"जब स्कूल जाती तो लोग कहते अनपढ़ मां-बाप की बेटियां क्या पढ़ेंगी ! यह बात मन को दुःख पहुंचाती. 90 प्रतिशत रिजल्ट के बावजूद हिंदी मीडियम होने के कारण मेरी हंसी उड़ाई. मैंने ठान लिया कि गांव और परिवार का यह कलंक मिटा कर रहूंगी. पढ़ाई में सात घंटे पूरा समय दिया. बचे समय में परिवार की मदद करने ईंट भट्टे (brick kiln) पर जाकर ईंटें बनवाती. मेरे माता-पिता का सपना पूरा हुआ." मेरी मेहनत सफल हुई. नीट (NEET) की एग्ज़ाम क्लियर करने वाली दुर्ग जिले के डुमरडीह गांव की यमुना चक्रधर अपनी बात कहते-कहते भावुक हो गई.
ईंट भट्टे पर ईंटें बनाती यमुना और बहन युक्ति (फोटो क्रेडिट :जयश्री शर्मा, दुर्ग)
ईंट बना कर चाहे लोगों के घर मजबूत बनवा दिए, लेकिन यमुना ने कच्चे मकान में रह कर भी अपने इरादे मजबूत कर लिए. इतनी मेहनत कि, कि रिजल्ट में यमुना (Yamuna) ने नीट जैसी कठिन एग्ज़ाम (exam) को पास कर लिया. आने वाले कुछ सालों में दुर्ग जिले के छोटे से गांव डुमरडीह की यमुना चक्रधर डॉक्टर बनेगी. इस साल की नीट एग्ज़ाम में यमुना का चयन के बाद गांव में जश्न का माहौल है. ईंट भट्टे के छोटे से कारोबार से गुजर-बसर करने वाले चक्रधर परिवार की दोनों बेटियां होनहार हैं. बेटियों ने साबित कर दिया कि इरादे मजबूत हों तो मंज़िल तक पहुंचने से कोई रोक नहीं सकता इन बेटियों ने गांव सहित जिले का नाम रोशन कर दिया.
यमुना चक्रधर अपने परिवार के साथ (फोटो क्रेडिट :जयश्री शर्मा, दुर्ग)
जब देखा कि छोटी-छोटी सी तकलीफ के लिए शहर के अस्पताल भागते. गांव में डॉक्टर तक नहीं. उसी दिन से यमुना विचलित रहने लगी. उसने ठान लिया कि वह डॉक्टर बन कर ही रहेगी.यमुना आगे बताती है कि -"मेरा स्कूलिंग इंग्लिश मीडियम न होने से कई बार परेशानी का सामना करना पड़ा. जबकि मेरी इंग्लिश अच्छी थी. इस विषय में भी मेरे हमेशा 90 प्रतिशत से अधिक नंबर आए. आखिर दूसरे प्रयास में मेरा चयन हो गया. भविष्य में मैं पीजी कर के अपनी सेवाएं गांव में दूंगी. खासकर उन महिलाओं के इलाज के लिए जो रात-दिन मेहनत कर खुद के शरीर पर ध्यान नहीं देती."
ईंट भट्टे का छोटा सा कारोबार करने वाले बैजनाथ चक्रधर कहते हैं -"मेरी आर्थिक हालत ठीक नहीं,लेकिन बच्चों की पढ़ाई में कमी नहीं रखी. मुझे ख़ुशी है कि यमुना ने हमारे परिवार के साथ गांव का सपना पूरा किया. मेरी बेटी ने भी यूनिवर्सिटी में अच्छे नंबर ला कर जगह बनाई."बैजनाथ सहित यमुना की मां कुसुम चक्रधर को ख़ुशी है कि बेटी डॉक्टर (doctor) बनेगी. कुसुम कहती है-"गांव में मुझे सभी लोग अनपढ़ कहते. गरीबी की वजह से हम लोग पढ़ नहीं पाए. पर बेटी सहित बेटे दीपक को पढ़ाने में कसर नहीं रखेंगे. मेरी बेटियां पढ़ाई के अलावा मेरी मदद करने भट्टे पर आती थी." बेटी ने अपनी पढ़ाई और खुद के दम पर परिवार के अनपढ़ होने का कलंक मिटा दिया.
रिपोर्टर : जयश्री शर्मा, दुर्ग (छत्तीसगढ़)