माँ के हाथ के खाने का स्वाद, बस यही तो चाहिए हर जगह ! स्कूल हो, कॉलेज हो, बैंक हो, या हॉस्पिटल, व्यक्ति को अगर एक प्लेट स्वादिष्ट खाना मिल जाए तो उसका दिन बन जाता है. इसी बात को ध्यान में रखते हुए, पहली बार 2018 में विश्व बैंक (World Bank) समर्थित बिहार परिवर्तनकारी विकास परियोजना के हिस्से के रूप में 'दीदी की रसोई' की शुरुआत हुई. यह 'बिहार ग्रामीण आजीविका संवर्धन सोसाइटी' (JEEVIKA) द्वारा किए गए कई उद्यम प्रोत्साहन पहलों (enterprise promotion initiative) में से एक है. पहली 'Didi ki Rasoi' बिहार के वैशाली जिले में स्थापित हुई, जो राज्य के सभी 38 जिलों में खाने के सेवाएं पहुंचा रही थी. अभी किए समय में 83 से ज़्यादा ऐसे व्यवसाय बिहार में सरकारी अस्पतालों, मेडिकल कॉलेजों, बैंकों, स्कूलों और अन्य संस्थानों में चल रहें हैं. इस पहल में 1,200 से अधिक महिला कार्यकर्ता और 150 फूलटाइम कर्मचारी हैं.
'JEEVIKA' महिलाओं को यह रसोई शुरू करने के लिए ब्याज देता है, जबकि Cluster Level Federations (CLF) मशीनें और बर्तन प्राप्त करवाते हैं. CLF में स्थानीय स्वयं सहायता समूहों (SHG) की महिलाएं शामिल हैं, जो स्वच्छता, बहीखाता पद्धति और ग्राहक सेवा के साथ तकनीकी और मैनेजमेंट के की सात दिन की ट्रेनिंग लेती है. सरकारी अस्पतालों, मेडिकल कॉलेजों, स्कूलों, बैंकों और अन्य संस्थानों में घर जैसे स्वाद का खाना मिलता है जो ना ही किफायती है बल्कि कई ज़्यादा पौष्टिक भी है. खाना बनाने के लिए ज़्यादातर कच्चा माल स्थानीय किसानों और 'JEEVIKA' के सपोर्ट से चल रहे समूहों से लिया जाता है. Self Help Groups की महिलाओं के लिए ऐसी पहल बहुत बड़ा कदम साबित होती है. बिहार के बहुत सी महिलाएं इस पहल से जुड़कर अपना घर और अपने जीवन को सुधार पाई है. देश एक अन्य राज्यों में भी इस तरह की पहल शुरू होनी चाहिए ताकि महिलाएं सशक्त बना पाएं.