घरेलु हिंसा पीड़ित से एग्रोप्रेन्योर तक का सफर

2020 में दुलौरिन मरकाम स्थानीय स्वयं सहायता समूह (SHG) में वहां के सामूहिक शक्ति, प्रगति और सशक्तिकरण से प्रभावित होकर शामिल हो गयी. इस समूह से जुड़कर उसने खेती बाड़ी के तरीकों को बेहतर बनाने का प्रशिक्षण लिया.

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रिसिका जोशी
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Dulourin Markam

Image Credits: Femina

छत्तीसगढ़ के छोटे से गांव कासपुर में रहने वाली वह लड़की सिर्फ16 साल की थी, जब उसकी शादी एक आदमी से करा दी गयी. आखों में कई सपने लेकर वो छोटी सी लड़की, अपने ससुराल तो आई, लेकिन शायद जो प्यार और अपनापन उसे घर पर मिल रहा था, वो यहाँ मिलना मुश्किल था. दुलौरिन मरकाम 35 साल की है, लेकिन आज भी जब वह अपनी कहानी सुनाती है तो उसकी आखें नाम हो जाती है. 4 बच्चे, सास ससुर, और पति, इन सब का खर्चा चलाने में दिक्कत तो होती थी, पर जैसे तैसे गुज़ारा हो जाया करता था. 

परेशानियां थी लेकिन दुलौरिन का जीना तब हद से ज़्यादा मुश्किल हो गया जब उनके पति को दारु की लत पड़ गयी. नशे में रहने के कारण पति ने काम करना बंद कर दिया. हर दिन रात को नशे में घर आता, और अपनी दुलौरिन को हद से ज़्यादा पीटता. वह सिर्फ उससे बचने की भीक मांगती रहती थी. अपनी पत्नी को इतने दर्द और तकलीफ में देखकर वह आदमी उस पर हंसता और सो जाता. यह सिलसिला हर दिन का हो गया था. बच्चे भूखे रहने लगे और घर मैं सिर्फ दुःख और रोती हुई दुलौरिन मरकाम. बस ज़िन्दगी के हर दिन को जैसे तैसे गुज़ार रही थी. हालत इतनी बत्तर हो गयी थी कि उसे अपने पति को ज़ंजीरों से बाँधकर रखना पड़ता. वह मानसिक रूप से बीमार हो चूका था, सिर्फ दारु पिता और अपनी पत्नी को मारता.

दुलौरिन मरकाम के पास जीने के लिए कोई कारण नहीं छोड़ा था उसके पति ने. चाहती तो बहुत आसानी से अपना जीवन ख़त्म कर लेती. लेकिन वह कमज़ोर नहीं थी. हार मानना उसके लिए कोई विकल्प था ही नहीं. 2020 में वह स्थानीय स्वयं सहायता समूह (SHG) में वहां के सामूहिक शक्ति, प्रगति और सशक्तिकरण से प्रभावित होकर शामिल हो गयी. इस समूह से जुड़कर उसने खेती बाड़ी के तरीकों को बेहतर बनाने का प्रशिक्षण लिया, कीटनाशकों के बारे में समझा, और उनका उपयोग सीखा. उन्होंने धान उगाने के लिए System Of Root Intensification (SRI) के तरीके को भी सीखा. उस साल उनके खेत में 52 क्विंटल धान पैदा हुआ. वह पैसे बचाकर अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा देने के लिए इस्तेमाल कर रही है. अब उसके जीवन का लक्ष्य है, काम, बच्चों को अच्छी शिक्षा, और अपने पति का मानसिक स्वास्थ्य.. 

दुलौरिन जैसी न जाने कितनी महिलाएं है, जो हर दिन अपने घर पर घरेलु हिंसा झेलती है. देश में ऐसे बहुत सारे self help groups है जो इन महिलाओं के जीवन को बदलने के लिए दिन रात मेहनत कर रहे है. महिलाओं को इन कहानियों से प्रेरित होना चाहिए और समझना चाहिए कि हार मानना किसी भी परेशानी का उपाय कभी नहीं हो सकता.

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