'बेटा, मेरे फ़ोन की सैटिंग में कुछ परेशानी आ गयी है, इसे सही कर दो.' 'ज़रा नानी को फ़ोन लगा के दे दो.' 'रिचार्ज खत्म हो गया है', और ऐसी ना जाने कितनी बातें सुनी होंगी न अपनी मां से. उनकी मदद करनी है, इसीलिए हम काम तो कर देते है, लेकिन कभी ये सोचा है, की उन्हें इस मदद की ज़रूरत पड़ ही क्यों रही है? भारत में आज भी मैजोरिटी महिलाएं ऐसी है जिनके पास टेक्नोलॉजी के ज़रिये नहीं है. शहरी महिलाएं तो फिर भी फ़ोन, इंटरनेट, कंप्यूटर, जैसी चीज़ों से वाकिफ है, लेकिन गांव में आज भी बहुत कम परसेंट में महिलाएं इन सुविधाओं को अपना पाती है.
लेकिन जिस स्पीड से टेक्नोलॉजी का विस्तार भारत में बढ़ रहा है, इसकी ज़रूरत के बुनियादी चीज़ बन चुकी है. इसी को प्रेरणा बनाते हुए डिजिटल एम्पावरमेंट फाउंडेशन ने गरीब महिलाओं और लोगों के लिए साल 2016 में ‘सूचनाप्रेन्योर प्रोग्राम’ की शुरुआत की थी. इसका मुख्य उद्देश्य ग्रामीण महिलाओं को सूचना क्रांति में शामिल कर उनके जीवन स्तर को बेहतर करना है. यह प्रोजेक्ट ग्रामीण लोगों तक सूचना सुविधाएं मुहैया करवाता है.
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भारत में ग्रामीण क्षेत्र के केवल चार प्रतिशत घरों में कम्प्यूटर की पहुंच है. वहीं शहरों में यह दर 23.4 प्रतिशत है. इस फील्ड में डिजिटल एम्पावरमेंट फाउंडेशन (DEF) का प्रयास सराहनीय है जो हर क्षेत्र, वर्ग के लोगों को सूचना से जोड़ने के लिए सक्रिय रूप से काम कर रहा है. डी.ई.एफ. डिजिटल तकनीक के माध्यम से लोगों तक सूचना की पहुंच, डिजिटल शिक्षा और सशक्तिकरण का काम कर रहा है. इस संस्था का मुख्य काम डिजिटल माध्यमों तक सबकी समान और आसान पहुंच सुनिश्चित करना है. इस पहल से अब तक 30 मिलियन लोग सीधे तौर पर प्रभावित हुए हैं जिनमें गरीब, महिलाएं, युवा, विकलांग, स्थानीय कारीगर आदि शामिल हैं.
यह एक ग्रामीण इंटरप्रेन्योरशिप बेस्ड प्रोजेक्ट है जो ग्रामीण भारत के लोगों को सशक्त करने कि दिशा में काम करता है ताकि ग्रामीण लोग जानकारी के अभाव से बाहर निकलकर सार्वजनिक सेवाओं का लाभ उठा सकें और जीवन को बेहतर कर सकें. यह प्रोजेक्ट ग्रामीण युवाओं, विशेषकर महिलाओं और विकलांग लोगों द्वारा चलाया जा रहा है जो सूचना सेवक (सूचनाप्रेन्योर) के रूप में बदलाव ला रहे है.
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इस क्रार्यक्रम में अब तक 25000 से अधिक महिलाओं को डिजिटल एंट्रोप्रेनर्स की ट्रेनिंग प्रदान की गई है. साथ ही 15 मिलियन से अधिक ग्रामीण महिलाएं लाभ ले चुकी हैं. DEF प्रोग्राम के तहत ट्रेनिंग हासिल करने वाली हरियाणा के नूह की रहनेवाली बबली बताती हैं, “मैं समाज के उस हिस्से से आती हूं जहां लोगों की सोच यह है कि एक महिला शादी करने, साफ-सफाई करने, बच्चे को जन्म देने और उनकी देखभाल करने के लिए बनी है. एक महिला होने के नाते यह सबकुछ मुझे हमेशा परेशान करता था."
उनके पति की एक एक्सीडेंट में स्तिथि बहुत बुरी हो गयी. वे परेशान थी, लेकिन हार मानने के बारे में कभी नहीं सोचती. वे बताती है- "मेरी पड़ोसी सुशीला ने मुझे डीईएफ प्रोग्राम के बारे में जानकारी दी. बाद में मेहनत और ट्रेनिंग के बाद मैंने अलग-अलग तरह के हैंडबैग्स सिलने शुरू किए. आज, मैं अपने पूरी परिवार की आर्थिक तौर पर मदद कर पा रही हूं. डीईएफ ने मेरी परेशानियों और डर को दूर किया है.”
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सूचनाप्रेन्योर के तहत मिली ट्रेनिंग के द्वारा महिलाओं को डिजिटल साक्षर बनाकर उन्हें आत्मनिर्भर बनाने में मदद कर रहा है. इसके तहत महिलाओं को विशेषतौर पर कम्प्यूटर और इंटरनेट से जोड़कर उन्हें कई तरह के काम सिखाएं जा रहे हैं. सूचनाप्रेन्योर के तहत मिली ट्रेनिंग से घर में रहकर भी महिलाएं अपना काम शुरू कर रही हैं. सूचनाप्रेन्योर जैसी और भी पहलों की शुरुआत भारत में होनी चाहिए. इससे देश में महिला सशक्तिकरण की नीव और मज़बूत होगी और, देश भी तेज़ी से आगे बढ़ेगा.