बचपन से देश सेवा के ज़ज़्बात लेकर पली-बढ़ी तिरुनागारी (Tirunagari) करते ही मेडिकल (Medical) की पढ़ाई पूरी करते कई अवसर और बड़े पैकेज के जॉब अपने ही प्रदेश में मिलने लगे. डॉ तिरुनागारी कहती है - "इस बीच मुझे पता लगा कि सीआरपीएफ (Central Reserve Police Force) में डॉक्टर की जरूरत है,जो घायलों का इलाज कर सके. मैंने मौका नहीं छोड़ा. मुझे गर्व है कि मैं देश सेवा का हिस्सा हूं."
यूनिफॉर्म में खड़ी डॉ तिरुनागारी (फोटो क्रेडिट : रविवार विचार)
जिन बीहड़ जंगलों (Dense Forest) में जाने से किसी भी रूह कांप जाती हो. जिन बीहड़ों में नक्सलियों (naxalite) के लाल झंडे (Red Flag) डराते हों, वहां एक लड़की ने अपने जूनून के आगे सारे डर को पीछे छोड़ दिया. आजकल ये अपनी सेवा देने के अंदाज़ के कारण चर्चा में है. छत्तीसगढ़ के इसी बस्तर इलाके में यह डॉक्टर बहादुरी और संवेदनाओं के साथ लोगों की तकलीफों पर मरहम लगा रही. यह है डॉ तिरुनागारी मनोगना (Dr.Tirunagari Manogna). सीआरपीएफ (CRPF) में असिस्टेंट कमांडेंट (Assistant Commandant) के पद पर ये इन्हीं जंगलों में सेवाएं दे रहीं. आंध्रप्रदेश (Andhra Pradesh) की रहने वाली डॉ तिरुनागारी पिछले दो साल से सुकमा जिले के दोरनापाल (Doranapal) इलाके के 74 वीं बटालियन (74 Battalion) में है. कठिन ट्रेनिंग के बाद वे सीआरपीएफ में अफसर के पद पर तैनात हैं.
इस समय डॉ तिरुनागारी बस्तर के घने जंगल (Dense Forest) में बसे कांकेरलंका, पोलमपल्ली, पुसवाड़ा, तैलमवाड़ा इलाकों में जवानों के साथ गांव वालों कि सेवा भी कर रही है. गांव के लोग उन्हें ‘डॉक्टर दीदी’ कह कर बुलाते हैं. ये गांव सबसे ज्यादा रेड लाइन नक्सल प्रभावित डेंजर ज़ोन में रखा गया. ग्रामीणों ने बताया- "हमारे इलाके में जहां किराने का सामान और दूसरे जरूरी सामान भी देर से आते हैं वहां डॉक्टर दीदी हर बार टाइम पर पहुंच जाती है. ऐसा पहली बार हुआ कि हमें इलाज सबसे अच्छा मिल रहा."
डॉ तिरुनागारी यहां पूरे समय मेहनत करती नज़र आती है. डॉ तिरुनागारी कहती हैं -"मेरी प्राथमिकता किसी भी चोटिल सैनिक की जान बचाना है. घायल सैनिक का इलाज करना है. जरूरत पढ़ने में मोर्चे पर दुश्मनों से हर तरह से मुकाबला कर सकती हूं. मैं जहां बीमारों को मेडिसिन वाली गोली (Tablet) देती हूं. दुश्मनों को रायफल (Rifle) वाली गोली (Bullet) भी खिला सकती हूं. मुझे किसी भी तरह का डर नहीं.गांव वाले बहुत भोले-भाले लोग हैं। इलाज और बीमारी को कई बार समझ नहीं पाते उन्हें जागरूक भी कर रही हूं। इनके बच्चों को पढाई करने के लिए भी कहती हूं।"
सीआरपीएफ (CRPF) में पूरे देशभर में अलग-अलग बटालियन (Battalion) में महिला सेना ऑफिसर (lady Army Officer) हैं. इन्हीं में डॉक्टर के रूप में पदस्थ कई लड़कियां जाबांजी से अपनी सेवाएं दे रही. डॉक्टर के रूप में सेवाएं देने साथ इन्हें देश के दुश्मनों के साथ युद्ध और दूसरी कलाओं की भी ट्रेनिंग दी जाती है. युद्ध कैंप (Camp) में घायल सैनिकों के इलाज इनका पहला कर्तव्य बताया जाता है. इस दौरान कैंप के इलाके में बसे गांव में यही डॉक्टर गांव वालों का भी बीमार पड़ने पर इलाज करते हैं.
रिपोर्टर:
ऋषि भटनागर,
जगदलपुर(छग)