"खेतों में लगे केले की फसल खत्म होते ही मैं तो मजदूरी कर उन्हें काटना और फेंकने का काम करती थी. कभी सोचा भी नहीं कि केले के ये सूखते हुए पेड़ हमारी किस्मत बदल देंगे. पिछले दो साल में समझ आया कि जिसे मैं फालतू मानती थी उसी पेड़ ने हमारी आर्थिक हालत बदल दी. इसके फाइबर से हम कई चीज़ें बनाना सीख गए." बुरहानपुर (Burhanpur)जिले के बखारी (Bakhari) गांव की रत्ना मेढ़े ने खुश होकर अपनी बदली ज़िंदगी को बताती है.
केले के फाइबर्स से दीए बनाती समूह की सदस्य (फोटो क्रेडिट : रविवार विचार)
बुरहानपुर (Burhanpur) जिले में केला (Banana) उत्पादन के बाद बचे हुए तने और पेड़ों को सिर्फ काट कर फेंक दिया जाता था. दो सालों में इन केलों के रेशे (Fiber) ने कई महिलाओं और उनके परिवार आर्थिक स्थिति ही बदल दी. इन फाइबर से इन दिनों महिलाएं दीये बना रहीं हैं. पर्यावरण (environment) के लिए सुरक्षित इन दीयों की लोकप्रियता इतनी बढ़ी कि प्रदेश के अलावा दूसरे राज्यों से भी इसकी डिमांड आने लगी. जिले के आजीविका मिशन (Ajeevika Mission) से जुड़ी महिलाओं ने ये कारोबार भी शुरू किया. नल-जल योजना में देश में पहला अवार्ड लेने वाला जिला एक बार फिर चर्चा में है.
केले के फाइबर्स बने सुंदर बेग और दूसरे आइटम (फोटो क्रेडिट : रविवार विचार)
बखारी गांव की पांच से ज्यादा स्वयं सहायता समूह (Self Help Group) की महिलाएं इस काम से जुड़ीं. 'रमा बाई समूह' की अध्यक्ष रत्ना मेढ़े बताती है -"शुरू में गांव की अधिकतर महिलाएं खेती मजदूरी करती थीं. हम सभी लोग आजीविका मिशन के समूहों से जुड़े. हमें ट्रेनिंग दी गई. फाइबर से दीए बनाना सीख गए. ये गीले आटे और केले के फाइबर से बना रहे. त्योहारों और दीवाली पर इसकी मांग और बढ़ेगी. ये शुरू में 12 रुपए दर्जन बेच रहे."
इसी गांव के सियाराम समूह, विजयश्री, जय शिवाजी, तुलजा भवानी और मुक्ताई संघ समूह की महिलाएं भी दीए और दूसरे आइटम बना रही.इस समूह से जुड़ीं अनिता पाटिल, रुपाली पाटिल, ज्योत्सना और रुपाली दीदी(तुलजा) बताती हैं - “छोटा गांव होने से कोई दूसरा काम नहीं था. हम सभी खेतों में ही जाती थीं. इतनी कमाई नहीं थी. केले के फाइबर से चीज़ें बनाने से नई पहचान बन गई. हमारी कमाई भी बढ़ी."
केले के फाइबर्स बने सुंदर आइटम (फोटो क्रेडिट : रविवार विचार)
बुरहानपुर केले उत्पादन के साथ अब पेड़ से निकलने वाले फाइबर से कई रोजगार शुरू हो गए. आजीविका मिशन (Ajeevika Mission )की जिला परियोजना प्रबंधक (DPM) संतमति खलखो कहती हैं - "इन रेशों का अब बहुत उपयोग किया जा रहा. इसके लिए खास ट्रेनिंग (Traning) दिलवाई गई. यहां तक समूह की कई महिलाओं को ट्रेनिंग के लिए केरल तक भेजा,जहां फाइबर से सैनेटरी पेड (SanitaryPad ) बनाना सिखाया गया. कई आकर्षक आइटम के साथ इको फ्रेंडली दीए भी बना रहीं. इनके लिए भी मार्केटिंग की जाएगी. दीए बनाने में 30 महिलाओं को सीधे रोजगार मिला."
केले के फाइबर्स से बने दीए (फोटो क्रेडिट : रविवार विचार)
जिले में केले की फसल के बाद अनुपयोगी पेड़ से रेशे (Fiber) निकालने और कई आइटम बनाने में समूह की महिलाएं जुड़ती जा रहीं. कलेक्टर (DM) भव्या मित्तल कहती हैं - "केले उत्पादन के बाद फाइबर्स से बन चीज़ों ने नई पहचान जिले को दी. महिलाओं के लिए ये वरदान साबित हुआ. सबसे बड़ी उपलब्धि गरीब गांव की महिलाओं के लिए सैनिटरी पेड भी इन्ही रेशों से बनाए जा रहे ,जो पूरी तरह हाइजेनिक हैं. दीए इको फ्रेंडली (Eco Friendly)होने से नदियों दीए में प्रज्ज्वलित कर प्रवाहित करने से पर्यावरण को नुकसान नहीं होगा. इसके लिए और मार्केटिंग करवाई जाएगी."