तीन साल पहले उज्जैन कलेक्टर तराना क्षेत्र के दौरे पर गांव उपड़ी से निकल रहे थे. इस गांव के किनारे तालाब पर कलेक्टर की नज़र पड़ी,कार की रफ़्तार कुछ कम करवाई.तालाब में कुछ पानी था. गाड़ियों का काफिला फिर आगे बढ़ा और उपड़ी की पंचायत भवन के सामने जा रुका. यहां गांव वालों से कलेक्टर बात करने लगे. फसलों की स्थिति और दूसरी समस्यों के साथ ही वहां पहुंची महिलाओं से उन्होंने कमाई का जरिया पूछा. कलेक्टर ने कहा - " दिनभर क्या करती हो. घर कैसे चल रहा है? "सकुचाते हुए महिलाएं सिर्फ इतना कह सकीं - "घर चलना मुश्किल हो रहा है. मजदूरी बहुत कम मिलती है. कोई दूसरा काम भी नहीं है." कलेक्टर ने दिमाग में शायद तालाब याद रखा. बस उन्होंने इतना पूछा -" कमाई के लिए मछली पालन करोगी? सब हम सीखा देंगे. "महिलाओं के चेहरे की मुस्कान कलेक्टर को मन ही मन हां कह रही थी. उज्जैन लौटते ही कलेक्टर के वादे ने महिलाओं की किस्मत बदल दी.
पिछले कुछ समय से उपड़ी गांव का सूना और सूखा पड़ा रहने वाले तालाब के किनारे चहल-पहल है. यह तालाब गांव की महिलाओं के लिए वरदान साबित हो गया. तालाब अब महिलाओं को पैसे कमाने का जरिया बन गया. महिलाओं का अधिकांश समय इसी तालाब के आसपास बीतता है. मजदूरी पर जाने को विवश इन महिलाओं ने पानी पर अपनी नई तक़दीर लिख दी. यहां पल रही मछलियों का कारोबार अब दूर गांव-गांव तक फ़ैल गया. गांव की महिलाओं का बनाया स्वसहायता समूह और उनकी मेहनत दूसरे लोगों के लिए मिसाल बन गई.
उज्जैन के तराना विकासखंड का गांव उपड़ी. यहां की महिलाएं अब मजदूरी पर नहीं जाती, बल्कि खुद का कारोबार करने लगी. यह कहानी बड़ी दिलचस्प है. गांव की राजल चौहान कहती है- " हम गांव महिलाएं घर की आर्थिक परेशानी से बहुत परेशान थीं. परिवार के मुखिया जो कमाते उससे तो घर चलाना भी मुश्किल हो रहा था.और हमारी मजदूरी बहुत काम थी. हमें नए रास्ते की तलाश थी."
जिला पंचायत के अधिकारी इस गांव के दौरे पर आए और महिलाओं को रोजगार के लिए कई सारे रास्ते बताए. इसी बीच गांव के तालाब को आबाद करने के साथ यहां मछली पालन का आइडिया सबको पसंद आया. आजीविका मिशन के जिला प्रबंधक चंद्रभान सिंह ने कहा कि- "महिलाओं का उत्साह देख इन्हें मछली पालन के लिए प्रशिक्षण देने की व्यवस्था की."
राजल आगे बताती है कि- " ये राह कठिन थी.कोई अनुभव नहीं था.हमने 2018 में रानी दुर्गावती महिला समूह बनाया, जिसमें 11 महिला सदस्य शामिल हुईं.तालाब का नाम पुष्कर धरोहर तालाब हो गया."
समूह की दुर्गा बाई कहती हैं- "हम लोग उज्जैन, सिमरोल सहित दूसरी जगह से मछलियों के बीज लाए. "चालीस बीघा जमीन पर इस तालाब को तैयार किया. समूह की हीं राजू बाई, बसंता बाई, अनिता बाई, भागवंता बाई, सुगन बाई, रेखा बाई, संध्या बाई, शिवकांता बाई ने अलग-अलग काम संभाला.
तीन साल पहले मछली पालन शुरू किया. राजल बाई ने बताया- "हमें पहले साल ही बहुत घाटा हो गया. भारी बारिश के कारण तालाब को साइड से तोड़ना पड़ा. जिससे तालाब में बड़ी हो रही मछलियां तेज़ बहाव में बह गई. हजारों रुपए का नुकसान हो गया." अनिता बाई और भागवंता बाई ने बताया- "हमको प्रशासन ने 25 प्रतिशत मुआवज़ा दिया. फिर सब नए सिरे से मेहनत में जुट गए."
समूह ने एक साल फिर मेहनत की.राजल आगे बताती है - " हमने फिर मछलियों के बीज डाले. उन्हें बड़ा किया. शुरुआत में मछलियां बेचने के लिए गांव और बाजार में भटके. धीरे-धीरे हमारे धंधे ने जगह बना ली. अब लोग हमसे मछली खरीदने तालाब तक आने लगे. "लगभग साठ हजार रुपए की कमाई हुई. सबके चेहरे खिल उठे. अब कारोबार ने अपनी रफ़्तार पकड़ ली.
तराना के ब्लॉक समंवयक राजेश डुडवे और सहायक ब्लॉक प्रबंधक आशुतोष लालदास ने बताया - "पुष्कर धरोहर तालाब योजना में जहां तालाब संरक्षित हुआ वहीं महिलाएं आत्मनिर्भर हुईं. सभी को प्रशिक्षित किया गया है." राजल कहती हैं - "अब वे गांव में ही कई संगठन बनवा चुकी हैं. जिससे दूसरी महिलाओं को भी मजदूरी से छुटकारा मिल सके."