गांव में CSC से बैंकिंग हुई आसान

रीना ब्रम्हाणे और उनके पति मुकेश ब्रम्हाणे गांव में एक कॉमन सर्विस सेंटर (CSC) चला रहे हैं जो न केवल ग्रामीणों की मदद करता है बल्कि उनकी बैंकिंग जरूरतों को भी पूरा कर रहा है. सुखपुरी खरगोन के भगवानपुरा प्रखंड का एक छोटा सा गांव है.

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मिस्बाह
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CSC

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भारत दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है. देशभर में, स्वयं सहायता समूहों (Self Help Groups-SHG) से जुड़कर महिलाएं आर्थिक क्रांति (financial revolution) ला रही हैं. पर, आज भी कई गांवों में बैंक तक पहुंच नहीं है. आंकड़ों के हिसाब से करीब  5.96 लाख गांव बैंक (bank) जैसी ज़रूरी सुविधा से वंचित हैं. कई ग्रामीण जागरूक बन फाइनेंशियल मैनेजमेंट (financial management) में बैंक की अहमियत को समझ रहे हैं. मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) के खरगोन (Khargone) के सुखपुरी गांव के एक दंपति ने इस ज़रुरत को ग्रामीणों तक पहुंचाने की ठानी. 

रीना ब्रम्हाणे और उनके पति मुकेश ब्रम्हाणे गांव में एक कॉमन सर्विस सेंटर (Common Service Center-CSC) चला रहे हैं जो न केवल ग्रामीणों की मदद करता है बल्कि उनकी बैंकिंग जरूरतों को भी पूरा कर रहा है. सुखपुरी खरगोन के भगवानपुरा प्रखंड का एक छोटा सा गांव है. ज्यादातर ग्रामीण किसान या मजदूर हैं. बैंकिंग या किसी दूसरे वित्तीय लेनदेन से जुड़ी परेशानी को हल करने के लिए ग्रामीणों को अपने गांव से लगभग 10 किलोमीटर दूर धुलकोट जाना पड़ता था. बैंकों में ग्रामीणों को अपनी मजदूरी निकालने या अपना आयुष्मान कार्ड बनवाने के लिए घंटों कतार में खड़ा होना पड़ता है. 

रीना और उनके पति की वजह से चीजें बदल गई हैं. ये लगभग 300 परिवारों के गांव में पिछले एक साल से सीएससी चला रहे हैं. किसीका भी  बैंक से जुड़ा कोई काम या कोई वित्तीय लेन-देन होता है तो वह सीएससी के ज़रिये तुरंत हो जाता है. साथ ही गांवों में सरकारी योजनाओं के लिए ऑनलाइन आवेदन करने जैसी सुविधाएं भी उपलब्ध कराई गई हैं. मुकेश और रीना दोनों ने करीब एक साल पहले सीएससी सेंटर शुरू किया था और अब यह मिनी बैंक की तरह काम कर रहा है.

मुकेश बारहवीं कक्षा पास है और आजीविका कमाने के लिए खेती और मजदूरी का काम करते थे. शादी के बाद, उनकी ग्रेजुएट पत्नी रीना ब्रम्हाणे ने मुकेश की मदद करने का फैसला किया. उसने गांव के दुर्गा स्वयं सहायता समूह से एक लाख रुपये का कर्ज लिया. वह कंप्यूटर के काम के बारे में थोड़ा बहुत जानती थी. मुकेश ने उसे आगे की पढ़ाई के लिए MSW कोर्स में दाखिला दिलाने के लिए प्रोत्साहित किया.

2020-21 में, ग्रामीण स्वरोजगार प्रशिक्षण संस्थान (RSETI), बैंक ऑफ इंडिया के प्रशिक्षण संस्थान से प्रशिक्षण के बाद, दंपति ने ऋण लिया और एक लैपटॉप, एक स्मार्ट मोबाइल, दो प्रिंटर-फोटोकॉपी मशीन और एक लेमिनेशन मशीन खरीदी. इस राशि से गांव में काम शुरू किया. शुरुआत में, उन्हें ज़्यादा अच्छा रिस्पॉन्स नहीं मिला क्योंकि ग्रामीणों को पैसे खोने का डर था. हालांकि, अब स्थिति बदल गई है. अब सीएससी के ज़रिये वृद्धावस्था पेंशन के अलावा मजदूरी, पेंशन, पीएम आवास योजना, पीएम किसान और बैंक खाते खुलवाने का काम किया जा रहा है.

रीना अभी एमएसडब्ल्यू के अंतिम वर्ष में है. मुकेश ने भी काम में उसकी मदद करनी शुरू कर दी है. रीना हर महीने 200 से 250 ट्रांसैक्शंस कर लेती है. फिलहाल कमाई कम है, पर दंपत्ति संतुष्ट और खुश हैं. दोनों पति-पत्नी मिलकर हर महीने लगभग 8,000 से 10,000 रुपये कमा रहे हैं. 

इस काम की बदौलत ग्रामीणों को अब डिजिटल लेनदेन के लिए कहीं दूर नहीं जाना पड़ता. इस दंपति ने खुद जिस तरह से पूरे गांव की इतनी बाई समस्या का हल निकाला, दूसरों के लिए उदाहरण बन गये. आज देशभर में कई महिलाएं स्वयं सहायता से लोन लेकर अपने रोज़गार शुरू कर रही हैं. शिक्षा और समूह की मदद ने रीना को अपने गांव सुखपुरी में बैंक की सुविधा पहुंचाने में मदद की. 

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