अपनी सुख-समृद्धि, और ऐश्वर्य को त्याग कर जब 'गौतम बुद्ध' ने जीवन के सही अर्थ को समझना चाहा, तो उन्होंने अपने पीछे हर उस व्यक्ति को छोड़ दिया जिन्होंने उनका बचपन देखा था. 'गौतम बुद्ध' के जन्म के सात दिन बाद उनकी माता 'महामाया' की मृत्यु हो गयी. महामाया की छोटी बहन 'महापजापति गौतमी' ने सिद्धार्थ (Gautam Buddha) को संभाला और उन्हें अपने बेटों की तरह प्यार किया. लेकिन सिद्धार्थ के छोड़ जाने पर महापजापति गौतमी समझ ही नहीं पाई कि कोई इस तरह से अपना ऐश्वर्य कैसे त्याग सकता है? कुछ समय बाद 'गौतम बुद्ध' के बेटे राहुल, महापजापति के बेटे नंद, और खुद महाराज शुद्धोदन ने भी 'गौतम बुद्ध' से दीक्षा लेकर प्रबोधन (Enlightenment) कि खोज करने का ठान लिया.
गौतमी समझ गयी थी कि जीवन का असली अर्थ इस राज पाठ में तो बिल्कुल नहीं है. महाराज ने अपनी राजगद्दी छोड़ने से पहले एक बार भी नहीं सोचा, और 'जीवन के सत्य' की खोज में निकल गए. इतिहास गवाह है की धर्म की स्थापना पुरुषों ने ही की है. बुद्धिज़्म (Buddhism) भी इन्ही धर्मों में से एक है. लेकिन महापजापति ने सही मायनों में बुद्धिज़्म को एक नयी दिशा दी. जब गौतमी 'गौतम बुद्ध' के पास दीक्षा ग्रहण करने गयी, तो तीन बार बुद्ध ने उन्हें वापस लौटा दिया. लेकिन गौतमी का इरादा पक्का था, वे बुद्ध से दीक्षा ग्रहण करने का मन बना चुकीं थी. उनके साथ 500 और महिलाएं जुड़ गयी. उन सब ने अपना सर मुंडवा लिया और पीले वस्त्र धारण कर लिए. 'कपिलावस्तु' से 'जेतवना मठ' की दूरी उन्होंने पैदल तय करी.
'गौतम बुद्ध' ने उन्हें यह करते देख कर, दीक्षा देने के लिए हां कर दिया और उनके आगे 8 कड़ी शर्तें रखी. 'महापजापति गौतमी' ठान चुकीं थीं, उन्होंने 'गौतम बुद्ध' की बात मान ली. महापजापति गौतमी Buddhism की Nuns की संस्थापक (Founder) कहीं जातीं हैं. उन्होंने देश की आधी आबादी को एक नयी राह दिखाई और जीवन का सही अर्थ समझने का मौका दिया. भले ही गौतम बुद्ध में इस धर्म की शुरुआत की हो, लेकिन इसे लोगों में प्रचलित करने में 'महापजापति गौतमी' का बहुत महत्व हैं. आज 'बुद्ध पूर्णिमा' के दिन महापजापति गौतमी की यह कहानी हर महिला को दृढ निश्चय और हिम्मत देगी ताकि वे बिना किसी परेशानी से डरे, आगे बढ़ें और अपना जीवन को खुशहाल बनाएं.