गौरव दिवस: आज की अहिल्या बाई होल्कर

इंदौर में जहां क्लीन सिटी को और अधिक पहचान देने के लिए जुटी हैं वहीं पर्यावरण संतुलन, सिंगल यूज़ प्लास्टिक और सुगम यातायात के मिशन में व्यस्त हैं." आज की अहिल्या " हर्षिका सिंह उस वक़्त देश में चर्चा में आईं जब वे मंडला कलेक्टर थीं.

New Update
Harshika Singh

इंदौर में स्वछता मिशन और दूसरे कामों का निरीक्षण करती हर्षिका सिंह (फोटो क्रेडिट : जन संपर्क, नगर निगम इंदौर)

होल्कर (Holkar) रियासत की शासक देवी अहिल्या बाई होलकर के सामने बड़ी चुनौतियां थीं. कम उम्र में विधवा हो जाना और फिर पहले बेटे मालेराव के निधन ने उन्हें तोड़ दिया. इस दुख से उबर पाती इससे पहले ही दामाद यशवंत राव  की मौत और फिर साथ में बेटी मुक्ता बाई के सती होने की घटना ने अहिल्या बाई (Ahilya Bai) को बिल्कुल अंदर से अकेला कर दिया. दुःख के पहाड़ टूटे पर उन्होंने धैर्यता नहीं खोई. नर्मदा किनारे बसे महेश्वर नगर को राजधानी बनाया. पूरा जीवन शिव उपासना और प्रजा के हित में काम करने में बिताया. प्रजा के लिए उनके निर्णय और धार्मिक कामकाजों ने ही उन्हें अमर बना दिया. 

दौर बदल गया. रियासतें जुड़ कर स्वतंत्र देश बन गया. लेकिन महिलाओं की भूमिका और बढ़ी. समय के साथ महिलाओं ने वो काम किए जो मिसाल बन रहे. प्रशासनिक क्षेत्र में भी महिलाओं अफसरों ने कई ऐसे काम किए जो उदाहरण बन गए. रविवार विचार ऐसी ही कुछ प्रशासनिक अधिकारियों के कामकाजों को समाज में पहुंचाने के प्रयास कर रहा.अपनी-अपनी चुनौतियों के सामना करते हुए ये अधिकारी जनहित के लिए समर्पित हैं.

रविवार विचार के इस मिशन में हम मिलवा रहे, वर्तमान में जो आज की अहिल्या के रूप हैं. कई जिलों में  कलेक्टर रही और फ़िलहाल देश के सबसे स्वच्छ महानगर इंदौर की कमिश्नर आईएएस हर्षिका सिंह से....

  Harshika Singh

हर्षिका सिंह (फोटो क्रेडिट : जन संपर्क, नगर निगम इंदौर)

हर्षिका सिंह (Harshika singh) का व्यक्तित्व बाहर जितना सख्त है,जरूरतमंदों के लिए उतनी भावुक. इंदौर में जहां क्लीन सिटी को और अधिक पहचान देने के लिए जुटी हैं वहीं पर्यावरण संतुलन और सुगम यातायात के मिशन में व्यस्त हैं. "आज की अहिल्या " हर्षिका सिंह उस वक़्त देश में चर्चा में आईं जब वे मंडला कलेक्टर थीं.जूनून ऐसा कि नक्सल और बीहड़ इलाकों में खुद हर्षिका ने गांव गोद लिए और जिले की तस्वीर बदल दी.

जूनून और ज़िद से स्लेट पर बने अक्षर   

" मु....न्नी बाई " ये ढाई शब्द लिखने में शायद उस महिला को पांच मिनिट तो लगे होंगें. उस महिला की उम्र लगभग 82 साल थी. उंगलियां कांप रही थी. पर जैसे ही मुझसे नज़र मिली उसके झुर्रीदार चहरे पर मुस्कुराहट बिखर गई. उसने मुझे गले लगा लिया.बस इतना बोली - 'मैं पास हो गई.अब अंगूठा नहीं लगाउंगी.' उस बुज़ुर्ग महिला के चेहरा मेरे मन में बस गया. मंडला में साक्षरता दर और संवाद में कमी ने मुझे अंदर तक सोचने पर मजबूर कर दिया. बस यही मेरा मिशन बना. तय किया कोई निरक्षर नहीं रहेगा. कोई योजनाओं से वंचित नहीं रहेगा. यही नहीं आदिवासी अंचल में प्रिग्नेंट महिलाओं की घर पर ही डिलीवरी प्रथा,स्वास्थ्य सुविधाओं के प्रति बेखबर जैसे मुद्दों ने मुझे अंदर तक हिला कर रख दिया. " इंदौर नगर निगम कमिश्नर हर्षिका सिंह ये बात बताते हुए भावुक हो गईं.

