झाबुआ के कड़कनाथ के अंडे का विदेशी चखेंगे स्वाद

झाबुआ जिला महिलाओं को भी आत्मनिर्भर बना रहा है. कड़कनाथ मुर्गे और चूजों के बाद अब अंडों के कारोबार में भी महिलाएं उतरेंगी. आदिवासी इन महिलाओं को बकायदा प्रशासन के विभागों ने ट्रेनिंग दी. जिले के लगभग 56 गांव की 600 से ज्यादा महिलाओं को रोजगार मिलेगा.

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Kadaknath eggs

कृषि विज्ञान केंद्र में आयोजित कार्यक्रम में शामिल प्रभारी मंत्री इंदरसिंह परमार (फोटो क्रेडिट : रविवार विचार)

"मैंने तो पहले कभी सोचा भी न था कि कड़कनाथ हमारी ज़िंदगी को इतना आसान कर देगा. कड़कनाथ नस्ल की मुर्गियों के अंडों की पैकेजिंग करेंगे. अधिकारी हमारा साथ दे रहे. अच्छे भाव मिलने की उम्मीद है. हमारा समूह अब और आत्मनिर्भर हो जाएगा. मुझे अभी मुर्गों के दाम भी अच्छे मिले.हमारी दीदियां और मेहनत करेंगी. " झाबुआ के कड़कनाथ उत्पादन से जुड़ी बरोड़ गांव की नवली बाई ने कही. नवली बाई उन महिलाओं में शामिल है जो आने वाले दिनों में कड़कनाथ मुर्गे के कारोबार के साथ अब अंडों की पैकेजिंग भी करेगी. 

पिछड़े जिले की पहचान से बाहर निकल कर झाबुआ जिला महिलाओं को भी आत्मनिर्भर बना रहा है.यहां के खास नस्ल के फेमस कड़कनाथ मुर्गे  और चूजों के बाद अब अंडों के कारोबार में भी महिलाएं उतरेंगी. आदिवासी इन महिलाओं को बाकायदा प्रशासन के विभागों ने ट्रेनिंग दी. जिले के लगभग 56 गांव की 600 से ज्यादा महिलाओं को नया रोजगार मिलेगा. ये सभी महिलाएं स्वयं सहायता समूह (Self Help Group) की सदस्य और पदाधिकारी हैं.आने वाले दिनों में झाबुआ के कड़कनाथ मुर्गियों के अंडों का स्वाद अब मप्र के अलावा कई राज्यों में खाने के शौक़ीन लोग भी चखेंगे.कड़कनाथ मुर्गियों के अंडे में ज्यादा स्वाद और प्रोटीन की मात्रा होने की वजह से मांग अधिक है.शुरुआत में नोयडा, राजस्थान, यूपी, दिल्ली सहित अन्य राज्यों से मांग आ रही है. राजस्थान में विदेशी पर्यटकों को भी ये अंडे खासतौर पर होटल्स में परोसे जाएंगे. 2018 में झाबुआ के कड़कनाथ मुर्गे को GI (Geographical Indication-GI) का दर्जा मिल चुका है.

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कड़कनाथ मुर्गे-मुर्गियों के साथ आदिवासी महिला (फोटो क्रेडिट : रविवार विचार)

 

झाबुआ की पहचान कड़कनाथ मुर्गा पालन पूरे देश में चर्चित है. किसान कड़कनाथ उत्पादक सहकारी संगठन के समंवयक जिम्मी निर्मल कहते हैं -" यह बहुत बड़ी उपलब्धि है. कड़कनाथ अंडों की मांग लगातार आ रही थी. प्रशासन ने महिलाओं के लिए इसे कारोबार और आर्थिक मजबूती का बड़ा जरिया माना. सहकारी संघठन बना कर महिलाओं को जोड़ा. स्वयं सहायता समूह और जरूरतमंद महिलाएं ही मार्केट की डिमांड के अनुसार पैकेजिंग कर कारोबार करेंगी. मैंने अलग-अलग गांव में जाकर महिलाओं को समझाया और काउंसलिंग की. वे अब उत्साहित हैं. यहां तक इन महिलाओं ने अपने बच्चों को स्कूल भेजने का भी संकल्प लिया ."

इस एक पैकिंग में 12 अंडे होंगे. जिनकी कीमत लगभग 499 रुपए होगी. यानि एक अंडे की कीमत 41 रुपए से अधिक होगी. आजीविका मिशन के जिला परियोजना प्रबंधक देवेंद्र सक्सेना कहते है -" एसएचजी से जुड़ी महिलाओं को और अधिक लाभ मिलेगा. 70 से ज्यादा स्वयं सहायता समूह की महिलाएं इस योजना और कारोबार का लाभ लेंगी. ये महिलाएं अभी कड़कनाथ नस्ल के मुर्गे और मुर्गियों के साथ चूजे पाल रहीं हैं."

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अंडों की पैकेजिंग के लिए तैयार बॉक्स (फोटो क्रेडिट : रविवार विचार)

इस प्रोजेक्ट में आजीविका मिशन (Ajeevika Mission) के साथ, कृषि विज्ञान केंद्र, पशु पालन विभाग और डेयरी विभाग शामिल है. प्रभारी मंत्री इंदर सिंह परमार ने यहां आकर इस प्रोजेक्ट से जुड़ी महिलाओं से मुलाकात की और उनका हौसला बढ़ाया. कलेक्टर तन्वी हुड्डा ने इस प्रोजेक्ट को लेकर खास रूचि दिखाई. तन्वी हुड्डा कहती हैं -" अभी तक इस बिज़नेस को बर्ड्स और उसके चूजे तक सिमित किया था. जबकि इसके अंडे में खास न्यूट्रिशन होता है. समूह की महिलाओं को अब अंडों की आधुनिक पैकेजिंग और मार्केटिंग के लिए  तैयार किया है. इससे महिलाओं को और अधिक आर्थिक मजबूती मिलेगी. यहां की आदिवासी महिलाएं बहुत मेहनती हैं."



कड़कनाथ उत्पादक सहकारी संगठन self help group कड़कनाथ Ajeevika Mission झाबुआ Geographical Indication-GI