनके अद्वितीय योगदान के लिए, उन्हें हमेशा याद किया जाएगा और उनकी प्रेरणादायक कहानी समाज में एक प्रेरणा बनी रहेगी.