मेडिकल प्रोफेशन, वैसे तो सबसे ज़्यादा मुश्किल प्रोफेशन में से एक माना जाता है, लेकिन फिर भी कितने बच्चे हर साल इसमें जाने के लिए कड़ी मेहनत करते है. डॉक्टर्स का काम आसान नहीं है, लेकिन उसने भी ज़्यादा मुश्किल काम है एक नर्स का. एक पेशंट को शुरू से लेकर आखरी तक संभालना, यह सुनने में जितना आसान लगता है उतना ही मुश्किल है. एक डॉक्टर तो सिर्फ इलाज करता है, लेकिन एक पेशंट को उसके पैरो पर दोबारा खड़ा करना एक नर्स काम है. हर साल कितनी महिलाएं और लड़कियां इस प्रोफेशन में जाने के लिए दिन रात एक करतीं है. आज तो सब जानतें है, एक नर्स बनने के लिए क्या करना होता है, लेकिन बहुत कम लोग जानते होंगे कि भारतीय मूल कि पहली नर्स कौन थी.
देश की आज़ादी से पहले बहुत सी नर्सेस हॉस्पिटल में काम किया करतीं थी लेकिन यह सारी विदेशी थी. Jamshedji Jeejeebhoy (JJ) hospital (Bombay), पश्चिमी भारत में नर्सों को प्रशिक्षित करने वाला पहला अस्पताल था. कई वर्षों तक नर्सिंग प्रशिक्षण पर यूरोपीय और एंग्लो-इंडियन का संरक्षण था. इसीलिए कोई भी भारतीय महिला इस प्रोफेशन में नहीं जाती थी. लेकिन ये सिलसिला बदला 1891 में जब नर्सिंग प्रशिक्षण के लिए भारतीय मूल की पहली महिला बाई काशीबाई गणपत आई. यूरोपियन और एंग्लो-इंडियन लोगों से ट्रेनिंग लेने वाली यह पहली महिला थी. लोग हैरान थे, लेकिन उन्हें इस जॉब के लिए आसानी से स्वीकार कर लिया गया. काशीबाई के इस कदम के बाद भारत में महिलाएं इस प्रोफेशन को तेजी से अपनाने लगी. इसके बाद के वर्षों में, सरकारी, राज्य और निजी अस्पतालों के सहयोग से पूरे देश में नर्सिंग स्कूल स्थापित किए गए. काशीबाई का वह कदम आज कितनी लड़कियों और महिलाओं की ज़िन्दगी बदल रहा है.
भारत में कितनी नर्सेज है जिनको नर्सिंग के बड़े पुरुस्कारों से नवाजा जा चूका है. Nursing Day के दिन, दुनिया में नर्सिंग क्षेत्र में सबसे बड़ा अवार्ड Global Nursing Award, से भारत की नर्स, शांति टेरेसा लाकरा (Shanti Teresa Lakra) और जिन्सी जेरी (Jincy Jerry) का नाम नॉमिनेट किया गया है. Shanti Teresa Lakra को भारत में 'पद्म श्री' (Padma Shri) और इनकी बहन Jincy Jerry को पहले 'आयरिश हेल्थ केयर अवार्ड' (Irish Health Care Award) भी दिया जा चूका है. बाई काशीबाई गणपत का वह कदम आज देश की ना जाने कितनी महिलाओं के लिए उनके परिवार को खुशहाली से चलाने का साधन बना हुआ है.