ज़मीं पर जन्नत की Florence Nightingale

फिरदौसा को भारत की राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने फ्लोरेंस नाइटिंगेल अवॉर्ड 2023 से सम्मन्ति किया और पुरे देश में एक मिसाल कायम करी. वह बड़े होकर भी कुछ ऐसा करना चाहती थी, जिससे मानवता की सेवा कर सकें.

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रिसिका जोशी
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Firdausa Jaan

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सऊदी अरबिया फ़ोन आया कि यहां नर्स कि जॉब है, आकर नौकरी कर लो. फ़ोन पति ने किया था. वो सऊदी में डॉक्टर था, और अपनी फैमिली के साथ रहने के मौके का सोचकर पत्नी को सऊदी में ही नौकरी करने बोल रहा था. लेकिन फिरदौसा जान, जो कश्मीर में नर्स की जॉब कर रहीं है, उन्होंने यह कहकर मना कर दिया, कि, "वे अपने पेशंट्स को छोड़कर कही नहीं जाएंगी." अपनी देश की सेवा का फैसला कर, फिरदौसा ने जाने से इंकार कर दिया. यह निर्णय बहुत सोच कर लिया था उन्होंने.

जब वह छोटी सी थी, तब से ही दुसरो की मदद और उनकी सेवा करने का शौक था उसे. वह बड़े होकर भी कुछ ऐसा करना चाहती थी, जिससे मानवता की सेवा कर सकें. अपनी इस सोच के लिए आज फिरदौसा को भारत की राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने फ्लोरेंस नाइटिंगेल अवॉर्ड 2023 से सम्मन्ति किया और पुरे देश में एक मिसाल कायम करी.

Firdausa Jan

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फिरदौसा बचपन से ही किसी भी तरह से मानवता की सेवा करना चाहती थीं. इसीलिए उसने नर्सिंग करने का फैसला किया, जो समाज को लाभ पहुंचाने का सबसे अच्छा तरीका था. दो बच्चों की मां ने 22 वर्षों तक शेर-ए-कश्मीर इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज (SKIMS) में स्टाफ नर्स के रूप में काम किया है. सिर्फ एक नर्स ही नहीं, फिरदौसा वह एक मां, ड्रग काउंसलर, लेखिका, और छात्रा सब कुछ हैं. वह बताती है- "मैं PhD कर रही हूं. नर्सिंग में मैंने विभिन्न राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय पत्रिकाओं के लिए पत्र लिखे हैं। मैंने तत्कालीन SKIMS निदेशक द्वारा जारी पेशंट्स की देखभाल पर एक पुस्तिका भी लिखी है."

फिरदौसा कोरोना महामारी के दौरान सबसे आगे रहने वाली कुछ नर्सों में से एक थीं. वह बताती है- “मैं अपने बच्चों के साथ ईद भी नहीं मना सकी. मैं अपनी ओटी ड्यूटी कर रही थी, और बाद में टीकाकरण अभियान में शामिल हुई. मैंने बहुत सी स्लम बस्तियों का दौरा किया और उन्हें टीकाकरण के लिए मनाने की कोशिश की."

Florence nightingale

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एक नर्स के रूप में, वह हमेशा खुद को अस्पताल तक ही सीमित नहीं रखती थीं. वह अपनी ड्यूटी से परे जाकर, ऑफ-ड्यूटी घंटों के दौरान जरूरतमंद मरीजों की सेवा भी करती है. उनके समर्पण और कमिटमेंट को देखते ही उन्हें इस सम्मान से नवाजा गया है. फिरदौसा हर उस व्यक्ति के लिए एक मिसाल है, जो अपने काम का भोज समझते है. उन्होंने साबित कर दिया कि बॉर्डर पर खड़ा एक सैनिक हो या हॉस्पिटल में नौकरी करने वाली एक नर्स, दोनों में कोई अंतर नहीं है. जो लोग अपने देश और देश की सेवा के लिए समर्पित हो जाते है, उन्हें रोकने वाला कोई नहीं होता.

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