नक्सल प्रभावित यह मंडला जिला आदिवासी (Adivasi) बहुल तो है,लेकिन घने जंगलों के बीच बसे छोटे-छोटे गांव में ग्रामीण लोग मजदूरी कर अपना जीवन चला रहे. बीहड़ इलाकों में तेज़ी से सुविधाएं पहुंचाना प्रशासन के लिए  बहुत बड़ी चुनौती थी. दूसरी दिक्क्त गांव के लोगों का जिले मुख्यालय पर अधिकारियों से मिलने आना. हर्षिका सिंह आगे बताती हैं - " जिले में लिट्रेसी प्रॉब्लम सबसे बड़ी थी. ट्राइबल फंड का फ्लो था,लेकिन भोले-भाले लोगों की अज्ञानता से वो इस योजना और राशि का उपयोग तक नहीं समझ पाता. मैंने ठान लिया और बीहड़ इलाकों में निकल पड़ी. धीरे-धीरे टीम बनाई. 'ज्ञान दान' मुहिम चलाई. स्लेट और चॉक की व्यवस्था हो गई. ज्ञानोलय में किताबें इकट्ठी हुईं. गांव-गांव आंगनबाड़ी कार्यकर्त्ता,पड़ी लिखी लड़कियां इस मिशन में जुड़ गई. 30 हजार लोग वालेंटियर जुड़ गए. देखते ही देखते हर घर नया उजाला उम्मीदों का नज़र आने लगा. पांच सौ से ज्यादा महिलाएं और युवा इस काम में जुटे रहे. नतीजा हमारे सर्वे में साक्षरता दर 56 % से 95 % हो गया. अब किसी भी घर में निरक्षर मुन्नी बाई न रही. सच लगा कि अक्षर सिर्फ लिखावट नहीं. उन निरक्षरों के लिए अहसास थे, जिन्होंने कभी जिया ही नहीं. अब वे सब समझने लगे हैं. यह मेरे जीवन की उपलब्धि है. " 

Harshika Singh

मंडला में साक्षरता मिशन के दौरान पूर्व डीएम हर्षिका सिंह (फोटो क्रेडिट : जन संपर्क, नगर निगम इंदौर)

हर्षिका सिंह मंडला के अलावा बालाघाट, जबलपुर, भोपाल, टीकमगढ़ जैसे जिलों में भी अपनी सेवाएं दे चुकीं हैं.इंदौर में क्लीन सिटी की प्रतिष्ठा और पहचान बनाए रखने के लिए वे सिंगल यूज़ प्लास्टिक प्रोजेक्ट में जुटी हुईं हैं. साथ ही कचरा निष्पादन के साथ व्यवसायिक जगह पर कचरा पड़े रहने पर सख्त एक्शन लिए. स्पॉट फाइन पर कोई समझौता नहीं करने के निर्देश दिए. शहर के मुख्य इलाकों के अलावा वे खुद रेंडमली किसी भी वार्ड और कॉलोनी में पहुंच कर सफाई व्यवस्था को ग्राउंड कि रियलिटी चेक कर रहीं हैं. उनको दुःख है कि सामान्य व्यक्ति सिंगल यूज़ प्लास्टिक (single use plastic) को लेकर ज्यादा साथ दे देता है. अधिक गैरजवाबदार लोग समझाने के बाद भी इसके उपयोग करने से बाज नहीं आते. कमिश्नर इनके खिलाफ और सख्त कदम उठाने की बात कर रहीं हैं. हर्षिका सिंह के मानना है -" इंदौर के लोग जुनूनी हैं. यहां किसी भी प्रोजेक्ट में लोगों की जनभागीदारी देखी जा सकती है. यह जनभागीदारी ही प्रशासन की सबसे बड़ी ताकत है. लोग जब तक सहयोग नहीं करेंगे ,कोई भी प्रोजेक्ट सफल नहीं हो सकता.आज भी यहां अहिल्या बाई होल्कर के संस्कार लोगों में दिखाई देते हैं।उनका सेवा-समर्पण का फार्मूला ही है "  

 ऊर्जा से भरा इंदौर    

केवल डेढ़ महीने पहले इंदौर नगर निगम में कमिश्नर पद पर ज्वाइन करने वाली हर्षिका सिंह स्वच्छता मिशन को और बढ़ाने के लिए खुद ने साइकल चला कर संदेश दिया. उनके पति आईएएस रोहित सिंह भी फ़िलहाल एमएसएमई विभाग में एमडी हैं. जरूरतमंदों की मदद कर रहीं हर्षिका सिंह को उनका प्रोत्साहन लगातार मिलता है. हर्षिका सिंह कहती हैं - " चुनौती हर काम में होगी. निजी परेशानियां जीवन का हिस्सा है,लेकिन सामजिक जीवन और मानवीयता ही सर्वोपरि होना चाहिए.परिवार को समय देना और तालमेल बैठाना ही खुशहाल जीवन का रहस्य  है. हर व्यक्ति को सामाज और देश के लिए सार्थक भूमिका निभाना चाहिए. "

Harshika Singh

 स्वछता मिशन जागरूकता रैली में साइकल चलाती हर्षिका सिंह (फोटो क्रेडिट : जन संपर्क, नगर निगम इंदौर)

इंदौर Adivasi Holkar Ahilya Bai Harshika singh single use plastic इंदौर नगर निगम