गुजरात में एक घरेलु महिला ने न केवल मेहनत कर आत्मनिर्भर बनी बल्कि अलग-अलग समूह की जरूरतमंद महिलाओं को रोजगार देकर उन्हें भी आत्मनिर्भर बना दिया. इस महिला धर्मिष्ठा ने अलग-अलग जगह जाकर चार हजार से ज्यादा महिलाओं को ट्रेनिंग भी दी. ऐसी ट्रेंड महिलाएं अब अपना रोजगार चला रहीं हैं. ऐसी महिलाएं भी जुड़ीं जो बेसहारा,अकेली या तलाकशुदा हैं. अहमदाबाद की धर्मिष्ठा अशोक भाई चुड़ासमा गुजरात सरकार के कहने पर कई संस्थाओं में ट्रेनिंग देने जाती हैं.
इंदौर में आयोजित मालवा उत्सव में शामिल हुई धर्मिष्ठा कहती हैं -“ मैं ट्रेडिशनल आर्ट और हैंडीक्रॉफ्ट को बचाने में लगी हूं. इस काम से जहां संस्कृति को अगली पीढ़ी तक पहुंचा रहे वहीं जरूरतमंद महिलाओं को आर्थिक रूप से मजबूत भी कर पा रहे. मैंने महिलाओं को मदद करने के लिए सिद्धि विनायक संस्था बनाई. 11 सदस्य बने. मैं फैब्रिक जूलरी, मिरर फेब्रिक वर्क, एम्ब्रॉयडरी सहित कई प्रोजेक्ट से जुड़ गए. मुझे ख़ुशी है की इंदौर मालवा उत्सव में हमें लगभग 50 हजार रुपए का वर्क ऑर्डर मिला."
फेब्रिक को जमाते हुई धर्मिष्ठा (फोटो क्रेडिट :रविवार विचार)
अहमदाबाद सेंटर से धर्मिष्ठा अभी 300 महिलाओं के साथ काम करती है. कोरोना काल से पति अशोक भाई अब मार्केटिंग संभालते हैं. महिलाओं को दिक्क्त न हो इसलिए उनको घर जा कर कच्चा माल दे दिया जाता है. वे घर से ही सामान तैयार कर सेंटर पर भेज देती है. इस संस्था से जुड़ी पायल परमार कहती है -" हैंडीक्रॉफ्ट आइटम और फेब्रिक हैंडवर्क से मैं आत्मनिर्भर हो गई. मेरे आर्थिक हालात सुधर गए. मैं 12 से 15 हजार रुपए महीने कमा लेती हूं." इस संस्था से 60 अधिक महिलाएं सखी मंडल ( SELF HELP GROUP -SHG ) की सदस्य हैं जिन्हें रोज काम मिल जाता है. इस संस्था की एक और महिला धर्मिष्ठा भी जुड़ गई. धर्मिष्ठा कहती है -" मेरी आर्थिक हालत अच्छी नहीं थी. जब से इस काम में जुटी हर महीने दस हजार रुपए महीने से ज्यादा कमा लेती हूं."
इस संस्था के सदस्यों के साथ संस्था अध्यक्ष धर्मिष्ठा अब तक अहमदाबाद के अलावा सूरत ,बड़ौदा ,गांधीनगर ,इंदौर ,सौराष्ट्र और दिल्ली के मेले में अपनी प्रदर्शनी लगा चुकीं हैं. धर्मिष्ठा आगे बताती है -" सबस ज्यादा फायदा हमें कच्चा माल लेने में होता है. हम कॉटन और दूसरा फेब्रिक अहमदाबाद से ही ले लेते हैं. इस पर डिमांड के अनुसार तैयार करते हैं. मिरर वर्क ब्लाउस की कीमत 2 हजार रुपए तक होती है और महिलाएं मेले में बड़े शौक से खरीदती हैं. हम इस आर्ट को और राज्यों तक ले जाएंगें. "