फसल की महक को ज़िंदा कर दिया देसी जुगाड़ ने......

असफलताओं को ठेंगा दिखाकर SHG महिलाओं ने देसी जुगाड़ से ढूंढ ली सफलता. आर्थिक परेशानी और महंगी मशीनों को खरीदने में असमर्थ इन महिलाओं ने देसी जुगाड़ और अपनी समझ से वह सारे रास्ते खोल दिए जो फसल खराब होने से बचा सकें.

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सागर जिले में चावल की खेती करती महिलाएं

मेहनत हमेशा सफलता ही दिलाती है,  मेहनत को ही सब कुछ माना गया. सामाजिक व्यवस्था में कई महिलाएं  दो मोर्चों पर यह मेहनत करती देखी जा सकती हैं.पहले घर परिवार की देखरेख फिर दूसरे मोर्चे पर खेतों में  जाकर अपना खून पसीना डालती हैं. पसीना बहाने और लगातार मेहनत के बावजूद भी कई बार सफलता मिलते-मिलते पानी फिर जाता है.कुछ महिलाओं ने परिस्थियों से निपटने और असफलता को ठेंगा दिखाने की ठान ली। इन महिलाओं ने अपनी किस्मत कोसने की बजाए कुछ करने की सोची. उन्हें असफलता मंजूर नहीं थी। एक दिन समूह की महिला सदस्य आपस में मिलीं, कई तरह के विकल्पों पर विचार किया.

लेकिन महंगाई हर जगह आड़े आ रही थी।बावजूद हिम्मत से इन महिलाओं ने  वह कर दिखाया जो अब खेती में दूसरे किसानों के लिए मिसाल बन गया. आर्थिक परेशानी और महंगी मशीनों को खरीदने में असमर्थ इन महिलाओं ने देसी जुगाड़ और अपनी समझ से वह सारे रास्ते खोल दिए जो फसल खराब होने से बच सकें. SHG की इन महिलाओं को आजीविका मिशन और प्रशासन का साथ मिला.आइडिया मिलते ही उन्होंने गजब कर दिया. नतीजा यह रहा कि असफलता को हराकर महिलाओं ने सफलता के नए झंडे गाड़ दिए. विकासखंड केसली के ऊंटकटा  गांव में संगीता रानी, बबीता रानी गौड़ की यह कहानी है. देसी जुगाड़ की मशीनों को बनाने के लिए दूसरे समूह भी अब यह गुर अपना रहे हैं. महिलाओं ने बड़ी मेहनत से अच्छी किस्म के चावल खेतों में रोपे. चावल की फसल पकने लगी. उसकी महक चारों ओर फैलने लगी.सामान्यतौर पर छत्तीसगढ़ क्षेत्र में उगाई जाने वाली फसल पर अपनी किस्मत आजमाई। महिलाओं को इसमें सफलता मिली भी। चावल की फसल उनके खेतों में लहलहाने लगी.अपनी फसल को और बेहतर बनाने के लिए महिलाओं ने अच्छे किस्म बीज अन्य जिलों से मंगवाए। जब फसल अपने पूरे शबाब पर आयी तो पूरे इलाके में चावल की महक थी. अब हवाओं के साथ महिलाओं की ज़िन्दगी भी खुशबूदार हो चली थी। ये खुशबू और खुशियां अभी मेड़ पर खड़ी हुई ही थी,और ये खलिहानो तक पहुंचती इसके पहले ही ये खुशियां और महक अधिक समय तक टिक न सकी.

यहां की महिलाओं ने खेतों में पसीना बहाया और फिर फसल लहलाई. जब फसल काटने की बारी आई तो कभी कीड़ों की मार तो कभी खर-पतवार ने तैयार फसलों को ही खत्म कर दिया. हाथ आते-आते फसलें तबाह हो गई. कई बार नुकसान झेलने के बाद भी इन महिलाओं ने हार नहीं मानी. अच्छे किस्म के चावल की खुशबू  के कारण कीड़ों,कीट-पतंगों ने फसलों पर अटैक कर दिया.उनकी आंखों के सामने देखते ही देखते फसलें नष्ट हो गई. चावल के दाने आधे-अधूरे जमीन पर बिखर गए. ऐसा हर साल हो रहा था.

संगीता,बबीता और अन्य महिला साथियों ने अपनी परेशानी प्रशासन और कृषि से जुड़े विशेषज्ञों को बताई. किसान दीदियों ने अपने ही बल पर ऐसा जुगाड़ लगाया कि केवल 15 रुपए में कीड़े मारने की मशीन बना ली. बबीता ने बताया कि मटका, चुंगी जिसे आम बोलचाल की भाषा में कुप्पी कहते हैं,इसके अलावा बल्ब,डोरी और पुराने पाइप का टुकड़ा लेकर इसे तैयार किया.फसलों के बीच इसे लगाया. बल्ब की तेज रोशनी से कीड़े इस यंत्र की ओर खींचे चले आए. कुप्पी से जुड़े मटके में पाइप से गिरते चले गए. मटके में पहले से भरे पानी में यह कीड़े मर गए. सदस्यों का कहना है कि इस जुगाड़ से जहां उनका खर्च बचा वही घातक केमिकल का भी उपयोग नहीं करना पड़ा.

संगीता ने बताया अभी समस्या पूरी तरह खत्म नहीं हुई थी.फसलों के बीच उन्होंने कीड़ों पर काबू तो पाया परंतु खर-पतवार की मुसीबत अभी भी बनी हुई थी. इससे फसलों की सही ग्रोथ नहीं हो पा रही थी. जितना मूल्य फसलों का होना चाहिए था वह नहीं मिल रहा था.हार से सामना करने की यह दूसरी लड़ाई अभी बाकी थी. आखिर उन्होंने दूसरा एक और जुगाड़ लगाया. इस जुगाड़ में उन्होंने कोनोवीडर तक बना दिया. इसको फसलों के बीच कतार में चलाया.समूह ने बताया कि इससे जहां मिट्टी उलट-पुलट हुई वहीं खर-पतवार भी पूरी तरह नष्ट हो गया. फसलों को एक नई रफ्तार मिल गई. कोइवीडर में पहिया लगाकर उसे चलाया.जिससे आसानी हुई. खेती को कमाई का जरिया बनाने वाले इस समूह ने और अधिक मेहनत की.उन्होंने अपनी आमदनी बढ़ाने के लिए नए प्रयोग भी करना शुरू किए. उन्होंने चावल की खेती के बीच तुअर की दाल को भी उगाने का प्रयोग किया. यह प्रयोग भी उनका बेहद सफल रहा. निर्धारित दूरी पर यह तुअर के पौधे तैयार हुए. और अच्छी फसल का दाम उन्हें मिला.आय बढ़ाने में यह मददगार साबित हो गई.उनका यह मिशन यही नहीं थमा।  यहां तक कि उन्होंने केंचुआ खाद बनाकर भी अतिरिक्त फायदा उठाया.

जिला प्रशासन ने SHG की इन महिलाओं को खेती के अलावा सेनेटरी नैपकिन बनाने आचार,पापड़ बनाने का भी काम दिया.बबीता और अन्य साथियों का कहना है -"मेहनत को उन्होंने बेकार नहीं जाने दिया, साबित कर दिया कि ज़िद और लक्ष्य तय हो तो देसी जुगाड़ से भी सफलता मिल सकती है।"

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