व्यक्ति का विकलांग होना इस बात का फ़ैसला कभी नहीं कर सकता कि वह अपने जीवन कितनी ऊंची उड़ान भरेगा. यह साबित कर दिया थान्दला जनपद के ग्राम सुत्रेटी की निवासी मंजु बामनिया ने जो की दोनों पैरो से विकलांग है. मंजू 35 वर्ष की है और आज के समय में अपने ज़िन्दगी को इतना अच्छा बना चुकी है की उन्हें पैर ना होने का अफ़सोस ही नहीं है. उन्होंने साबित कर दिया, ज़िन्दगी में जब आत्मविश्वास की भरमार हो तो कोई भी मुसीबत ज़्यादा देर के लिए टिक ही नहीं सकती.
मंजू जब 5 साल की थी तो किसी बिमारी के इलाज के लिए उन्हें एक इंजेक्शन लगाया गया जिसके बाद उनका एक पैर पूरी तरीके से काम करना बंद कर दिया. वे परेशान हुई लेकिन ज़्यादा वक़्त के लिए नहीं. खुद पर ध्यान दिया और और अच्छे से पढ़ाई की. लेकिन दुर्भाग्य उनका साथ इतनी आसानी से कहा छोड़ने वाला था. एक दिन सड़क पर चलते वक़्त उनका एक बाइक से एक्सीडेंट हो गया और वे दूसरे पैर से भी विकलांग हो गयी. वे टूट चुकी थीं, लेकिन फिर भी हिम्मत हारे बिना यह सोच लिया की पैर नहीं तो क्या हुआ, मेरे दोनों हाथ तो सलामत है ! यह सोच कर वे लग गयी जॉब ढूढ़ने में. लेकिन परेशानियां अभी खत्म नहीं हुई थी. उन्हें कोई भी नौकरी मिल ही नहीं रही थी. अपने खर्चे चलने क लिए उन्होंने चैनपुरा गांव के छात्रावास में बच्चों को पढ़ाना शुरू कर दिया. कुछ समय पढ़ाने के बाद उन्हें आजीविका मिशन के बारे में पता चला. उन्होंने एक स्वयं सहायता समूह के साथ जुड़ने का फ़ैसला किया और सारी निराशाओं को हटा कर सफलता की ऐसी राह पकड़ी की आज तक उन्हें कोई रोक नहीं पाया.
स्वयं सहायता समूह के माध्यम से उन्हें ‘कियोस्क बैंकिंग आई.डी.’ के बारे में जानकारी मिली, तो उन्होंने आई.डी. के लिए आवेदन पत्र भर दिया. आई.डी. मिलने के बाद उन्होंने बैंक से ऋण लेकर थान्दला नगर के मेन बाजार में अपना खुद का कियोस्क सेंटर स्थापित कर दिया. मंजू ने अभी तक सबसे ज़्यादा ट्रांसक्शन्स करें है जिसके कारण उन्हे वर्ष 2022 में ‘बेस्ट बीसी’ (बिज़नेस कॉरस्पॉन्डेंट) का अवार्ड प्राप्त हुआ. वे आज महीने का 15-20 हजार रुपये कमा लेती और अपने परिवार का गुज़ारा चला रही है. उन्होंने बैंक से एक और कर्जा लिए जिससे अपने पिताजी के लिए ज़मीन खरीदी. अब उनके परिवार को भी काम की कोई परेशानी नहीं है. मंजू कहती है- "अब मेरी और मेरे परिवार की स्थिति सुधर गई है, किंतु मेरे ऐसे प्रयास होंगे कि मेरे गांव के लोग भी सुखी और संपन्न हों." वे उदहारण देते हुए बताती है- " उनके गाँव के दो लोगों को, उन्होंने बैंक से ऋण दिलाया, जिससे उन्होंने अपना स्वयं का व्यवसाय शुरु कर दिया. अब वे आत्मनिर्भर हैं."
मंजू की कहानी हर उस व्यक्ति को बहुतहिम्मत देगी जिसके पास हार मानने के लिए कई कारण है. चाहती तो मंजू भी उदास हो जाती और अपनी ज़िन्दगी के हालातों पर रोती रहती, लेकिन उन्होंने सोच लिया था कि ये परिस्थितियां मेरा कुछ नहीं बिगाड़ सकती. अगर हर व्यक्ति मंजू बामनिया जैसी सोच रख ले, तो कुछ भी नामुमकिन नहीं रह जाएगा.