SHG ने बदली कहानी- साबुन के साथ महकी महिलाओं की ज़िंदगी

खरगोन जिले की खेत मजदूरी करने वाली महिलाओं ने व्यवसाय के क्षेत्र में लगातार दो बार असफलता का सामना किया. लगातार हार के बावजूद उन्होंने न हौसला खोया और न जज्बा. नतीजा यह रहा कि तीसरी बार इनके द्वारा बनाया गया साबुन लोगों की पसंद बन गया.

New Update
Jamli SHG

खरगोन जिले के छोटे से गांव जामली की महिलाओं ने कमाल कर दिखाया. कड़ी मेहनत और कुछ कर गुजरने की चाह ने इन महिलाओं के SHG को खास बना दिया. एक समय गुमनाम रहने वाली ये गांव की महिलाएं अब अपने क्षेत्र में आदर्श बन गई. 

बकायदा योजना बनाकर काम करने वाली कुछ महिलाओं ने अपने काम के दम पर पूरे गांव जामली के साथ महिलाओं की ज़िंदगी खुशबू से महक रही. इसकी शुरुआत करने वाली पांच महिलाओं की बड़ी दिलचस्प कहानी है.  पूरे दिन खेती मजदूरी कर पसीना बहाने वाली महिलाओं को यह सफलता यूं ही नहीं मिली.लगातार अपने अथक प्रयासों और जज़्बे से बनाये SHG के साथ आज खुशबूदार साबुन बना रही हैं. सबसे पहले इन पांच  महिलाओं ने सखी सहेली स्वसहायता समूह बनाया. अपने समूह के बारे में बताते हुए अध्यक्ष रंजना चौहान पूरे भरोसे के साथ कहती हैं -  'इस साबुन निर्माण में कोई केमिकल या हानिकारक रंग नहीं मिलाया'.  

वैसे तो काम 2018 में शुरू किया लेकिन रह आसान न थी. शुरुआत हुई पापड़ अचार बनाने के काम से. कोई अनुभव भी नहीं था, लेकिन भरोसा, विश्वास और हिम्मत थी. 2018 में आजीविका मिशन से सहयोग लेकर यह शुरुआत की. पहले  पापड़ का व्यवसाय किया.यह चल नहीं पाया. पापड़ इतने  बिके नहीं कि  खर्च भी निकल पाता.स्वादिष्ट और पौष्टिक पापड़ बनाने के लिए मेहनत की.समूह सदस्य बताती हैं कि पापड़  को स्वादिष्ट  बनाने के लिए मसाला खरगोन बाजार से खरीदा.  धंधा लगातार घाटे में जाता देख  समूह की महिलाओं में पापड़ का यह धंधा बंद कर दिया. यह व्ययसाय हार गया लेकिन महिलाओं ने हिम्मत नहीं हारी. नया धंधा शुरू करने के लिए सोचना शुरू किया. इस सोच के बीच इन महिलाओं ने असफलता के साथ गांव के कुछ  लोगों के तानों का भी सामना किया. परन्तु इन महिलाओं ने उन तानों को नज़रअंदाज़ कर केवल नए व्यवसाय और अपने पैरों पर खड़े होने की ठान रखी थी. 

महिलाओं का कहना है की वह मजदूरी के लिए वापस खेतों में जाना नहीं चाहती थी. इस उम्मीद के साथ एक नई शुरुआत फिर की. नए प्रयोग किए. उत्साह के साथ हर घर में उपयोग में आने वाली वेसिलीन और विक्स को बनाना शुरु किया.अच्छी  पैकेजिंग के साथ वे प्रशासन के पास पहुंची,खुद के प्रयासों से वे दुकानों ,मेडिकल स्टोर पर भी गईं.  उन्होंने इसके फायदे बताए. बाज़ार में पहले से जमे प्रोडक्ट और बड़े ब्रांड के आगे गांव का यह वेसिलीन और विक्स जगह नहीं बना पा रहा था.  लगातार भटकने के बावजूद विक्स और वेसिलीन का स्टॉक घर में ही रखा गया.इस धंधे में भी उनको ज़बरदस्त घाटा हुआ.इस व्यवसाय ने भी उम्मीदों पर पानी फेर दिया. यह महिलाओं के लिए सब से परेशानी के दिन थे.लगातार दो व्यवसायों में असफल होने और हार  का सामना करती इन महिलाओं ने हौसला नहीं खोया.जज़्बा बनाए रखा.जोश के साथ फिर नई योजना और तीसरे व्यवसाय को लेकर साबुन बनाने के बारे में सोचना शुरू किया.

