ठहरी जिंदगी, दो मुट्ठी सपने- धुलेट की बस यही पहचान थी. अब नही है. अनाज से भरे ट्रैक्टर पर बैठीं महिलायें दिख जाएंगी आते जाते. अनाज मंडी में मोल भाव करने जाती हैं. कम दाम मंज़ूर नहीं. इसीलिए मायके से पूछ कर निकलती हैं कि सोयाबीन का क्या भाव है.
मिलिये धुलेट महिला आजीविका ग्राम संगठन के स्वसहायता समूह से. पहली बार देखेंगे तो लगेगा कि किसी गुलाबी गैंग से मिल रहे हैं. लेकिन इंदौर के इस धुलेट में सब धुल गया है. वो बदल रहा है.
फ़सलों से भरे खेतों के बीच से गुज़रती सकरी सड़कों के बीच से हम पहुँचे धुलेट गाँव. कुल 132 घर हैं. आबादी 548 है. कुछ कच्चे, कुछ पक्के मकान हैं. पेड़ के नीचे बैठे बुज़ुर्गों, खेलते बच्चों, और मुस्कुराती हुई दीदियों ने हमारा स्वागत किया. ये वही दीदियाँ है जो पुरुषों से घिरी अनाज मंडी में जाती हैं और अपने अनाज को सही दामों में बेच मुनाफ़ा और आत्मविश्वास की मुस्कान लिए घर लौटती हैं.
यहाँ खेती से पेट भरता है. जो बचता है वो गल्ला बाज़ार चला जाता है. बस इसी बाज़ार आने जाने में आजीविका मिल गई. जो छोटे किसान हैं उनके लिये मंडी अपनी छोटी उपज ले जाना घाटे का सौदा था. बाज़ार में सब अपना अनाज साथ ले जा नहीं सकते थे क्योंकि सब का वक्त और ज़रूरत अलग अलग थी. तभी दीदियों ने शुरु किया महिला शक्ति उत्पादक समूह. गांव की 15 दीदियाँ 2019 में साथ आईं. शुरुआत में किसी ने 100 ग्राम तो किसी ने आधा किलो सोयाबीन बेचा. दीदियों ने सब खरीद लिया. आज ये महिलाएं मिलकर सीज़न में 60 -70 क्विंटल फ़सल का उत्पादन ख़ुद मंडी में जाकर बेचती हैं.
इसी मुनाफ़े से दीदियों ने अपनी फ़सल को और उन्नत बनाने के लिए 30,000 रुपयों की बचत कर ग्रेडिंग मशीन और मॉइस्चर पूर्वानुमान मीटर खरीदा. बचत ने सपने बड़े कर दिये.
जो महिलाएं कभी उस गांव से शहर की तरफ़ आई तक नही थीं, कभी मंडी नहीं गई, कभी बैंक के सामने से नहीं गुज़रीं, वे आज मिलकर अपने समूह का संचालन कर रहीं है. मंडी, बैंक या सरकारी कार्यालय जाना हो, अब इनमें कोई झिझक नही. हाज़िरी का रजिस्टर हो या पैसों का हिसाब, सारे काम इन्होनें अपनी-अपनी समझ के हिसाब से आपस में बांट लिए.
बचत का स्वाद कुछ ऐसा है कि सास बहू साथ में हैं. इसी समूह की साथी प्रमिला दीदी बताती हैं कि उनकी सास ने समूह से जुड़ने के बाद उन्हें भी सदस्य बनने के लिए प्रेरित किया. समूह की बुज़ुर्ग महिलाएं मंडी में व्यापारियों से मोल भाव करतीं है और अनाज से भरे ट्रैक्टर की ट्रॉली पर बैठकर जाती हैं, और महिलाओं के ऊपर उठते प्रश्न चिन्हों को बड़ी सहजता से बेअसर कर देती हैं. फ़सल की दरों को मोबाइल पर देख कर या अख़बारों में पढ़कर तय करतीं है कि अनाज देवास की मंडी में जायेगा या इंदौर की मंडी में. समूह की अध्यक्ष दामिका जी आँख मिलाकर बड़े ठाठ से कहतीं है,"जहाँ का रेट ज़्यादा होगा, हमारी गाड़ी वही जाएगी."
चमकते सफ़ेद बाल और चहेरे पर झुर्रियों भरी मुस्कान लिए सुगन दीदी कहतीं है, "हम अपनी बहु-बेटियों को आगे बढ़ाना चाहते हैं ताकि वो न तो पति पर और न ही ज़मीन पर निर्भर रहें."
मुखयमंत्री जीवन शक्ति योजना के तहत स्वसहायता समूह की महिलाएं घर बैठे गणवेश तैयार करने लगी हैं. जिससे छात्र/छात्राओं को निशुल्क और गुणवत्तापूर्ण यूनिफ़ॉर्म उपलब्ध होंगे तथा महिलाओं को 600 रुपये प्रति छात्र/छात्रा के हिसाब से आमदनी हो सकेगी. ग्राम संगठन से उपजा द्वारकाधीश और श्री कृष्णा स्वसहायता समूहों की महिलाओं ने सिलाई में भी रूचि ली और फ़िलहाल वो सिलाई सीख रहीं है. हाल ही में समूह को एक टेंडर मिला है जिसमें वह मध्य प्रदेश के 25 सरकारी स्कूलों के लिए यूनिफ़ॉर्म सिलेंगी. 3700 यूनिफ़ॉर्म सिलने का लक्ष्य इन महिलाओं का पहला इतने बड़े पैमाने का काम है. इस टेंडर ने न केवल उनके मनोबल को बढ़ाया है बल्कि उन्हें यह भी समझाया है कि सफ़लता उनके कम्फ़र्ट ज़ोन के बाहर से आएगी. इसलिये नया सीखना होगा.
पपीता दीदी बतातीं है कि पिछली दिवाली मंडी में छुट्टी थी. सारी जमा पूँजी ख़त्म होने के बावजूद समूह ने हार न मानी और पैसे जुटाकर वो बीज लाये. किसी ने अपने बच्चे की गुल्लक तोड़कर, तो किसी ने अपनी घर की बचत में से पैसे जुटाकर समूह की सहायता करी. कोई बीमार हो, किसीके बच्चे की फ़ीस भरनी हों, किसी का पक्का मकान बनवाने का सपना पूरा करना हो, या किसी को साड़ी का व्यापार शुरू करना हो, समूह की महिलायें एक दूसरे का हाथ थामे रखतीं है, और ये विश्वास और साथ की ही डोर है जिसने सभी को इतनी मज़बूती से बांधे रखा है.
महिला शक्ति उत्पादक समूह की महिलाएं चाहतीं है कि उनका गेहूं समर्थन मूल्य पर बिके. और महिला समूहों की उपज 20 -30 रुपये के बोनस पर लिया जाए. दामिका दीदी का कहना है कि उनका समूह इस बोनस को अपने व्यापार को बढ़ाने में लगाना चाहेगा.
अनीता दीदी से जब पूछा गया कि इन ख़ूबसूरत गुलाबी रंग की साड़ियों की क्या कहानी है तो मुस्कुराते हुए वह कहतीं है कि, “इस गुलाबी साड़ी को पहनकर हम किसीकी बहू या किसी की पत्नी नहीं, बल्कि महिला आजीविका ग्राम संगठन के स्वसहायता समूह की सदस्य कहलाती है." गुलाबी गैंग की धुरंधर महिलाओं का यह समूह अपने रिश्तेदारों और आस पास के लोगों के लिए मिसाल हैं.
Photo Credits: Ravivar vichar