कमी संभावनाओं की नहीं, बस सोच और समझ की है, स्वयं सहायता समूह की महिलाएं आए दिन यह साबित करती रहती है. खुद के और अपनी जैसे अनेक महिलाओं के लिए रोज़गार तैयार करने में SHG महिलाओं का कोई मुकाबला ही नहीं. मीरजापुर की राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन के तहत बनाए गए स्वयं सहायता समूह की महिलाएं गोशालाओं से निकलने वाले गोबर का इस्तेमाल कर गमले बना रहीं हैं. इन गमलों में पौधा तैयार करने के लिए पॉलिथीन की प्रयोग पर रोक लगेगी. पर्यावरण के लिए अनुकूल और टिकाऊ होने के साथ यह गमला मात्रा 10 से 15 रूपए में बिक रहा है. ज़्यादातर लोग प्लास्टिक या पॉलिथीन सबने गमलों का इस्तेमाल करते है जो की पर्यावरण के लिए हानिकारक है. सबसे ख़ास बात यह है की अगर यह गोबर से बना गमले टूट भी जाए तो इसे दोबारा खाद बनाने के प्रयोग किया जा सकता है.
उप निदेशक कृषि डॉ. अशोक उपाध्याय ने बताया, "गोबर गमलों में बीज डालकर नर्सरी में पौधे तैयार किया जाएगा. गोबर से पौधों को पोषण मिलेगा. पौधा तैयार होने के बाद जमीन पर गमले सहित ही लगाया जा सकेगा." गोबर खनिजों के कारण मिट्टी को उपजाऊ बनाता है और पौधे की मुख्य आवश्यकता, नाईट्रोजन, फास्फोरस और पोटेशियम जैसे खनिजों से भरपूर होता है. मिट्टी के संपर्क में आने से गोबर के विभिन्न तत्व मिट्टी के कणों को आपस में बांधते हैं, पौधों की जड़ों को मिट्टी में फैलाकर मिट्टी को उपजाऊ बनाते है. जिला विकास अधिकारी श्रवण राय ने बताया- "सरकार गोबर की खाद से खेती की लागत कम करने की कोशिश कर रही है और साथ ही महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने का प्रयास किया जा रहा है."
गमले बनाने के लिए गोबर पशु-आश्रय से उपलब्ध कराया जाएगा, इससे गोबर का सदुपयोग होगा. साथ ही पशु आश्रय स्थल व समूह के महिलाओं की आमदनी बढ़ेगी. यह कदम देश की उन्नति की तरफ एक बड़ी पहल है, जो की महिलाओं को सशक्त बनाने के साथ पर्यावरण को भी सुरक्षित रखेगी. देश के अन्य स्वयं सहायता समूहों को मीरजापुर की इन महिलाओं से सीख लेनी चाहिए. अपनी ज़िन्दगियों के साथ ही अपने परिवार को भी वह मदद कर पाएंगी. जिन जगहों पर गाय भैसों को पाला जा रहा है, उनको भी एक नयी आमदनी का स्त्रोत मिलेगा साथ ही गोबर भी बर्बाद नहीं होगा. देश में यह बदलाव लाने की बहुत ज़्यादा ज़रूरत है क्यूंकि पर्यावरण की सुरक्षा अब हमारे हाथों में ही है.