समूह अध्यक्ष रंजना और सचिव ज्योति ने बताया की तीसरी बार उन्होंने इस व्यवसाय से सफलता हासिल कर ही ली. ये सबसे खुशी के पल थे. इस बीच कोरोना काल के संकट में भी उन्होंने हार नहीं मानी.  इस समूह का बनाया हुआ साबुन  धीरे-धीरे बाजार में मिलने वाले महंगे साबुन को टक्कर दे रहे. लोगों के पसंदीदा रंगों में यह साबुन बनाकर अलग-अलग दुकानों, सरकारी, गैर-सरकारी आयोजनों में अपना स्टॉल लगाकर साबुन बेचने लगी. समूह ने अब तक हजार से अधिक साबुन बनाकर लोगों तक पहुंचा चुकी हैं.ज्योति ने बताया वर्तमान में गांव की 10 महिलाएं साथ मिलकर समूह में काम कर रही हैं. उनका कहना है कि सफलता का यह सफर आसान नहीं था. लेकिन निराश न होकर फिर 10 महिलाओं ने नए सिरे से मिलकर सखी सहेली समूह को तैयार किया. फिर वह दिन भी आ गया जब नए व्यवसाय के लिए 10 दिनों का प्रशिक्षण प्रशासन ने दिलवाया. इस ट्रेनिंग ने जिंदगी ही बदल दी. 

फिर नई शुरुआत की और बनाना शुरू किया खुशबूदार साबुन.... महिलाओं ने इसे सखी सहेली का साबुन नाम दिया.आजीविका मिशन ने 75 हजार रुपये व्यवसाय शुरू करने के लिए लोन दिया.अध्यक्ष रंजना ने बताया कि साबुन निर्माण को लेकर उनकी टीम ने गुजरात के अहमदाबाद से सेंट, ग्लिसरीन,साबुन बनाने के सांचे,कलर और पैकिंग की गन मशीन खरीदी.अपने साबुन एलोवेरा,चंदन, गुलाब मिलाती हैं.  इस समूह में शीतल चौहान,अलका चौहान,अन्नपूर्णा चौहान, और ममता शामिल है. महिला सदस्यों का कहना है कि लॉक डाउन से प्रभावित इस व्यवसाय को आजीविका मिशन प्रोग्राम में फिर प्रोत्साहन मिला और अब समूह की कमाई का यही जरिया बन गया.अब मजदूरी की जगह खुशबूदार साबुन बनाकर बेच रही हैं. उनका कहना है कि शुद्ध और हानिकारक केमिकल नहीं मिलाते. वे चाहती हैं-"प्रशासन को अन्य जिलों में भी इसे बाजार उपलब्ध कराना चाहिए." यदि प्रशासन और बाज़ार के बड़े व्यवसाई , मेडिकल स्टोर संचालक , समाज सेवी संघर्ष कर रही महिलाओं को वक़्त पर साथ देता तो यह समूह 2018 में अपने पुराने शुरू हुए व्यवसाय में भी सफल हो सकता था.  जिला प्रशासन के साथ समूह सदस्यों का कहना है की आखिर कर उन्होंने अपनी ज़िद के बल पर व्यवसाय के सपनो को साकार कर दिया.  

स्वसहायता समूह खरगोन जामली आजीविका मिशन